कुरुक्षेत्र की पहली सुबह - 50 - अंतिम भाग Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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कुरुक्षेत्र की पहली सुबह - 50 - अंतिम भाग

50.आनंद समाधि

पांडवों का प्रस्ताव रखने पर महाराज धृतराष्ट्र ने पूछा। 

महाराज धृतराष्ट्र: हे श्री कृष्ण! पांडव क्या चाहते हैं?

श्री कृष्ण:पांडवों का संदेश यह है कि उन्हें अब उनके राज्य का भाग मिल जाना चाहिए। हे राजा!मेरी भी यही सम्मति है और दोनों पक्षों में संधि होने से स्वयं आप समस्त लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित करेंगे तथा आपकी शक्ति इस पूरे भारतवर्ष में अजेय हो जाएगी। 

भगवान श्री कृष्ण की बातें सुनकर दुर्योधन मन ही मन नाराज होने लगा। उसे ऐसा लगा जैसे श्री कृष्ण उनका अपमान करने के लिए हस्तिनापुर आए हैं। महर्षि कण्व ने भी उसे समझाने की कोशिश की लेकिन उसने उल्टी ही भाषा में जवाब दिया। 

दुर्योधन: हे महर्षि! जो जैसा होने वाला है और जैसी मेरी गति होनी है, वह होकर रहेगी। उसी के अनुरूप मेरा आचरण भी है। इसमें आपके समझाने से क्या होने वाला है?

उधर महाराज धृतराष्ट्र ने श्री कृष्ण से कहा कि दुर्योधन अपने मन का ही आचरण करता है अतः आप स्वयं उसे समझाइए लेकिन दुर्योधन पर श्री कृष्ण के समझाने का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। श्री कृष्ण के बाद पितामह भीष्म, गुरु द्रोण, महात्मा विदुर और स्वयं राजा धृतराष्ट्र ने भी उसे समझाना चाहा लेकिन दुर्योधन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह श्री कृष्ण से भी तर्क करने पर उतारू हो गया और उन्हें कहा कि जब तक मैं जीवित रहूंगा तब तक पांडवों को इतनी भूमि तो क्या सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं दे सकता हूं। 

अर्जुन सोचने लगे सुई की नोक के बराबर जमीन से लेकर दुर्योधन का संपूर्ण भारतवर्ष पर आधिपत्य स्थापित करने का दुःस्वप्न और पांडवों को उनके अधिकार से वंचित करने की कुमति……

अर्जुन अभी थोड़ी देर पूर्व श्री कृष्ण के अमृततुल्य वचनों को याद करने लगे……श्री कृष्ण का विश्वरूप देखते समय अर्जुन को उसके एक भाग में एक भीषण युद्ध की छवि दिखाई दी थी, जिसमें एक किशोरवय योद्धा को कौरव पक्ष के छह महारथी मिलकर निर्ममतापूर्वक मार रहे हैं। आचार्य द्रोण, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, वृहद्वल तथा कृतवर्मा……इन छह प्रमुख कौरव योद्धाओं ने उस कुमार को घेर लिया है। वे मिलकर उस पर गदा, तलवार और धनुष बाण से वार कर रहे हैं। अगर अर्जुन एक क्षण भी ध्यान में और रुक जाते तो वे उस किशोर योद्धा का मुख भी देख लेते लेकिन अर्जुन ने श्री कृष्ण द्वारा अभी कहे गए वचनों का पूर्ण रुप से पालन करते हुए अपने वर्तमान कर्तव्य को निभाने का निश्चय किया। अर्जुन के एक मन ने कहा- क्या वह गिरा हुआ किशोर अभिमन्यु है? लेकिन दूसरे ही क्षण अपने उस मन पर दृढ़ संकल्प से नियंत्रण पाते हुए अर्जुन ने कहा, नहीं अभी मुझे तत्काल अपने रथ पर खड़े होकर सभी पांडव योद्धाओं को अपनी उपस्थिति का संकेत देना है। इस युद्ध में मेरा उतरना महत्वपूर्ण है और मैं इसे पूरी गंभीरता के साथ लडूंगा। 

दुर्योधन युद्ध लड़ने के लिए उतावला है। श्री कृष्ण के महान उपदेश के पूर्ण होने और श्री कृष्ण की योगमाया से बाहर आने के बाद फिर से कौरवों और पांडवों की सेना में हलचल मची। दुर्योधन ने चिल्लाकर अपने मित्र कर्ण से कहा। दुर्योधन:"अब यह अर्जुन अपने रथ को इन दोनों सेनाओं के बीच में क्यों ले आया है? यह वापस क्यों नहीं लौट रहा है? इसने अपने हथियार रख क्यों दिए हैं?"

कर्ण: प्रतीत होता है मित्र कि अर्जुन को पांडवों की हार का पहले ही पूर्वानुमान हो गया है और इसीलिए वह शांति वार्ता के उद्देश्य से दोनों सेनाओं के मध्य भाग में आ गया है। 

दुर्योधन और कर्ण दोनों मित्र हंस पड़े। 

उधर दृढनिश्चयी अर्जुन अपने स्थान पर उठ खड़े हुए। उन्होंने झुककर श्रीकृष्ण के चरणों की वंदना की। उन्होंने गांडीव धनुष को अपने हाथ में लिया। अर्जुन को रथ पर श्री कृष्ण के ठीक पीछे खड़ा हुआ न पाकर पांडव पक्ष के अनेक योद्धा चिंता ग्रस्त हो गए थे लेकिन अर्जुन को पुनः उनके स्थान पर देखकर पांडव सेना ने हर्षनाद किया। शंख बजने लगे तथा भेरी, पेशी, क्रकच और नरसिंगों के अचानक बजे उठने से वहां बड़ा भारी शब्द होने लगा। अब दोनों ही सेना के महारथी युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार हो गए। अर्जुन ने पांडव पक्ष में थोड़ी दूरी पर एक रथ में सवार अपने वीर पुत्र अभिमन्यु की ओर देखा और मुस्कुरा उठे। पिता को देखकर अभिमन्यु भी मुस्कुरा उठे। श्रीकृष्ण ने अपना प्रसिद्ध पांचजन्य शंख हाथ में लिया और उनके फूंक मारते ही संपूर्ण कुरुक्षेत्र में महाध्वनि होने लगी। 

(समाप्त)

 

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व  उनके उपलब्ध अर्थों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय