मंदिर के पट - 6 Sonali Rawat द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मंदिर के पट - 6


उसने तीन बार सांकल बजने की आवाज बिल्कुल साफ़ साफ़ सुनी थी । अपने अनुभव को झूठा कैसे समझ ले ? मन की तसल्ली के लिए उसने टार्च का रुख़ कर छत पर जाने वाली सीढ़ियों की ओर कर दिया । अचानक उसे लगा जैसे कोई साया तेजी से सीढ़ियों के ऊपरी मोड़ पर गुम हो गया । टार्च से निकले प्रकाश के दायरे में सीढ़ियों पर पड़ी धूल पर दो छोटे-छोटे मांसल पैरों के निशान पड़े हुए थे ।

रजत ने उन्हें ध्यान से देखा । उसे लगा जैसे वह इन पद - चिन्हों को पहचानता है आज से नहीं, वर्षो से वह इन चिन्हों को जानता है । जैसे ये चिन्ह किन्हीं बेहद खूबसूरत गुलाबी तलवों वाले मांसल संगमरी पाँवों के हैं जिनमें पायल बंधी हुई है फिर भी जिनके थिरकने से आवाज नहीं होती । खामोशी गुनगुना उठती है । हवाओं में संगीत भर जाता है । फिज़ा महक उठती है ।

रजत मंत्रमुग्ध सा उन्हें देखता रहा । हर सीढ़ी पर एक पांव का चिन्ह बना था । एक पर दाएं पांव का, दूसरे पर बाएं पांव का । संभल संभल कर, उन चिन्हों से बच बच कर रजत ऊपर चढ़ता गया । पद - चिन्हों का यह सिलसिला अंतिम सीढ़ी पर जाकर समाप्त हो गया ।

उसके बाद पूरी छत अछूती थी । कहीं कोई चिन्ह नहीं । कोई आहट नहीं । फिर भी लगता था जैसे कोई दैवी अस्तित्व अभी अभी यहीं कहीं खो गया हो ।

देर तक रजत छत पर चिन्ह ढूंढता रहा किंतु निराशा ही हाथ लगी । वह फिर सीढ़ियों के पास आया । एक बार फिर उन पद - चिन्हों को देखने का औत्सुक्य वह संवरण न कर पा रहा था । किंतु यह क्या ? टार्च के दायरे में अब कोई चिह्न न था । धूल की मोटी परत अछूती थी उस पर रजत के पांवों के निशान थे किंतु वे चिन्ह कहीं नहीं थे ।

रजत का मस्तिष्क घूम गया । यह सब क्या गोरखधंधा है ? क्या उसने किसी चिन्ह को नहीं देखा ? क्या उसने जो देखा सुना वह सब भ्रम था ? तो सत्य क्या है ? कहीं गेंदा सिंह के कहे अनुसार यह सब आत्माओं का खेल तो नहीं ? किंतु रजत का मन मस्तिष्क से समझौता न कर सका । उसका तर्क, उसी की बौद्धिकता उसे बार-बार कहती रही - यह सब भ्रम है । यह कुछ भी हो सकता है किंतु आत्मा कुछ नहीं है ।

रजत ने एक बार फिर छत पर खड़े होकर चारों ओर दृष्टि डाली । अंधेरे में लिपटा हुआ जंगल भयानक हो चुका था । हिंसक पशुओं की हुंकारे बीच-बीच में उभर कर वातावरण की भयंकरता को और भी बढ़ा रही थीं ।
रजत ने टीलों की ओर देखा जो रात की चादर में लगे धब्बे जैसे ही भयानक थे । अंधेरे में भी उसकी दृष्टि मंदिर वाले टीले पर ठहर गई । वह उसे अच्छी तरह पहचान पा रहा था और इस अंधेरे में भी उसे महसूस हो रहा था कि मंदिर के दोनों पट खुले हुए थे ।

गहरे अंधेरे के बीच भी मंदिर जैसे अपने अस्तित्व का आभास दिला रहा था और उसके वे खुले हुए प्रतीत होने वाले पट .....

न जाने कौन सा रहस्य उन किवाड़ों के पीछे बंद था । गेंदा सिंह से जब उसने इस संबंध में पूछा तो उसने कहा था -