मंदिर के पट - 11 Sonali Rawat द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मंदिर के पट - 11


"ओह !"

रजत गहरे सोच में डूब गया । उसकी आंखों में रूप कुमार का भोला मुख डोल गया । उसकी भोली निश्छल दृष्टि में छिपी आरजू उसका हृदय मसलने लगी । तो क्या रूपकुंवर मर चुकी है ? लेकिन यह कैसे संभव है ? वह मर चुकी है तो रातों को इस तरह भटकती क्यों है ? कहीं उसकी अतृप्त आत्मा का कोई भयानक सफ़र तो नहीं है ?

गेंदा सिंह कहता है कि रूपकुंवर को दस वर्षों से न किसी ने देखा न उसकी आवाज सुनी फिर भी वह उसे मृत नहीं मानता । इस हिसाब से तो वह अब पच्चीस छब्बीस वर्ष की युवती होगी । फिर यह सुंदरता की प्रतिमा कौन है ?

"तुम क्या पूरे एतबार से कह रहे हो गेंदा सिंह कि यह रूपकुंवर की ही तस्वीर है ?"

रजत ने पूछा ।

"हां साहब ! मैंने ऐसा रूप कहीं नहीं देखा । कुमारी जू मुझसे बहुत छोटी हैं । मैंने उनके जैसा मीठा स्वभाव, उनके जैसी सुंदरता और निश्छलता कहीं नहीं देखी । मैं कसम खाने को तैयार हूँ । यह रूप कुंवर जू ही हैं ।"

"लेकिन इस लड़की को मैंने कल भी देखा है । परसों भी देखा था । वह इतनी ही बड़ी है । ऐसी ही है । तुम्हारी रूपकुंवर जू तो अब तक बहुत बड़ी हो गई होंगी । यह तो ..... "

"यह कैसे हो सकता है साहब ? यह कुमारी जू ही हैं ।"

गेंदा सिंह ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा ।

"क्या रूपकुवर जिंदा हैं ?"

"यह आपने क्या कहा साहब ?"

"तुम ही सोचो गेंदा सिंह ! रूपकुंवर को दस वर्षों से किसी ने नहीं देखा । उनकी आवाज भी किसी ने नहीं सुनी तो क्या यह संभव नहीं कि वे मर चुकी हों ? यदि वे जीवित होतीं तो क्या अब तक उन्हें कोई न देख पाता ? उनका विवाह भी तो नहीं हुआ ।"

रजत ने कुछ सोचते हुए पूछा ।

"आप ठीक कहते हैं साहब ! लेकिन उनके मरने की कोई खबर भी तो नहीं मिली किसी को । पता नहीं । मुझे तो साहब ! बहुत डर लगता है । आपको यह सब कैसे मालूम हुआ ? कुमारी जू को आपने कैसे देखा ?"

रजत ने कोई उत्तर नहीं दिया । वह गहरी सोच में डूब गया । उसकी आंखों के सामने बार-बार रूपकुँवर का चेहरा घूमता रहा । उन अधरों की खामोश थरथराहट में कौन सी विनय कैद थी ? क्या वह रूपकुंवर ही थी या कोई और ?

कितने ही प्रश्न उसके जेहन में चक्कर काट रहे थे । सारे दिन वह मंदिर के गिर्द भटकता रहा । मंदिर के चप्पे-चप्पे की उसने जांच कर ली लेकिन उसका बंद द्वार न खुल सका । बाहर से उसने सब कुछ अच्छी तरह टटोल लिया लेकिन रहस्य की तहें खुलती नजर न आयीं ।

शाम हुई तो उसने गेंदा सिंह को छुट्टी दी । वह बोला -

"साहब ! आज मैं भी आपके साथ रहूंगा ।"

"क्यों ?"

कुछ अचरज से रजत ने पूछा ।

"मैं भी आज कुमारी जू को देखूंगा । देखूंगा कि वह कुमारी जू ही हैं या कोई और । मैं आज आपको छोड़ कर नहीं जाऊंगा साहब !"