मंदिर के पट - 10 Sonali Rawat द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मंदिर के पट - 10


रात भीगती गई । एक बज गया । वह प्रतीक्षा करते करते थक कर मुंडेर पर सिर रखे अपनी नींद से बोझिल पलकों को आराम देने लगा ।

कितनी देर सोया कुछ पता न चला । एक हल्की सी आहट से उसकी आंखें खुल गयीं । उसने देखा - उसके चारों ओर सफेद बादलों का एक टुकड़ा मडरा रहा था । उसने उठने का प्रयत्न किया लेकिन सफल न हो सका । जैसे शरीर अपने स्थान पर जड़ हो गया था । वह अपने हाथ पांव भी नहीं हिला सकता था ।

थोड़ी देर में बादलों के उस टुकड़े की धज्जियां बिखर गयीं । हल्की सी धुंध चारों ओर बिखरी रही और उसमें से धीरे-धीरे एक आकार स्पष्ट होने लगा । वह धुंधला सा आकार ... वही अनुपम सौंदर्य । काली घनी अलकों से घिरा चांद जैसा मुखड़ा । काली-काली विशाल आंखें और थरथराते गुलाब की पत्तियों जैसे अधर । आज भी उसके बालों से पानी टपक रहा था । सफेद साड़ी में लिपटा हुआ उसका बदन और कपड़ों के नीचे से झांकते मरमरी पांव ।

रजत मुग्ध सा उसे देखता रहा । वह कुछ पूछना चाहता था । कुछ कहना चाहता था किंतु उसके बोल साथ नहीं दे रहे थे । उस चंद्र मुख पर छायी विषाद की रेखाएं उससे कुछ अनुनय कर रही थीं । कुछ कहना चाह रही थीं । कुछ अपेक्षा रखती प्रतीत हो रही थीं ।

कुछ ही क्षणों बाद वह आकृति धुंध में समा गई । रजत चौंक कर उठ बैठा । उसने देखा - रुई के फाहे जैसे बादल तेजी से मंडराते हुए मंदिर के कंगूरे पर जाकर लुप्त हो गए ।

उसके बाद रजत सो न सका । पौ फटने में एक घंटे की देर थी । सूनी छत पर बैठा हुआ वह दूर-दूर तक फैले अंधकार के साम्राज्य को देखता रहा । उस अपरिचिता के विषय में सोचते सोचते सवेरा हो गया ।

नित्यकर्म से निबट कर जब वह अपने कमरे में पहुंचा गेंदा सिंह आ चुका था और चाय की केतली चूल्हे पर रखे आग ठीक कर रहा था ।

रजत कमरे में जाकर एक दिन पूर्व खिंचे खाके में रंग भरने की तैयारी करने लगा । अभी उसमें रंग भरना शुरू ही किया था कि गेंदा सिंह चाय ले आया । चाय का प्याला रखते समय उसकी दृष्टि चित्र पर पड़ी और वह चीख पड़ा ।

"क्या हुआ ?"

रजत ने घबरा कर पूछा ।

"कुमारी जू .... आप कुमारी जू को जानते हैं ?"

गेंदा सिंह ने चकित और भयभीत दृष्टि से चित्र की ओर देखते हुए पूछा ।

"कौन कुमारी जू ? मैं उन्हें कैसे जानूंगा ?"

"कुमारी रूप कुंवर जू । यह चित्र तो उन्हीं का है । दस बरस पहले जब वे मंदिर में पूजा करने आती थीं तब ऐसे ही सफेद धोती पहने, बाएं हाथ में पूजा का थाल लिए आती थीं । तुरंत नहा कर मंदिर में जाते समय उनके बालों से पानी टपकता रहता था । बिल्कुल वही मूरत । वही रूप है साहब ! लेकिन आपने उन्हें कब देखा ?"

"तुमने उन्हें कब से नहीं देखा गेंदा सिंह ?"

रजत ने उसके प्रश्न का उत्तर न देते हुए पूछा ।

"कोई दस बरस हुए होंगे जब वह पूजा के लिए आती थी । सारा गांव देखता था कुमारी जू को । बड़ा प्यारा स्वभाव था उनका लेकिन जब से मंदिर के कपाट बंद हुए उन्हें फिर किसी ने नहीं देखा ।"