America aisa Laddoo Jo Khaye wo Pachhtaye .... books and stories free download online pdf in Hindi

अमेरिका ऐसा लड्डू जो खाये वो पछताए और ….

 

                         अमेरिका  ऐसा लड्डू जो खाये वो  पछताए और  …. 


रिटायरमेंट के बाद घर में बस दो प्राणी बच गए  हैं   , एक मैं और दूसरा मेरा  जीवनसाथी अमन .  दोनों बच्चे पढ़ लिख कर वर्षों पहले अमेरिका में सैटल कर गए हैं   .  लगभग हर साल कुछ महीनों  के लिए हम दोनों अमेरिका जाते रहते हैं   .  मेरी पुरानी आदत है  ,  सुबह और शाम की चाय बालकनी में अमन के साथ बैठ कर पीने की  . यही आदत अमेरिका में भी बनी रही , वहां भी जब मौसम अच्छा रहता पैटिओ में ही दोनों साथ चाय पीते  . 


बाहर बैठ कर चाय पीने का जो मजा  इंडिया में है वह अमेरिका में नहीं है   . यहाँ  बालकनी में चाय की चुस्की लेते और साथ ही नीचे आते जाते लोगों को देख कर भी  मन बहला लेते हैं   . यहाँ सड़क पर कुत्ते , गाय , भैस आदि भी नजर आते हैं  . अमेरिका में तो आदमी बाहर न के बराबर  ही दिखते हैं , कारें खूब दौड़ती नजर आतीं हैं  . कभी कभी किसी की बिल्ली हमारे अहाते में आ जाती तो पुचकारने पर भाग जाती थी  . हाँ यहाँ  अक्सर बालकनी में बैठे नीचे आने जाने वाली बुजुर्ग  जोड़ियों को देख कर हम अनुमान लगाते हैं कि इनकी उम्र हम से ज्यादा है या कम , या क्या ये भी अपने घर में हमारी तरह अकेले बच गए हैं  . अमेरिका में तो बुजुर्गों को बुढ़ापा अकेले  ही काटना पड़ता है  . 


मैं जब भी यहाँ  बालकनी से नीचे एक बुजुर्ग दंपत्ति को देखती तो सोचने को मजबूर हो जाती कि आदमी जीने के लिए क्यों इतना मजबूर है  . यह दंपत्ति 70 से ऊपर की होगी   . रोज सुबह औरत सर पर गठरी लिए और उसके पीछे उसका आदमी उसकी  पीठ का सहारा लिए चलता हुआ कहीं जाता है ,  मेरा अनुमान है कि वह ठीक से देख नहीं पाता है   . फिर शाम को उसी तरह दोनों साथ लौटा करते हैं  . उसे देख कर मैं  अमन से बोलती “ हम दोनों भी तो इनकी तरह जीने को मजबूर हैं  हालांकि इनकी तुलना में आर्थिक और शारीरिक रूप से बेहतर स्थिति में हैं   . आखिर हमारे लिए भी तो जीना उम्र कैद की सजा से कम नहीं है  .अब  हमारे जीने का उद्देश्य  क्या रह गया है , कभी सोचने पर मजबूर हो जाते हैं ?  “


“ तुम ठीक कह रही हो , पर भीष्मपितामह  की तरह  हमें इच्छा मृत्यु तो प्राप्त नहीं है  . इसलिए मौत का इंतजार करना ही होगा क्योंकि आत्महत्या करने की भी कोई वज़ह नहीं है और न ही यह कानूनन सही है  . कम से कम हम जब जी चाहे कुछ महीनों के लिए बच्चों के पास अमेरिका घूम तो आते हैं  .लाइफ में  कुछ चेंज होने से अच्छा लगता है  . “   अमन ने समझाते हुए कहा   . 


“ पर देखा जाए तो वहां  अमेरिका में भी तो हम हाउस अरेस्ट ही होते हैं  . यहाँ  हम अपनी मर्जी से अकेले भी बाहर निकल कर घूम आते हैं , कभी अपने मन से समोसे पकौड़े आदि खरीद लाते हैं और चाय का आनंद लेते हैं  . अमेरिका में  तो हम ड्राइव करते नहीं और कोई भी जगह इतनी नजदीक नहीं  है जहाँ पैदल जा कर कुछ समय बिता सकें  . मजबूरन घर में बैठे रहना पड़ता है , कभी लाइब्रेरी से कुछ किताबें ला कर पढ़ लेते हैं तो कभी टीवी देख लेते हैं  . फिर भी दिन काटे नहीं कटता है  . एक एक दिन गिन गिन  कर गुजरता है  . “  


अमन ने कहा “ हाँ , वह तो है  . आजकल ज्यादा ही बोरियत है  . पहले नाती पोते  छोटे थे तो वे कुछ समय हमारे साथ बिताया करते थे  . अब वे भी बड़े हो गए हैं  . वे भी पढ़ाई के अलावा स्पोर्ट्स , अन्य प्रोजेक्ट्स आदि गतिविधियों में काफी व्यस्त रहते हैं  . हमारे अपने बच्चे सुबह सुबह दफ्तर निकल जाते हैं तो देर शाम तक ही घर वापस आते हैं  . किसी तरह कुछ समय निकाल कर बात करते हैं या हालचाल पूछ लेते हैं  . कहने को तो देश में लोग सोचते हैं कि हर साल हम अमेरिका जा कर खूब मौज मस्ती काटते हैं  .  सच तो यह है कि कुछ लोगों की देखादेखी हमने खुद अपने बच्चों को शुरू से अमेरिका जाने के  लिए प्रेरित किया  . एक तरह से हमारे लिए दिखावे का स्टेटस सिंबल है  . “ 


“ जो भी हो कुलमिला कर हमारा फैसला बच्चों के हित  में रहा है  . अमेरिका  की लाइफस्टाइल , अनुशासन और  कर्रिएर ग्रोथ के  अवसर बेहतर हैं , इसमें कोई दो मत नहीं है  . अपनी कार्यकुशलता के अनुसार आप दफ्तर में सर्वोच्च पद पा सकते हैं , नो पॉलिटिक्स , कास्टिज्म या रिजर्वेशन , इसलिए बच्चे भी खुश रहते हैं  . एक तरह से उनकी ख़ुशी के लिए हमारा थोड़ा सा बलिदान है यह  . “  


“ मैं लाइफस्टाइल वाली बात से ज्यादा प्रभावित नहीं हूँ  . वहाँ खाना बनाना , बर्तन धोना , कपड़े धोना , घर की साफ़ सफाई आदि सब खुद करना होता है  हालांकि  कुछ काम मशीन कर देते हैं  . हमारे यहाँ ऐसे कामों के लिए डोमेस्टिक हेल्प मिल जाते हैं  . वहां  कुछ कामों के लिए लेबर मिल सकते हैं पर लेबर कॉस्ट इतना  मंहगा है कि सभी कामों के लिए असम्भव  है  .और अमेरिका में फ्रोजेन फ़ूड या माइक्रोवेव कर बासी फ़ूड खाते खाते मन ऊब जाता था  जबकि यहाँ रोज के बने ताजा भोजन का मज़ा ही कुछ और है  .  “  


मैंने कहा “ तुम्हें याद होगा शुरू में अमेरिका जाते समय बच्चों ने कहा था कि बस कुछ वर्षों की बात है , उसके बाद हम वापस आ जायेंगे  और हमने भी यही सोचा था . ग्रीन कार्ड और सिटीजनशिप के इन्तजार में  साल दर साल गुजरते गए , करीब 20 साल या ज्यादा भी लग जाते हैं   .  उनकी भी उम्र हो चली है ,उनका  बुढ़ापा भी दस्तक देने वाला ही है  अब तो स्थिति यह है कि चाह कर भी उनके लिए वापस आना अगर असम्भव नहीं है फिर भी अत्यंत कठिन है  . ख़ुशी की बात यह है कि हमारे बच्चों ने हर साल कुछ महीनों के लिए यहाँ अमेरिका में साथ  रहने के लिए हमलोगों का ग्रीन कार्ड बनवा दिया है  . अब हमें इन्हें खुश देख कर संतोष करना चाहिए  . “ 


“ अरे नीचे देखो , शर्मा और मिसेज शर्मा जा रहे हैं  . उन्हें बुलाता हूँ , कुछ गपशप करेंगे तो अच्छा लगेगा  .  “ अमन ने कहा 


“ बुला सकते हैं पर मुझे दुबारा चाय बनानी होगी  . “ 


“ हाँ , वह तो है  . सोच लो क्या अच्छा होगा क्योंकि हर दवा के कुछ साइड इफेक्ट्स होते हैं  . डॉक्टर प्रोज एंड कोन्स देख कर देते हैं  . हमलोगों का कुछ टाइम पास हो जायेगा , बैठे बैठे बोर हो रहे हैं  . “ 


“ ठीक है , बुला लेते हैं  . “  मैंने कहा और मेरे कहने के साथ अमन ने उन्हें ऊपर बुला लिया  .  मैं कुछ देर किचेन से चाय और कुछ स्नैक्स ले कर आयी और साथ में बैठ गयी  . 


उनके आने पर पहले आपस में नमस्कार हुआ फिर अमन ने कहा “ कहिये क्या हाल है ? “ 


मिसेज शर्मा ने कहा “ अभी दो दिन पहले ही हमलोग अमेरिका से लौटे हैं   . अब यहाँ अपने देश में आ कर हाल बेहतर हुआ  . वहां तो मत पूछिए  .. “ 


“ क्यों , क्या हुआ ? “ 


“ बेटे ने टिकट भेज कर बुला लिया  . वहां करीब तीन महीने का समर वेकेशन होता है  . पोता अभी छोटा है और बेटा  बहू दोनों जॉब में हैं  . “


“ अच्छा तो है  . “  मैंने कहा 


“ खाक अच्छा है  . वहां काम करते करते दिवाला निकल जाता है खास कर मेरा  . यहाँ तो काम वाली है , कुक है , धोबी है तो आराम से रहते हैं  . वहां सब काम खुद करना पड़ता है  . बच्चे की देखभाल भी करनी होती है  . वहां लेबर बहुत कॉस्टली है  . इमरजेंसी में पार्ट टाइम कभी बुला लेते हैं पर रेगुलर तो किसी के लिए सम्भव नहीं है  . “ 

“ आप सही फरमा  रहीं हैं  . पहले हमें भी इस दौर से गुजरना पड़ा था पर अब उनके बच्चे भी बड़े हो गए हैं और सभी कुछ न कुछ काम में हाथ बंटाते है इसलिए ज्यादा लोड नहीं पड़ता है  . फिर भी कुलमिला कर यहीं अच्छा लगता है  . “  मैंने कहा 


शर्माजी ने कहा “ भाभीजी , अमेरिका एक ऐसा लड्डू है जो खाये वो भी पछताए जो न खाये वो भी पछताए  . जिनके बच्चे वहां नहीं गए हैं वे उन्हें वहां भेजने के लिए परेशन हैं  . वे किसी तरह संपत्ति गिरवी रख कर या बेच कर भी बच्चों को अमेरिका भेजते  हैं यह सोच कर कि डॉलर की कमाई सारी भरपाई कर देगा  . कुछ के साथ ऐसा होता भी है यही देख कर माता पिता उन्हें भेजते हैं  . वहां जा कर अक्सर काफी बच्चे चक्रव्यूह में फंस जाते हैं और  उन्हें  काफी पापड़ बेलने होते हैं  . कुछ को तो अपना खर्च चलाने के लिए बहुत ही छोटा मोटा काम करना पड़ता है जैसे होटल में वेटर का  . हालांकि अच्छी बात यह है कि अमरीका में डिग्निटी ऑफ़ लेबर है , कोई भी काम छोटा नहीं समझा जाता है  . और जिनके बच्चे चले गए वे भी परेशान  हैं  . वैसे सच कहें तो बुढ़ापे में भारत ही सबसे अच्छा है  . “ 


“ सही कहा है शर्मा ने  अमेरिका एक लड्डू है जो खाये वह पछताए और जो ना खाये वह भी पछताए    ….  . “ अमन बोला और सभी एक साथ हँस पड़े  . 

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