'कल रात हम होटल में रुके थे। हाँ! हम सबके रूम अलग-अलग हैं। आज हम पूरे दिन आगरा में रहेंगे। हम ताजमहल और आसपास के अन्य जगह पर घूमेंगे।
'ठीक है, अब मैं फोन रखता हूँ।' ये कहकर कृपेश फोन काटने गया।
'हे रूक, अभी फोन मत काट, तूझे वो शर्त याद है ना?' सामने से आवाज सुनाई दी।
'हाँ भाई याद है। थोड़ा वक्त लगेगा यार। ठीक है, मैं तुझे थोड़ी देर बाद फोन करता हूँ।' ये कहकर कृपेश ने फोन रखा।
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'अदभुत! ये ताजमहल कितना सुंदर है!' कृपेश ने ताजमहल की तारीफ करते हुए कहा।
'चलो एक ग्रुप सेल्फी लेते हैं।' कृपेश ने कहा।
ऑफिस के सभी सदस्य सेल्फी में आने के लिए धक्का-मुक्की करने लगे।
'सब आ गए?' कृपेश ने पूछा।
'रुको, रूप बाकी है।' कृपाली ने कहा।
'रूप, जल्दी आ। सब ग्रुप सेल्फी ले रहे है।' कृपाली ने कहा।
'रहने दो! तुम लोग ले लो, मैं नहीं आ रही।' कहकर रूप पास की एक बेंच पर जाकर बैठ गई।
सबने साथ में कई फोटो खींचे, लेकिन रूप अब भी उस बेंच पर अकेली बैठी थी।
'ये कृपाली वो रूप वहाँ अकेली क्यों बैठी है?' कृपेश ने कृपाली से पूछा।
'आप ऑफिस में नए हैं, है ना? इसलिए आप नहीं जानते। रूप अकेले रहना पसंद करती हैं।
'ऐसा क्यों?'
'लोग भावनाओं से खेले उससे बेहतर है की अकेले रहना। ऐसा रूप मानती है।'
'ओह! इसका मतलब है कि किसी ने रूप का दिल तोड़ा है!'
'अफेयर था। उस लड़के का किसी दूसरी लड़की से अफेयर था जिससे रूप अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती थी। रूप अपने प्रेमी को सारी दुनिया से भी ज्यादा प्यार करती थी, लेकिन वो साला लंपट निकला। बिचारी रूप का दिल टूट गया।'
'ओह! उसके साथ ये ठीक नहीं हुआ।'
रूपाली जिस बेंच पे बैठी थी कृपेश भी रूप के पास जाकर बैठ गया।
'हाय! आई एम कृपेश।'
'हेलो!'
'बहुत सुंदर, है ना ताजमहल?'
'हाँ। सुंदर! बहुत सुंदर!'
'आप तो जानती ही होंगी की ये प्रेम का प्रतीक है। अपनी पत्नी मुमताज की मृत्यु के बाद, शाहजहाँ ने उसकी याद में ताजमहल बनवाया था...'
'किसी के मरने के बाद उसकी याद में इमारत बनाने का क्या फायदा? एक जीवित व्यक्ति की कदर करना ही सच्चा प्यार है!' कृपेश ने रूखेपन से कहा।
'कृपेश ने कुछ क्षण चुप रहा, फिर बाद में उसने कहा। 'कभी-कभी किसी इंसान को अपना प्यार दिखाने में थोड़ी देर हो जाती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह आपसे बिल्कुल भी प्यार नहीं करता था।' यह कहकर कृपेश बेंच से उठा और जाने लगा।
कृपेश की बात ने रूप के मन पर गहरी छाप छोड़ी। उसकी बातों ने रूप को सोचने पर मजबूर कर दिया। जैसे ही कृपेश जा रहा था, रूप ने पीछे से उसका नाम पुकारा।
'वैसे, मेरा नाम रूप है! मेरा असली नाम रूपाली है, मेरे ब्रेकअप के बाद मैंने अपना नाम बदलकर रूप रख लिया।
'तुम्हारे दोनों ही नाम सुंदर हैं, रूप।' कृपेश ने कहा और वापस बेंच पर बैठ गया।
'थैंक यू।' रुप ने कहा।
कुछ ही वक्त में कृपेश और रूप अच्छे दोस्त बन गए। दोनों ने एक दूसरे के नंबर एक्सचेंज किए। रूप की कृपेश के साथ बनने लगी। वो कृपेश की कंपनी(साथ) में पहले से ज्यादा खुश थी। वह कृपेश को पसंद करने लगी।
यात्रा समाप्त होने में केवल दो दिन शेष थे।
रात के दस बज रहे थे और रूप अपने होटल के कमरे में आईने के सामने बैठी थी। उसके कमरे में सॉफ्ट रोमांटिक गाने बज रहे थे। वह आईने के सामने बैठी थी तभी अचानक उसके कमरे की डोरबेल बजी।
रूप ने दरवाजा खोला तो सामने कृपेश खड़ा था।
'हे रूप यार, मुझे नींद नहीं आ रही थी। तो सोचा तुमसे थोड़ी बाते कर लूं। तो मैं चला आया। वैसे, तुम सोने तो नहीं जा रही ना?'
'नहीं नहीं। अच्छा हुआ तुम आ गए। मुझे भी नींद नही आ रही थी। और वैसे भी मुझे तुम्हारी कंपनी पसंद है।'
'क्या तुम सच में मेरी कंपनी को पसंद करती हो?'
'हाँ करती हु!' रूप ने कहा।
दोनों घंटों बात करते रहे। बातें करते-करते कब वे दोनों एक-दूसरे के एकदम करीब आकर बैठ गए, उन्हें पता ही नहीं चला।
'देखो, ये मेरी माँ है।' रूप ने अपने फोन में अपनी मां की फोटो दिखाते हुए कहा।
लेकिन कृपेश का ध्यान फोन पर नहीं था। वह रूप के रेशमी बालों का आनंद ले रहा था जो धीरे से उसके चेहरे छू रहे थे।
फोन में फोटो दिखाते हुए रूप ने कृपेश की तरफ देखा।
रूप कृपेश को देखने लगी। रूप अपने होठों को कृपेश के होठों के बहुत करीब ले गई। थोड़ी ही देर में दोनो के शरीर पर से कपड़ो के आवरण उतरने लगे। उनके होठों से शुरू हुआ प्यार अब उनके शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुंच गया।
रूह की शरीर का आखिरी कपड़ा भी उतर गया। और फिर शुरुआत हुए एक दूसरे के शरीर में प्रवेशने की।
कमरे में बज रहे रोमांटिक गाने की आवाज के साथ अब रूप की आवाज भी जुड़ गई।
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'सब लोग तैयार हो जाओ और जल्दी से अपना बैग लेकर नीचे आ जाओ।' सुबह छह बजे ऑफिस ट्रिप का व्हाट्सएप ग्रुप में मैसेज आया।
रूप जल्दी से तैयार होकर कृपेश के कमरे की ओर जाने लगी। कृपेश के कमरे का दरवाजा खुला था। रूप ने धीरे से दरवाजा खोला।
कृपेश फोन पर किसी से बात कर रहा था।
'अरे, कल के बारे में तो मत पूछ। मजा ही आ गया। देख, तू ने जो शर्त रखी थी, वो मेंने पूरी कर दी। तेरी शर्त के मुताबिक मेंने ऑफिस की लड़कियों में से एक के साथ रात बिताई है। लेकिन यार, बेचारी का दिल फिर से टूटे जाएगा। लेकिन छोड़ अपने को क्या फरक पड़ता है! लेकिन यार, एक बात तो तुझे माननी पड़ेगी! उसका शरीर बड़ा कमाल का था! इतना मजा पहली बार आया है। उनका शरीर छोड़ने का मन नहीं कर रहा था। जो मजा आया है ना बॉस, पूछ ही मत।'
- प्रविण राजपुत 'कन्हई'