शादी और में pravin Rajput Kanhai द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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शादी और में

'माँ मैं किसी से भी शादी करने के मूड में नहीं हूँ, मैंने फैसला किया है कि मैं बत्तीस साल की उम्र में शादी करूँगी। तब तक मैं और मेरा करियर... फिलहाल शादी में मेरी बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है.' कहकर रेखा ने दरवाजा बंद किया और अपने कमरे में चली गई।

रेखा बाईस साल की थीं। वह एसबीआई बैंक के क्रेडिट कार्ड सेक्शन में कार्यरत थी। उसके माता-पिता चाहते थे कि वह अपनी नौकरी छोड़ दे और किसी अच्छे लड़के से शादी कर ले। लेकिन रेखा ऐसा नहीं चाहती थीं। वह अपने जीवन की हर संभावना का आनंद लेना चाहती थी। ऐसा नहीं था कि रेखा शादी नहीं करना चाहती थीं, रेखा शादी करना चाहती थीं, लेकिन बत्तीस साल की उम्र के बाद।

'तुमने ही उसे अपने सिर पर चढ़ा रखा है। मेरे मना करने के बाद भी तुमने उसे काम करने जाने दिया। एक बार किसी पंछी के पंख खुल जाते है तो अपने पिंजरे में वापस नहीं आता। इस उम्र में शादी नहीं करेंगी तो कब करेंगी? एक बार उम्र निकल जाए तो अच्छा लड़का नहीं मिलता।' रेखा के पिता संजयभाई ने कहा।

'चलो, मैं रेखा को समझाता हूँ।' रेखा के दादा ने कहा जो कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। उन्होंने अखबार टेबल पर रख दिया और रेखा के कमरे में चले गया।

'क्या हुआ बेटा, तुम इतने गुस्से में क्यों हो?'

'आप ही बताओ, दादा, क्या यह शादी करने की उम्र है? अभी तो मैं केवल बाईस साल की हूँ। मैंने अभी तो उड़ना सीखा है और ये लोग मेरे पंखों को काटने की कोशिश कर रहे हैं। मेरी दुनिया घूमने की उम्र में मुझे कैदी बनाना चाहते है।'

'तुम्हें क्या लगता है कि शादी इंसान को कैदी बना देती है?'

'दादाजी, अगर आप भी मुझे शादी के लिए मनाने आए हैं, तो कृपया मुझे माफ करे। मुझे शादी में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है।'

'नहीं नही, मैं तुम्हें शादी के लिए मनाने नही आया? मैं तो केवल यह जानने आया हूं कि तुम्हारे मन में ऐसा क्या है जिसने तुम्हें शादी का इतना बड़ा विरोधी बना दिया है।'

'तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि कोई शादी हमे कैदी बना देती है।' दादाजी ने फिर पूछा।

'मेरी एक सहेली थी, आँचल! एक आजाद पंछी, हंसती, खेलती, लेकिन जब से उसकी शादी हुई है, वह पिंजरे का पंछी बन गई है।' रेखा ने आह भरते हुए कहा।

'तो ये बात है। यही एकमात्र कारण है कि कोई और भी है?'

'मुझे लगता है कि मुझे पहले अपना करियर बनाना चाहिए, अगर मैं बत्तीस साल की उम्र में शादी करती हूं तो मुझे लगता है कि मैं थोड़ा और मैच्योर हो जाऊंगी। जिससे मैं शादी के बाद के माहोल को और भी बेहतर तरीके से हैंडल कर सकूं। और वैसे भी सभी बुद्धिमान लोग देर से शादी करते हैं। आप देखिए विदेश में लोग कितनी देर से शादी करते हैं!'

रेखा की बातें सुनकर दादाजी हल्के से मुस्कराए। तो तुम ये कहना चाहती हो कि जल्दी शादी करने वाले मूर्ख होते हैं?

'शायद!'

'ओह, तुम्हें पता है कि मैंने भी जल्दी शादी कर ली थी। लगभग चौबीस साल की उम्र में... तुम्हारी दादी और मैंने लव मैरेज की थी। क्या तुम जल्दी शादी करने के पीछे का लॉजिक जानती हो?'

'नहीं दादाजी, मुझे नहीं पता।'

'जब किसी व्यक्ति की उम्र बाईस वर्ष की होती है, तब उसके विचार और मान्यताए लचीले होते हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति बत्तीस वर्ष की आयु तक पहुंचता है, तो उसकी मान्यताएं और उसके विचार पहले जड़ हो चुके होते हैं। अधिकांश तलाक के पीछे यही एक प्रमुख कारण है। अधिक उम्र में विवाह करने के कारण उनके विचार कठोर हो गए होते हैं जिसके कारण वे एक दूसरे के विचारों को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। और फिर तलाक...' थोड़ा देर चुप रह कर दादाजी ने बात जारी रखी। 'हां, इसका मतलब यह नहीं है कि तलाक का यही एकमात्र कारण है, और भी कारण हो सकते हैं, लेकिन यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है।'

'देख बेटा, 'शादी करना' 'न करना' ये फैसला पूरी तरह से तुम्हारा अपना होना चाहिए। मेरा मानना है कि इंसान की जिंदगी का हर फैसला उसका अपना होना चाहिए। यदि हम अपने जीवन में किसी और के प्रभाव से निर्णय लेते हैं तो हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। जीवन हमारा है तो इस जीवन को कैसे जीना है यह भी सो प्रतिशत हमारा ही तय किया होना चाहिए।'

रेखा के कमरे से निकलकर दादाजी ने फिर बोलना जारी रखा। 'बेटा, जिंदगी जीने की इतनी जल्दी मत करना कि जिंदगी से आगे निकल जाने पर पीछे मुड़कर देखने पर पछतावे के सिवा कुछ नजर न आए।'

दादाजी की बातों ने रेखा को सोचने पर मजबूर कर दिया। 'दादाजी ठीक कह रहे थे। लेकिन उसकी आजादी...?' रेखा ने सोचा।

रेखा ने दरवाजा खोला और कमरे से बाहर आ गई। रेखा के चेहरे पर मुस्कान थी।

'तो तुमने क्या सोचा, रेखा?'

'मैं शादी करने के लिए तैयार हूं, लेकिन एक या दो साल बाद, तब तक मैं दुनिया घूमना चाहती हूं। एक पंछी की तरह रेखा ने अपने पंख फैलाकर अपने निर्णय लिए और उस खुले आकाश में उड़ने की तैयारी करने लगी।


- प्रविण राजपुत 'कन्हई'