कुरुक्षेत्र की पहली सुबह - 42 Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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कुरुक्षेत्र की पहली सुबह - 42

42.तेरा विस्तार

अर्जुन ने श्री कृष्ण का मानव रूप देखा हुआ है। जब से श्री कृष्ण ने उन्हें ब्रह्मांड की उत्पत्ति और ईश्वर की भूमिका के संबंध में विस्तार से जानकारी दी है, अर्जुन ईश्वर के संपूर्ण स्वरूप को जानने के लिए उत्सुक हैं। अभी कुछ देर पहले श्री कृष्ण ने अपनी विभूतियों की चर्चा की। अब अर्जुन जानना चाहते थे कि श्री कृष्ण सृष्टि में किन विभूतियों को श्रेष्ठ मानते हैं। 

अर्जुन: हे श्री कृष्ण!आप सर्वशक्तिमान हैं लेकिन आप अपने इस सर्वश्रेष्ठ मानव रूप के अतिरिक्त और किन-किन रूपों में सर्वाधिक तेज युक्त हैं?

मुस्कुराते हुए श्री कृष्ण ने कहा , "मैं सभी प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा हूं। समस्त प्राणियों का आदि, मध्य और अंत मैं हूं। 

अर्जुन: हे श्री कृष्ण!सभी प्राणियों की उत्पत्ति, उनके विस्तार से लेकर उनके समापन की संपूर्ण प्रक्रिया में आप स्वयं हैं। 

अर्जुन सोच रहे हैं। उधर श्री कृष्ण आगे कह रहे हैं। 

श्री कृष्ण: मैं अदिति के 12 पुत्रों में विष्णु और ज्योतियों में सूर्य हूं। मैं 49 वायु देवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूं। 

अर्जुन प्रसन्न हो गए। सूर्य भी प्रभु और चंद्र भी प्रभु, क्योंकि हमारी पृथ्वी के परित: सर्वाधिक प्रभावशाली और स्पष्ट स्थिति अगर किन्ही ब्रह्मांडीय कारकों की है तो वे सूर्य और चंद्र ही हैं। 

श्री कृष्ण आगे कह रहे हैं। 

श्री कृष्ण:मैं वेदोंमें सामवेद हूँ, देवताओंमें इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मन हूँ और प्राणियों की चेतना हूँ। इसे तुम प्राणियों की जीवन शक्ति समझो अर्जुन!मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूँ और यक्ष तथा राक्षसों में धनपति कुबेर हूँ;आठ वसुओं में अग्नि हूँ तथा शिखर वाले पर्वतों में सुमेरु हूँ। 

श्रीकृष्ण आगे अपनी श्रेष्ठ विभूतियों का वर्णन करते गए। देव गुरु बृहस्पति के रूप में श्रीकृष्ण स्वयं पुरोहितों के मुखिया हैं। सेनापतियों में कुमार कार्तिकेय और जलाशयों में विशाल समुद्र हैं। वे महर्षियों में भृगु ऋषि हैं तो शब्दों में ब्रह्मांड की एक अक्षर ध्वनि ओंकार हैं। वेद में सामवेद, यज्ञ में जप हैं तो अचल हिमालय हैं। श्री कृष्ण कहते जा रहे हैं और अर्जुन के सामने एक एक कर इन साकार विभूतियों के चित्र प्रकट हो रहे हैं। वृक्षों में पीपल का वृक्ष तो देवर्षियों में नारद मुनि, गंधर्व में चित्ररथ और साधकों में कपिल मुनि, घोड़ों में समुद्र मंथन के समय उत्पन्न होने वाला उच्चै:श्रवा, हाथियों में ऐरावत, मनुष्यों में राजा , श्री कृष्ण शस्त्रों में वज्र  और गायों में कामधेनु, शास्त्र अनुकूल रीति से संतान की उत्पत्ति हेतु कामदेव हैं तो सर्पों में सर्पराज वासुकि हैं। वे नागों में शेषनाग हैं तो जलचरों में वरुण देवता है और पितरों में अर्यमा हैं। वे शासकों में यमराज, दैत्यों में प्रहलाद, गणना करने वालों में समय , पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुण हैं। वे पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्र धारियों में श्री राम हैं। 

श्री राम का नाम प्रभु श्री कृष्ण के मुखारविंद से उच्चारित होते ही अर्जुन रोमांचित हो गए। अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान श्री हनुमान जी के मुख से निकला- जय श्री राम, जय श्री कृष्ण। यह एक अद्भुत समागम है। त्रेता युग के श्री राम अपने कृष्ण रूप में दोनों भक्तों के साथ हैं। राम भक्त हनुमान ध्वजा पर तो रथ पर कृष्ण भक्त अर्जुन। 

श्रीराम ने अत्याचारी रावण के कष्टों से मनुष्यों को मुक्ति प्रदान करने के लिए एक महाअभियान प्रारंभ किया था। यह अभियान केवल माता सीता को रावण की कैद से मुक्त कराने तक ही सीमित नहीं था बल्कि यह लंका में सुशासन की स्थापना और भारतवर्ष के सभी प्राणियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भी था। लंका विजय के बाद श्री राम ने राम राज्य की स्थापना की जहां सभी प्राणी सुख शांति और समृद्धि के साथ रहते थे। उनमें परस्पर सद्भाव था। एकता थी। स्वयं शासक के रूप में श्री राम में जनकल्याण की भावना और प्रजा के प्रति गहरी संवेदना थी। 

उधर श्री कृष्ण आगे वर्णन करते जा रहे हैं। मैं मछलियों में मगर, नदियों में गंगा, विद्या में श्रेष्ठ अध्यात्म या ब्रह्मविद्या और विवाद करने वालों में तत्वनिर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूं। मैं अक्षरों में अकार हूं और समासों में द्वंद्व समास हूं।