नेतराम तांगेवाला बस अड्डे से यात्रियों को आस पास के गांव में छोड़ता और लाता था। तांगा घोड़ा ही उसकी रोजी-रोटी थी।
नेतराम वैसे तो मेहनती ईमानदार पुरुष था, लेकिन उसके अंदर एक बहुत बड़ी कमी थी कि वह छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो जाता था, जैसे सब्जी में नमक कम क्यों है, रास्ते में कोई मोटर गाड़ी जब उसे रास्ता ना दे आदि।
नेतराम की पत्नी उसे हमेशा समझाती थी कि आप छोटी-छोटी बातों पर कभी अपने से कभी दूसरों से गुस्सा होना छोड़ दो , वरना आप किसी दिन बड़ी उलझन में फंस सकते हो, लेकिन नेतराम अपनी पत्नी की बातों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता था।
और रोज की तरह पत्नी की सारी बातें भूलकर तांगा लेकर बस अड्डे पर यात्रियों को उनके ठिकाने पर छोड़ने चला जाता था।
और जब भी उसे यात्रियों को छोड़ने के बाद फुर्सत मिलती थी, वह उस चाय की दुकान पर जरूर चाय पीने जाता था, जिसके पीछे घना जंगल था।
एक दिन नेतराम चाय की दुकान पर चाय पी रहा था, तो उसी समय चाय की दुकान के पीछे वाले जंगल से भालू और बंदर के हट्टे कट्टे बच्चे चाय की दुकान के पास आकर नेतराम के तांगे को हाथ लगाकर बड़े प्यार से देखकर बहुत खुश होते हैं।
लेकिन नेतराम उनकी इस मामूली सी शरारत पर भालू और बंदर के बच्चों को हद से ज्यादा क्रोधित होकर पीट-पीट कर और बहुत अपमानित करके वहां से भगा देता है।
और दूसरे दिन जब नेतराम उसी चाय की दुकान पर चाय पी रहा था, तो उसकी आंखों के सामने भालू और बंदर के बच्चे अपने अपमान का बदला लेने के लिए मौका देख कर नेतराम का घोड़े के साथ तांगा लेकर घने जंगल में ना जाने कहां गायब हो जाते हैं।
नेतराम गुस्से में उनके पीछे भागता हुआ खुद भी घने जंगल में घुस जाता है, और घने जंगल में खूंखार जानवरों से अपनी जान बचाते हुए अपने तांगे को ढूंढता है, लेकिन बहुत मेहनत से घोड़ा तांगा ढूंढने के बाद उसे अपना घोड़ा तांगा नहीं मिलते हैं।
और फिर नेतराम बहुत दुखी निराश उदास अपने घर खाली हाथ लौट आता है।
नेतराम घर आकर बहुत दुखी होकर अपनी पत्नी को सारी घटना बताता है कि छोटी-छोटी बातों पर दूसरों पर गुस्सा करने की वजह से मेरा तांगा आज मेरे हाथ से निकल गया।
नेतराम बहुत उदास मन से भालू बंदर के बच्चों के बारे में अपनी पत्नी को बता रहा था, तभी उसके घर के आस-पास घोड़े की हिनहिनाने की आवाजें आती है।
जैसे ही नेतराम अपने घर से बाहर आ कर देखता है, तो उसके घर के बाहर उसका तांगा था और उसके तांगे पर भालू बंदर के दोनों बच्चे बैठे हुए थे।
अपने घोड़े और तांगे को देखकर नेतराम की आंखों में खुशी के आंसू आ जाते हैं।
नेतराम भालू बंदर के बच्चों से माफी मांग कर कहता है "मैं आज के बाद किसी पर गुस्सा नहीं करूंगा।"
भालू और बंदर के बच्चे नेतराम की यह बात सुन कर उसे जीभ चिढा कर जंगल की तरफ भाग जाते हैं।