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नारी शक्ति

18 वर्ष की राम कली पहली बार अपने जीवन में अपने पिताजी से बहुत नाराज हुई थी, क्योंकि वह बेटियों से ज्यादा अपने बेटो को उस दिन महत्व देते हैं। इसलिए राम कली की मां राम कली की नाराजगी अपने पिता के खिलाफ कम करने के लिए। नारी शक्ति को समझाने के लिए पुराणों की एक पुरानी कथा राम कली को सुलाती है। उस कथा के अनुसार स्त्री पुरुष दोनों समान होते हैं। राम कली की मां राम कली को पुराणों की पुरानी कथा सुनाती है कि भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप का अर्थ है कि आधा स्त्री और आधा पुरुष। शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप के एक हिस्से में पुरुष रूपी शिव का वास है, तो आधे हिस्से में स्त्री रूपी शिव शक्ति का वास है। भगवान के इस रूप ने हमें संकेत दिया है कि स्त्री और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। और दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। भगवान शिव ने यह रूप ब्रह्मा जी की भक्ति से प्रसन्न होकर उनके सामने लिया था। पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था। तब तक भगवान शिव ने श्री विष्णु और ब्रह्मा जी को ही अवतरित किया था। और किसी भी नारी की उत्पत्ति नहीं की थी, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का काम शुरू किया था, तब उनको यह ज्ञात हुआ कि उनकी यह सारी रचना जीवन उपरांत नष्ट हो जाएगी। और हर बार उन्हें नए सिरे से सर्जन करना होगा। उनके सामने यह बहुत ही बड़ी दुविधा थी। तभी आकाशवाणी हुई थी, मैथुन यानी प्रजनन सृष्टि का निर्माण करें, ताकि सृष्टि को बेहतर तरीके से चलाया जा सके। मां से नारी के महत्व की कथा सुनने के बाद राम कली को एहसास हुआ की नारी और पुरुष दोनों एक समान है। और इस बात को राम कली ने जीवन भर गांठ से बांध कर रखा। राम कली की बड़ी बहन की मृत्यु के बाद राम कली का विवाह उसके पिता उसकी बड़ी बहन के पति से करवा देते हैं। और एक पुत्र के जन्म के बाद राम कली भी विधवा हो जाती है। उसके पति छत्रपाल के दोनों छोटे भाई राम कली के पुत्र प्यारेलाल और उसकी संपत्ति को छीन कर उसे उसके भाई चरण सिंह के पास भेजना चाहते थे, ताकि उसका भाई कहीं दूसरी जगह राम कली का विवाह कर दे। राम कली अपने बड़े भाई चरण सिंह का बहुत सम्मान करती थी, और छोटे भाई चन्ना को अपने बेटे जैसे प्यार करती थी। किंतु वह अपने भाइयों पर बोझ बनने की जगह अपने मन में फैसला लेती है, कि मैं अपने बेटे प्यारेलाल को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाऊंगी और इसी के सहारे अपना पूरा जीवन काट लूंगी। और एक दिन राम कली अपने दोनों भाइयों पर बोझ बनने की जगह दिल्ली में उस जगह पहुंच जाती है, जहां उसका पति नौकरी करता था। उस जगह उसकी मुलाकात अपने गांव के पास के गांव के मुंह बोले भाई बेनी राम से हो जाती है। बेनी राम एक सरकारी अफसर की कोठी में राम कली को बर्तन कपड़े धोने खाना पकाने का काम दिलावा देता है। और सरकारी अफसर की पत्नी राम कली पर तरस खाकर उसे रहने के लिए अपना सर्वेंट क्वार्टर दे देती है। जवान विधवा स्त्री को यह दुनिया नोच नोच कर खाने के लिए हमेशा तैयार रहती है, इसलिए रामकली सबसे पहले अपना नाम बदल कर राम श्री रख लेती है। और जब भी वह घर से बाहर जाती थी, तो अपनी सुरक्षा के लिए हाथ में एक पत्थर लेकर जाती थी। एक बार राम श्री के दोनों देवर अपने साथ कुछ आदमियों को लेकर राम श्री के भाई चरण सिंह के गांव ऊंचे गांव पहुंचते हैं। और चरण सिंह से कहते हैं कि "राम कली हमारे भाई की आखिरी निशानी को लेकर कहीं भाग गई है, हमें अपने भाई का बेटा किसी भी हालत में चाहिए। और अलग-अलग तरीकों से राम श्री के भाई चरण सिंह पर दबाव डालते हैं। उनके दबाव से मजबूर होकर चरण सिंह एक दिन राम श्री के घर आकर राम श्री से गुस्से में कहता है कि "इस बच्चे को उनको दे दे, मैं तेरी दूसरी शादी करवा देता हूं। शादी के बाद बच्चे तो और भी पैदा हो सकते हैं। अपने बड़े भाई चरण सिंह की यह बात सुनकर राम श्री पहली बार उसके सम्मान की जगह उसका अपमान करती है। और कहती है "मैं अपने साहब से कहकर उनको और तुझे जेल में बंद करवा दूंगी।" राम श्री मेहनत मजदूरी करके अपने बेटे प्यारेलाल को पाल पोस कर बड़ा कर देती है। और अपने सरकारी साहब की मदद से प्यारेलाल की सरकारी नौकरी लगवा देती है। जब उसका बेटा प्यारेलाल ड्यूटी जाने की जगह अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलने चुपचाप घर से भागने लगता है। तो राम श्री इस समस्या का हल निकलती है, और अपने काम पर जाने से पहले उसे ड्यूटी छोड़ने जाने लगती है, और सरकारी अफसर की कोठी का सारा काम खत्म करने के बाद उसे ड्यूटी लेने जाने लगती है। और फिर आयु बढ़ने के साथ-साथ प्यारेलाल अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगता है। राम श्री का छोटा भाई चन्ना भी शादी करके राम श्री के आसपास ही दिल्ली में किराए पर मकान लेकर अपनी पत्नी के साथ रहने लगता है। उसकी भी नौकरी बेनी राम एक प्राइवेट कंपनी में लगवा देता है। अपने बेटे प्यारेलाल की नौकरी अस्थाई से स्थाई होने के बाद राम श्री अपने बड़े भाई चरण सिंह की मदद से अपने बेटे प्यारेलाल की शादी करवा देती है। प्यारेलाल की जिस लड़की से शादी होती है, उसकी मां का नाम हर प्यारी था। हर प्यारी भी विधवा थी, इसलिए राम श्री और हर प्यारी के आपस में बहुत अच्छे संबंध बन जाते हैं। प्यारे लाल की पत्नी का नाम माला था। माला अनपढ़ सीधी-सादी गांव कि घरेलू लड़की थी। प्यारेलाल की शादी के कुछ दिनों बाद प्यारे लाल की पत्नी माला का छोटा भाई कुमरपाल भी अपनी बहन की ससुराल में आकर रहने लगता है। और राम श्री के बड़े भाई चरण सिंह का बेटा मसी चरण भी अपनी बुआ राम श्री के पास रहने लगता है। भाई चन्ना भतीजे मसी चरण बहू के भाई कुमरपाल के आ जाने के बाद। छ वर्षों के अंदर ही माला एक पुत्री दो पुत्रों को जन्म देती है। और प्यारे लाल को सरकारी मकान अलॉटमेंट हो जाता है। राम श्री के जीवन में अकेलापन बिल्कुल खत्म हो जाता है। और चारों तरफ से इतनी खुशियां मिलने के बाद राम श्री पहले से ज्यादा पूजा पाठ करने लगती है। हर महीने पूर्णमासी का व्रत तो राम श्री युवा अवस्था से ही रखती आ रही थी। राम श्री को उस दिन सबसे बड़ी खुशी मिलती है, जब वह अपने पोते की बहू को देखती है। और एक दिन राम श्री अपने बेटे पोती पाते और पोते की बहू के साथ अपनी ससुराल मजूपुर गांव जाती है। और अपने पोते पाती पोते की बहू से कहती है कि "यह मेरे पति यानी कि प्यारेलाल के पिता और तुम्हारे दादा जी का गांव है। पूरा गांव राम श्री की हिम्मत की दाद देता है। और नारी शक्ति की पहचान राम श्री को शत-शत प्रणाम करता है। और 80 वर्ष की आयु में पूर्णमासी के दिन राम श्री का स्वर्गवास हो जाता है। और राम श्री दुनिया वालों के लिए नारी शक्ति की अद्भुत मिसाल बन जाती है।

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