अनोखा प्रेम Rajesh Rajesh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनोखा प्रेम

शम्मी के माता पिता शम्मी को अपनी दादी के पास छोड़कर किसी रिश्तेदार की शादी में अपनी कार से जाते हैं।

सुलोचना देवी जब अपने पोते शम्मी के साथ रात का खाना खा रही थी तो उसी समय दरवाजे की डोर बेल तेज तेज बजती है।

और जैसे ही सुलोचना देवी का नौकर बंगले का दरवाजा खोलता है तो दरवाजे के पास दो पुलिस वाले खड़े हुए थे।

पुलिस वाले सुलोचना देेवी को बताते हैं कि "तुम्हारे बेटे की कार का ट्रक से एक्सीडेंट होने कि वजह सेे तुम्हारे बहू और बेटे की मृत्यु हो गई है।"

अपने बहू बेटे की मौत की खबर सुनकर सुलोचना देवी अपने पोते शम्मी को गोदी में लेकर चुपचाप गुमसुम कुर्सी पर बैठ जाती है।

सुुलोचना देवी समझदार और हिम्मत वाली महिला थी, इसलिए कुछ दिन बीतनेेेे के बाद सुलोचना देवी अपनेेे बेटे की कंपनी का सारा कामकाज खुद संभाल लेती है।

और अपनेेेे पोते शम्मी को पढ़ा लिखा कर एक कामयाब इंसान बना देती हैै। और एक दिन शम्मी के हाथों में कंपनी की पूरी बागडोर सौंप देती हैै।

एक दिन अपनी कंपनी की छुट्टी होने केेे बाद शम्मी अपनी कार से अपने बंगले पर आ रहा थाा, तो रास्तेे में एक मार्केट पड़ती है। शम्मी उस मार्केट से कुछ सामान खरीदने की लिए अपनी गाड़ी उस मार्केट की पार्किंग मेंं लगा देता है। जहां पार्किंग में शम्मी अपनी कार पार्क करता है वहां सामने साड़ियोंं की दुकान थी।

और शम्मी की नजर एक खूबसूरत साड़ी पहने दुकान के आगे खड़ी एक मूर्ति पर पड़ती है। साड़ी पहने उस मूर्ति का चेहरा इतना खूबसूरत था, कि शम्मी को उससे पहली नजर में ही मोहब्बत हो जाती है।

शम्मी उस खूबसूरत मूर्ति का इतना दीवाना हो जाता है कि अपनी कंपनी जाना छोड़़कर उसी मूर्ति को पूरे दिन प्यार से देेख कर अपना समय बिताता था।

शम्मी 24 घंटे उस खूबसूरत मूर्ति के खयालो में डूबा रहता था, इसलिए वह अपनी दादी सुलोचना देवी को भी क्षण भर का समय नहीं दे पाता था।

शम्मी जब रात को अपनी दादी सुलोचना देवी के साथ रात का खाना खाता था, तो एकाद निवाला खा कर खाना बीच में छोड़कर अपने कमरे में सोने चला जाता था।

और जब कभी सुलोचना देवी शम्मी से कंपनी की कोई जरूरी बात करती थी तो शम्मी हां या ना मैं जवाब देकर वहां से चला जाता था।

सुलोचना देवी भी अपने पोते शम्मी की परेशानी को समझ नहीं पा रही थी। लेकिन एक दिन सुलोचना देवी अपने दिल में पक्का इरादा कर लेती है कि आज शम्मी की परेशानी का कारण जान कर ही रहना है।

और उस दिन सुलोचना देवी अपने ड्राइवर से कहती है कि "शम्मी की गाड़ी के पीछे पीछे चलो।"

अपने पोते को बेजान मूर्ति के प्रेम में दीवाना देखकर सुलोचना देवी को ऐसा लगता है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन शम्मी का जीवन बर्बाद हो जाएगा।

और सुलोचना देवी शम्मी को अपने पास बिठा कर प्यार से समझाती हैं कि एक दिन बेजान मूर्ति सेे तेरी मोहब्बत तुझेेे बर्बाद कर देगी।

लेकिन शम्मी उस मूर्ति केेे प्रेम में कितना दीवाना हो गया था कि अपनी दादी सुलोचना देवी से कहता है कि "मैं इस मूर्ति की सुंदरता को देख देख कर अपना पूरा जीवन बिता दूंगा।

सुलोचना देवी को अपने पोते शम्मी की यह बात सुनकर उस मूर्ति बनाने वाले मूर्तिकार पर इतना गुस्सा आता है कि वह उस मूर्तिकार को ढूंढते ढूंढते उसके घर पहुंच जाती है। और उस मूर्तिकार के घर पहुंच कर उसके घर का दरवाजा बहुत तेज तेज खटखटा आती है। और शम्मी के प्रेम की पूरी कहानी उस मूर्तिकार को सुनाती है।

शम्मी की दादी उस मूर्तिकार केेे परिवार और उस मूर्तिकार से अच्छी तरह बात करके अपने बंगले पर आ जाते हैं।

और एक सप्ताह बाद सुलोचना देवी शम्मी की इच्छा के विरुद्ध शम्मी को उस मूर्तिकार के घर ले कर जाती है। और शम्मी उस मूर्तिकार के घर पहुुंच कर उदास निराश अपनी नजरें झुकाए बैठ जाता है।

तभी उस मूर्तिकार की बेटी चाय बिस्कुट लेकर आती है तो शम्मी उस मूर्तिकार की बेटी को नजर उठा कर देखता है तो उसकी बेटी का चेहरा बिल्कुल उसी मूर्ति की तरह था जिस पर शम्मी पूरी तरह फिदा हो चुका था।

शम्मी उस लड़की को देेेखकर बहुत खुश हो जाता है तब शम्मी अपनी दादी केे गले लग कर कहता है कि "मेरे मूर्ति केेेे प्रेम सच कर दिया है।"