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भूत या भगवान

बबलू रोज भगवान से प्रार्थना करके सोता था, कि उसे भूत प्रेतों के डरावने सपने ना आए, लेकिन जितना भी वह भगवान से प्रार्थना करता था, उतना ही उसे भयानक डरावने सपने आते थे।

और दिन में भी वह कभी अनजाने में किसी सुनसान रास्ते से गुजरता था, तो भूत चुड़ैल के डर से उसे ऐसा महसूस होता था, कि अगर भूत प्रेत चुड़ैल इस सन्नाटे में उसके सामने आ गए तो भयानक डरावने भूत चुड़ैल को देखनेेेे भर से उसका दम निकल जाएगा।

बबलू अनाथ था। और गांव वाले के छोटे-मोटे काम करके वह अपना पेट भरता था। दो वर्ष के बबलू को ना जाने कौन पुराने पीपल के पेड़ के नीचे लिटा कर भाग गया था।

उस दिन पूरे गांव ने मिल कर फैसला लिया था, कि बबलू को पूरा गांव मिलकर पालेगा।

बबलू को खुद नहीं पता था कि उसके मन में भूत प्रेतों का डर ना जाने कैसे बैठ गया था।

अब बबलू की आयु बीस वर्ष हो गई थी, लेकिन आयु के साथ उसका भूत-प्रेतों का डर खत्म होने की जगह बढ़ गया था।

एक दिन बबलू टिका टाक गर्मियों की दुपहरी में गांव के प्रधान की भेड़ बकरियां गाय जंगल में अकेले चरा रहा था, और उस समय बबलू का ध्यान प्रधान की भेड़ बकरियों गाय से ज्यादा इस बात पर था कि कब कोई गांव का व्यक्ति अपने पालतू पशुओं को लेकर यहां इस जंगल में आएगा।

और उसी समय सूखे कुए से किसी बूढ़े व्यक्ति की रोने की आवाज आने लगती है। वह बूढ़ा व्यक्ति बार-बार कुए के अंदर से चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था, "कोई है जो मुझे सूखे कुएं से बाहर निकाले। मैं आदी रात से सूखे कुए में बाहर निकलने के लिए मदद मांग रहा हूं। मेरे बहू बेटे ने मुझे मरा हुआ समझ कर इस सूखे कुए में फेंक दिया है।"

उस सूखे कुए से बूढ़े की मदद के लिए बार-बार पुकार सुन कर बबलू अपने मन में सोचता है मैं इस बूढ़े की मदद करने जाओ और यह इंसान की जगह कहीं भूत निकला तो इसके मारने से पहले ही मैं इस भूत के भयानक डरावनी रंग रूप को देखकर मर जाऊंगा।

इसलिए बबलू ईश्वर का नाम लेकर वहां से भागने के लिए जल्दी जल्दी अपनी भेड़ बकरियों गायों को इकट्ठा करने लगता है।

और उसी समय उसके मोटे डंडे से डरकर एक बकरी का बच्चा उस सूखे कुएं में कूद जाता है, जिस सूखे कुए से मदद के लिए वह बूढ़ा व्यक्ति चिल्ला रहा था।

गांव के प्रधान की जगह किसी और की बकरी होती तो बबलू उस बकरी के बच्चे को छोड़ करा वहां से भाग भी जाता, लेकिन सारे पालतू जानवर गांव के बेईमान भ्रष्ट निर्दई प्रधान के थे, इसलिए बबलू छोड़ कर भाग भी नहीं सकता था।

बबलू भगवान को याद करते हुए हिम्मत करके उस सूखे कुएं से बकरी के बच्चे को बाहर निकाल ने जाता है, तो उसे यह देख कर बहुत तसल्ली मिलती है, कि सूखे कुएं में भूत नहीं एक जिंदा बूढ़ा सच में फंसा हुआ है।

और बबलू उसी समय एक पेड़ से मोटी सी बेल (जड़) तोड़ कर लाता है, और उस पेड़ की मोटी सी (जड़) बेल को कुएं में रस्सी की तरफ है कर बूढ़े व्यक्ति से कहता है "बकरी के बच्चे को गोदी में उठा लो, और पेड़ की (जड़) बेल को कस कर पकड़ लो। फ़िर मैं बेल पकड़ कर मैं आप दोनों को सूखे कुएं से बाहर खींच लूंगा।"

और बूढ़े बकरी के बच्चे को सूखे कुएं से बाहर खींचते हुए बबलू अपने मन में बार-बार ईश्वर को याद करके सोच रहा था,कि "हे भगवान यह बूढ़ा भूत ना हो इंसान हो।"

बूढ़ा बकरी के बच्चे के साथ सूखेे कुए से बाहर निकल कर बबलू से कुछ भी कहे बिना वहां से जल्दी-जल्दी घने जंगल की तरफ भाग जाता है।

जब बबलू उस बूढ़े को जंगल की तरफ भागता हुआ देख रहा था, तो उस समय एक बालक उसके पीछे खड़े होकर बांसुरी बजा रहा था।

बूढ़े के घनेेे जंगल में ना जाने बाद बबलू उस बच्चे की तरफ देख कर उस बालक सेे पूछता है? "तू इस बूढ़े को जानता है।"

बांसुरी बजाने वाला बालक कहता है "हां जानता हूं।"

"कौन है यह बूढ़ा और किस गांव का है।"
बबलू पूछता है

"सुखदेव ताऊ का पित था।"
बालक बोला

"सुखदेव ताऊ जो पागल हैं, और जिनकी पत्नी कैंसर की बीमारी से मर गई थी। लेकिन वह तो खुद 80 बरस के हैं तो यह उनका बाप कैसे हो सकता है।"
बबलू बोला

बबलू ने उस बालक को पहली बार देखा था, इसलिए उससे पूछता है? "तू कौन है और इस घने जंगल में क्या कर रहा है।"

बालक बबलू से कहता है तू ने बुलाया था, इसलिए मैं तेरे पास आया हूं।"

बबलू उस बालक पर झूठा नाराज होकर उससे कहता है "मैंने तुझे कब बुलाया मैं तुझे जानता तक नहीं हूं।"

और उसी समय में बालक ना जाने कहां अदृश्य हो जाता है।

बबलू शाम को प्रधान के पालतू जानवरों को इकट्ठा करके गांव में लाता है। और दोपहर की विचित्र घटना के बारे में गांव की बूढ़ी काकी को बताता है।

बुड्ढी काकी बबलू से सारी घटना सुन कर बबलू से कहती है "तू रात दिन भूत और भगवान को याद करता है, लगातार भूत और ईश्व्वर स्मरण करने से तुझे भूत और भगवान दोनों ने दर्शन दे दिए है। वह बुढ़ा भूत था और वह अनजान बालक कृष्ण भगवान थे। उस बालक ने ही तेरी रक्षा सुखदेव ताऊ के भूसे की क्योंकि वह बालक ईश्वर थे। सुखदेव ने अपनी पत्नी के साथ मिल कर जमीन जायदाद केेे लालच में अपने पिता की हत्या करके उन्हें सुखे कुएं में फेंक दिया था। और इस बुरे कर्म का फल उन्हें मिल रहा है, खुद सुखदेव पागल हो गया है, और सुखदेव की पत्नी जवानी में ही कैंसर की बीमारी से मर गई थी।"

उस दिन के बाद बबलू अब सिर्फ भगवान को ही याद करता था, भूत को बिल्कुल भी नहीं। और दिन रात ईश्वर कााा स्मरण करने से और ईमानदारी मेहनत से दान-पुण्य करते करते एक दिन बबलू गांव का सबसे अमीर युवक बन जाता है।

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