सरकारी नौकरी से सेवानिवृत होने के बाद रामदयाल को अपना समय बिताना बहुत मुश्किल लगता था, क्योंकि दो वर्ष पहले उसकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था और उसका बेटा संजीव अपनी रोजी-रोटी और घर गृहस्ती में व्यस्त रहता था।
रामदयाल सुबह अपने घर की बालकनी में अखबार पढ़ते हुए चाय नाश्ता करता था और बालकनी से आने जाने वाले लोगों को देखकर अपना समय बीताता था।
रामदयाल के इकलौते बेटे की पत्नी घर के कामों में व्यस्त रहती थी, वह सुबह उठकर रामदयाल को और अपने पति संजीव को चाय नाश्ता देकर दोपहर का खाना बनाने में व्यस्त हो जाती थी और अपने पति का लंच का टिफिन पैक करने के बाद घर के अन्य घरेलू कामों में पूरे दिन लगी रहती थी।
रामदयाल पत्नी की मृत्यु के बाद नौकरी से रिटायरमेंट होने के बाद बिल्कुल अकेला हो गया था, क्योंकि उसका बेटा भी ऑफिस से रात को देर से घर आता था, इसलिए रामदयाल की अपने बेटे से बात क्या मुलाकात भी बहुत कम हो पाती थी।
इस वजह से रामदयाल जब सुबह सोकर उठता था, तो उसे बहुत घबराहट और अकेलापन महसूस होता था कि पूरा दिन चाय नाश्ता करने के बाद बार-बार अखबार को पढ़ाते हुए अकेले समय बिताना पड़ेगा।
एक दिन रामदयाल सुबह अपनी बालकनी में चाय नाश्ता करने के साथ-साथ अखबार पढ़ रहा था, तो उसी समय एक छोटा सा चूहे का बच्चा उसकी टेबल पर चढ़कर रामदयाल की बिस्कुट की प्लेट से बिस्कुट उठाकर उसके सामने कुतर कुतर कर खाने लगता है। रामदयाल अपने अखबार को टेबल पर जोर से पटक कर उस चूहे के बच्चे को भगा देता है।
चूहे का बच्चा रसोई घर के अंदर जाने के बाद कुछ देर बाद दोबारा लौट कर फिर आता है और रामदयाल के सामने रखी टेबल पर चढ़कर बिस्कुट की प्लेट से बिस्कुट खाने लगता है, चूहे का बच्चा ऐसा बार-बार कर रहा था, एक बार वह चूहे का बच्चा रसोई घर में जाता था और फिर रामदयाल के पास आकर उसकी प्लेट से बिस्कुट उठाने की कोशिश करता था।
दूसरे दिन भी चूहे का का बच्चा यही हरकत करता है, तो रामदयाल को चूहे के बच्चे की हरकतें देखकर हंसी आने लगती है और जब भी रामदयाल सुबह चाय नाश्ता करते हुए अखबार पढ़ता था, तो वह चूहे का बच्चा रामदयाल के पास आ जाता था।
अब रामदयाल रोज चूहे के बच्चे का इंतजार करने लगा था, जिस दिन वह चूहे का बच्चा दिखाई नहीं देता था, तो रामदयाल को अच्छा नहीं लगता था, चूहे के बच्चों की वजह से रामदयाल का अकेलापन थोड़ा काम हो गया था और रामदयाल को धीरे-धीरे पता नहीं चलता कि वह चूहे का बच्चा उसका समय काटने का सहारा बन गया है।
और उन्हीं दिनों संजीव और उसकी पत्नी एक सुंदर सी बेटी के माता-पिता बन जाते हैं, पोती के जन्म के बाद रामदयाल के जीवन में नई ताजगी और खुशियां आ जाती हैं, अब चूहे के साथ-साथ रामदयाल का अपनी पोती के साथ खेलने में भी अच्छा समय बीतने लगता है।
जीवन का अकेलापन दूर करने के लिए बड़े-बड़े सहारे नहीं ढूंढने चाहिए, अगर इंसान ध्यान से देखे तो उसके आसपास जीने के हजारों सहारे होते हैं।