मुझे पिछले कुछ ही दिनों में 2 सूचनाएं प्राप्त हुई जिन्होंने मुझे झकझोर कर रख दिया। वो सूचनाएं थी कि मेरे एक खास दोस्त की कैंसर से मृत्यु हो गई और दूसरी सूचना यह कि उस दोस्त की माताश्री को ट्रक ने कुचल दिया और वो भी स्वर्ग सिधार गई।
मेरे जिस दोस्त की मैने कैंसर से मौत की बात की, उसका शरीर करीब 65 किलो का रहा होगा जो की उसकी लंबाई अनुसार बिलकुल सही था और उसकी उमर रही होगी करीब 21 साल, उसके शरीर की बनावट सामान्य थी, वो हफ्ते में एक बार बर्गर खाता था और बाकी अच्छा सामान्य भोजन करता था। वो कोई धूम्रपान भी नही करता था और वो रहता भी कश्मीर की साफ हवा में था, फिर भी उसकी मौत हुई कैंसर से। कहने का मतलब यह कि कैंसर के सामान्य कारण जो माने जाते है उनमें से कोई भी मेरे दोस्त के संदर्भ में नही था। फिर दरअसल उसकी मौत का कारण क्या है?
और मेरे दोस्त की माताश्री करीब 45 वर्षीय रही होगी, वजन का उनके मुझे अंदाजा नही, उनका शारीरिक गठन उनकी उम्रानुसार सामान्य था। वो सब्जी लेने बाजार गई थीं, अचानक पीछे से एक ट्रक ने आकर उनको कुचल दिया । उनके खरीदे हुए टमाटर अभी तक सड़क किनारे बिखरे है। आपको क्या लगता है कि मेरे दोस्त की मां की मृत्यु kyu हुई होगी? इस प्रश्न के उत्तर पर आने से पहले एक और उदाहरण देखते है। मैने हाल ही में कही पढ़ा कि एक व्यक्ति अपने ऑफिस से घर जा रहा था। जेठ की गर्मी पड़ रही थी तो पसीने से व्याकुल था और वो बाइक पर था । शाम का करीब 5 बजे का समय रहा होगा। उनके सामने रेड लाइट थी तो नियमानुसार उन्होंने बाइक रोकी। रेड लाइट थोड़ी लम्बी थी तो उन्होंने गर्मी से दुखी होकर अपना हेलमेट उतार दिया। इतने मैं एक चील पीछे से उड़ती आई और उनके सिर पर चोंच मार दी। वो व्यक्ति पुरुष वंशानुगत गंजापन (MALE PATTERN BALDNESS) का शिकार था तो चोंच ने बहुत गहरा घाव उसपर किया और मौके पर ही उस व्यक्ति की मौत हो गई।
क्या आप बता सकते है कि मेरे दोस्त को बिना किसी कारण के कैंसर क्यों हुआ ? या मेरे दोस्त की माताजी को ट्रक ने उसे वक्त क्यों कुचला या उस व्यक्ति को उस चिड़िया ने या चील ने उसी समय क्यों चोट मारी जब उसने हेलमेट उतार रखा था? उन माताजी की जगह कोई भी हो सकता था, हम सब सड़को पर घूमते है, उनके साथ ही ये क्यों हुआ? हम सब गर्मी में हेलमेट उतारते है या कई बार पहनते भी नही, हम अबतक कैसे बचे है? आखिरकार इन सारी मौतों का कारण क्या है? इस प्रश्न का उत्तर है - अतर्किकता, मौत की मृत्यु की अतर्किकता।
THE DEATH IS ILLOGICAL
आपने अपने आसपास देखा होगा न कि कुछ बहुत अच्छे नैतिक व्यक्तियों की मौत बहुत दर्दनाक तरीके से होती है और बहुत नीच व्यक्तियों की उमर बहुत सुखी और लंबी होती है। इनकी व्याख्या का एक तरीका है कर्म सिद्धांत। परंतु कर्म सिद्धांत भी कई प्रश्नों का उत्तर नही दे पाता। जैसा कि कहा जाता है कि हम अपने कर्मानुसार योनि प्राप्त करते हैं पर पहला मनुष्य क्यों आया उसने कोनसा कर्म किया? कर्म सिद्धांत के विषय में बहुत गहरा न जाते हुए मैं जो कहने का प्रयास कर रहा हु वो ये की मृत्यु बेहद अतर्किक हैं।
दरसल बात यह है कि इस जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है। परंतु हम सबने अपने जीवन की बहुत लंबी लंबी योजनाएं बनाई होती है जैसे मैंने योजना बनाई है की 2024 में मई में prelims देना है, फिर अक्टूबर में mains देना है फिर इंटरव्यू देना है और पता नही क्या क्या।।।।।।।
पर हो सकता है कि मेरी मृत्यु अभी हो जाए। मैं जो ये लेख लिख रहा क्या पता मैं इसे भी पूरा न कर सकू? क्या पता अगली लाइन लिखते वक्त मुझे हार्ट अटैक आ जाए? या फिर मैं अभी जिस ट्रेन में हु उसका एक्सीडेंट/ accident हो जाए? या ये भी हो सकता है कि आप इसे पढ़ रहे है और अचानक आपको हार्ट अटैक आ जाए या कुछ और हो जाए, डरिए मत, मैं सिर्फ संभावनाएं पेश कर रहा हू। मेरी जैसे plannings है वैसी आपको भी होगी। आपने भी बहुत लंबी लंबी योजनाएं अपने जीवन के लिए बनाई होगी पर आपको एक बात तो लेकर चलनी होगी कि मृत्यु बहुत अतार्किक है और ये एक झटके में आपका सारी योजनाएं ध्वस्त कर सकती है।
इस सारी बातचीत के जरिए मैं आपको निराशा से भरने नही आया। में ये भी नही कहना चाहता कि आप planning मत कीजिए। आप कीजिए, मेरी भी प्लानिंग हैं कि अभी सुबह 7 बजे क्लास लेनी है। आप प्लानिंग करे, उसपर काम भी करे परंतु एक बात का विशेष ध्यान दे कि जिस चीज के लिए आप प्लानिंग कर रहे है या जिस लक्ष्य को आप चाहते है ,ऐसा ना हो जाए कि सिर्फ प्लानिंग पर फोकस करने से आपके अन्य उस लक्ष्य हेतु हेतु सहायक पक्ष पक्ष पीछे रह जाए। सरल शब्दों में कहें तो जैसे मान लीजिए आपको रसगुल्ला खाना है और उस रसगुल्ले को प्राप्त करने की एक प्रक्रिया है और मान लीजिए उसमे चीनी नही है वो आपको रसगुल्ला ग्रहण की प्रक्रिया में लगातार साथ लेकर चलनी है तो आप बिना चीनी के अपने लक्ष्य यानी रसगुल्ले का भोग नही कर सकते। बिलकुल साफ शब्दों में कहें तो अपने लक्ष्य प्राप्ति की प्रक्रिया में इतने स्वार्थी मत हो जाइए कि जब लक्ष्य ग्रहण करने का समय आए तब आपके पास सहायक तत्व ही ना हो।
अब ये सहायक तत्व कोन है? इन्हे कैसे लगातार साथ लेकर चले? लक्ष्य या सहायक तत्व, कोन हमारी प्राथमिकता हो? मृत्यु की अतर्किकता को कैसे संभाले? चलिए विचार करते है।
सबसे मुख्य सहायक तत्व है वो लोग जिनसे आप भावनाओ के स्तर पर गहराई से जुड़े है। ये लोग आपके माता पिता हो सकते है, भाई बहन हो सकते है, कोई प्रेमी/प्रेमिका हो सकता/सकती है या कोई खास दोस्त हो सकता है। जिससे भी आपको बात करके सुकून मिलता है, आपको खुशी मिलती है, आपको उससे बात करके प्रोत्साहन मिलता है, ये व्यक्ति या सहायक तत्व वही हैं। दरअसल इन सहायक तत्वों के बिना आपकी बड़ी से बड़ी सफलता व्यर्थ है, उसका कोई औचित्य नहीं है। जैसे आप तैयारी कर रहे है मान लीजिए आप CA की तैयारी कर रही है या ias बनने की तैयारी कर रहे है या mba की तैयारी कर रहे है या आप judge बनने की तैयारी में है और मान ले आप जो चाहते थे आप बन गए और आप स्वार्थी थे, आपकी लक्ष्य हासिल करने की प्रक्रिया में आप सारे सहायक तत्व पीछे छोड़ आए तो जब आप दिन में काम करेंगे ना तब तो मजा आयेगा जैसे आप Ias है तो 500 पुलिस वाले आपके अधीन होगे आपको मजा आएगा,या जैसे आप जज बन गए तो बड़े बड़े फैसले देते आपको मजा आएगा आपको मार्केटिंग में मजा आएगा पर जब काम करके आयेंगे घर ना तब आपको अहसास होगा की आपके पास कुछ भी नही है, आप सब कुछ अपने स्वार्थ में खो चुके है। कितनी भी बड़ी सफलता, कितनी भी चकाचौंध एक सहज सरल भावनात्मक रिश्तों के बिना झूठी है। जिंदगी और मौत की अतर्कितताओ में बहुत जरूरी है कि आपके पास बहुत ऐसे मजबूत भावनात्मक रिश्ते हो, जो आपके रहते आपको याद करे और आपके जाने के बाद भी।
लक्ष्य हासिल की प्रक्रिया में इन सबको लेकर चलने के लिए आपको बस एक चीज चाहिए और वो है भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional intelligence) । ऐसा नही करना है कि आपका कोई दोस्त आपका इंतजार कर रहा है और आप बस पढ़ने में मशगूल है, उस दोस्त को भी समय देना है, अगर आपके दोस्त ऐसे हो जो आपको समझे आपको लक्ष्य यात्रा समझे आपको भावनाए समझे तो यह करना दोस्तो को साथ लेकर चलना मुश्किल नही है। हां अगर दोस्त ही ऐसा हो जो आपको समझता ना हो, आपकी तपस्या का आपकी मेहनत का मजाक करता हो, इमोशनली बहुत कमजोर आदमी हो तो उससे दूर हो जाना एक स्लो प्रक्रिया में बेहतर है। त्योहारों पर, पारिवारिक मौकों पर घर भी जाना है, मनहूस नही बनना है की नही मम्मी मैं नही आ रही, मुझे पढ़ना है, ऐसे नही करना है क्योंकि याद रखिए ये जिंदगी क्षण भर की है और मृत्यु अतर्किक है वो कभी भी कही भी आ सकती है। ऐसा ना हो कि आप फिर बाद में पछताए। अगर सिर्फ आप अपने लक्ष्य में इतने मशगूल हो गए कि इन सहायक तत्व को भूल गए तो आपकी कितनी भी बड़ी श्रेष्ठता हो वो सारहीन हैं। दोस्तो को भी, आपके चाहने वालो को भी समय देना है, ये नही करना कि बिना मतलब उन्हें घमंड दिखा रहे है, उनसे भी संवाद करते रहिए, वो भी आपके अपने है।
फिर समाज को भी ignore krke नही चलना है। उसकी अतर्कित्ताओं का विरोध कीजिए करना भी चाहिए अच्छी बात है पर समाज का विरोध नही करना है। आपके व्यक्तित्व में समाज की एक निर्णायक भूमिका है, आप समाज से बने है, समाज से जुड़े रहिए। पूरे दिन घर में मत घुसे रहिए, थोड़ा बाहर निकलिए, समाज से पढ़िए और प्रेमचंद कह गए है कि जिंदगी के सबसे मुश्किल प्रसंग जिंदगी सिखाती है किताबे नही। जिंदगी के इन मुश्किल प्रसंगों से निकलने के लिए सहायक तत्व ही आपको मार्गदर्शन कर सकते है।
आज की दुनिया व्यज्ञानिक तार्किक युग की दुनिया है। धर्म से लेकर विज्ञान तक सबको तार्किकता के तराजू पर मापा जा रह है। धर्म के वो पहलू जिनका संबंध आस्था से है उनको भी व्यज्ञानिक कसौटियों पर मापने के मूर्कतापरुण चलन आज दुनियाभर में है।। पर जिंदगी का अंतिम सत्य जोकि मृत्यु है वो खुद सबसे अतर्किक है। जीवन की अतर्किकता, मृत्यु की अतर्किकता से जब आप अकेले होंगे तब आपके लक्ष्य नही ये सहायक तत्व ही आपको बाहर निकाल पाएंगे।v
तो ये पढ़ते ही, अगर आपको यह अच्छा लगा तो सीधे उस व्यक्ति से संपर्क कीजिए जो आपके सबसे करीब है, जिससे बात करके आपको सुकून मिलता है, जिसकी खुशी में आपकी खुशी है, उससे अभी बात कीजिए और मुझे आशा है उसके बाद आप बेहद आनंदित महसूस करेंगे।
धन्यवाद सहित,
अंकित यादव