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अदिति

घने बादल छाए हुए थे। सूर्य उनसे निकलने की चेष्टा कर रहा था। रोशनी न होने के बावजूद सतगढ़ वासी बड़े जोश में थे। होली जो थी आज। घने बादलों की वजह से बच्चों के चेहरे पर भी चमक न थी। बादलो की वजह से उन्हें होली निरस्त जाती प्रतीत हो रही थी। इसी दुख दर्द के बीच एक उम्मीद की किरण दिखी-अदिति। अदिति सालो बाद होली खेलने आई थी। होली पर ही तीन साल पहले उसकी माता जी का देहांत जो हो गया था।
विनय,समर और समीर के चेहरे पर आदिति को देख वहीं चमकती जो छप्पन भोग देख भुखे व्यक्ति को होती है। तीनों का एक वर्ष पुराना स्वपन आज उन्हें सच होता प्रतीत पढ़ रहा था।
समर अभी-अभी मंदिर जाकर ही होली खेलने आया था। भारी मौसम खराब होने के बावजूद समर मंदिर में जाने से नहीं रुका। ये उसकी परमात्मा के प्रति अनन्य भक्ति का ही संकेत था।
ओए समीर, आज भी सारे नए कपड़े पहन कर आया है। मुझे देख तिन साल पुरानी पहन खेलने आया हूं। विनय ने गुब्बारे में पानी भरते हुए कहा।
समीर का बाप बड़ा व्यापारी हैं। समीर जिस चीज पर हाथ रख दे, वही उसकी हो जाती है। लेकिन समीर भूल गया वस्तु और व्यक्ति में फर्क होता है।
अभी एक महीने पहले ही समीर ने अपने रूतबे की घोस दिखाते हुए अदिति को प्रपोज जो किया था।
अदिति ने उसे ऐसा लताड़ा था कि समर और विनय ने तो अदिति का सव्पन तक न देने का प्रण किया। जो लड़की इतने अमीर रहीस व्यक्ति को संपूर्ण मोहल्ले के सामने बेइज्जत कर सकती हैं। उसके सामने बेचारे विनय,समर की कहां हिम्मत हो।
समर की इन सब प्रसंगों में रुचि की खबर जनमानस में न थी। जनमानस में उसकी छवि परमात्मा के अनंत भक्त की थी। वैसे समर था भी भक्त। रोज सुबह जल्दी उठ पूजा पाठ संपन्न कर अध्यन्न को जाता।
सतगढवासियों का आनंद मिटने ही बोला था कि सहसा सूर्य की किरण सतगढ़ के मंदिर पर पड़ी।
भगवान की अनुमति मिल गई साथियों समर ने घोषणा की।
आओ अदिति, तुम भी हमारे साथ खेलो होली, इस वार होली अलग होगी। विनय ने उम्मीद भरे शब्दों में कहा। हां हां खेलते हैं। पक्का रंग नहीं है ना किसी के पास नहीं नहीं उम्मीद थी तुम आओगी, तो पक्का रंग किसी को लाने ही नहीं दिया मैंने।
विनय में जो उत्साह आज होली को लेकर था वैसा कभी न दिखा था। हर होली पर उसे अदिति का ही इंतजार रहता था। उसके लिए रंगों की रंगाहर का महत्व बढ़ गया था।
हैप्पी, होली, तुम्हारी पहली होली है, तुम्हें एक बात कहनी है विनय ने अदिति को रंगते हुए कहा।
हां ,हां बोलो ना, अदिति उम्मीद भरी निगाहों में कहा मानो वह विनय को भाप गई थी।
होली रंग उल्लास के साथ साथ मित्रता का भी प्रतीक है नारी। तुम्हारे बीच में अड़चन डाली।
हमें भी तो मौका दो, हम बंधुत्व की स्थापना कर सकें। आखिर हम जैसे लोग ही तो आज देश की सत्ता में भी है।
हां हां समर, आओ, तुम भी रंग लगाओ।
समीर इन सब से दूर खड़ा था। मन तो बहुत था रंगने का पर पिछली बार का उपहास वो भुला न था। उसे समर, विनय कि ये नजदीकी देख चिड़ हो रही थी।

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