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प्रतिभोज

गांव का नाम बताने की जरूरत नही। भारत के सभी गांवो का लगभग यही हाल है।
शादी का मंच सजा है। दुल्हा-दुल्हन के लिए सोफे लगे हैं। मेहमानों के लिए सामने ही कुर्सियां लगी है। और वही ढोल नगाड़े की गुंजाहट। चारों तरफ मिष्ठान की‌ चौकरियां बनी हुई है। बीच में मसालेदार चटाकेदार भोजन। वही टेंट के बाहर समर और समीर दोनों बांट में है कब प्रवेश की इजाजत मिले। दोनों दोपहर से बांट में है। पिछले तीन दिनों से बड़ी मेहनत भी की है बेचारो ने, टेंट के लिए लोहे के बड़े-बड़े गाटर को काटा फिर टेंट के लिए ईंट भी उठाई। यह सब किसके लिए किया था। इसी के लिए ही किया था कि भोजन करने की इजाजत जो मिले। दोनों दलित जो ठहरे, अब ब्राह्मण को यह कैसे सुहाए कि दलित उसके बेटे के शादी समारोह में खाना खा ले। खाना दूषित जो हो जाएगा। वो बात अलग है कि मोटर गाड़ी से सारा किरयाने का सामान उन्ही में उतारा और उसेसे ही तो भोजन बन रहा है, लेकिन सामान छूने से नहीं,पंडितों को लगता होगा कि भोजन आग में शुद्ध हो जाता है।
लड़की के घर से बड़े सामान की एक बड़ी मोटर गाड़ी पधारी है। बड़े सोफे,अलमारी,सीसा, मेज़ आदि सामान आया है। बेटी का बाप कलेक्टर जो ठहरा। पंडित जी की तो मानो लॉटरी सी लग गई है इतनी सुंदर और अमीर घर की कन्या जो अपनी पुत्रवधू के रूप में मिली। समर और समीर को अब फिर ढूंढा जा रहा है, सामान जो उतारना है। खैर समर और समीर दोनों हलवाईयों के पास निरंतर कड़ाही को ताक रहे हैं। ओ समरवा, समीर, कहां मरे फिरते हो, दिखता नहीं गाड़ी आ गई है, सामान उतरवाना है। कहीं भोजन दिखा नहीं कि पहुंच गए दूषित करने। पंडित जी ने फटकार ते हुए दोनों से कहा।
सामान तो अच्छी लकड़ी से बनवाया लगता है, मानो सीधे खेतों से शीशम की लकड़ी उठा बनाया हो, समीर ने समर से कहा। अमीर लोगों के अमीर चोचले भाई, अपने जीवन में यह सब कहां, अपना तो वही घर पर पुराना बस्ता-बिस्तर तैयार है, कि समर ने मंद आवाज में कहा।
खाना पूरी तरह लग चुका है, लड़की के घर से आए लोग पकवानों का लुफ्त उठा रहे हैं। पंडित जी के मेहमानी भी गरमाजोशी से सबका स्वागत कर रहे हैं। लड़की के पिता सूरजमल वैसे बड़े समझदार आदमी हैं, ईमानदार सरकारी नौकरी में उनकी गिनती जो ठहरी।
अरे, ई दो बच्चुआ लोग कौन है। सूरजमल जी ने पूछा। ई साहब छोड़िए, दूषित लोग हैं, पता नहीं कहां से इहां चले आए, चलो निकलो रे। पंडित जी ने गुस्से भरे स्वर में कहा। अरे पंडित जी क्या बकवास कर रहे आप, दूषित क्या यह लोग कीचड़ में पैदा हुए हैं, हमारी आपकी तरह किसी मां के गर्भ से हुए हैं ना। आप पंडित खानदान में हुए और ये एक नीचे एक नीची जात में, ये एक संजोग भर से ज्यादा कुछ भी नहीं। आप जैसे पंडित लोगों को जिनका कार्य समाज को सीख प्रदान करना है, अगर वही इस तरह घटिया बात करेंगे तो कौन आपको मान प्रदान करेगा। सारी दुनिया पंडितों को पूजती है तो सिर्फ और सिर्फ उनके ज्ञान के कारण। एक ऐसे घर में जहां नीची जात के लोगों को प्राणी मात्र तक नहीं समझा जाता, वहां मैं अपनी बेटी की शादी करके उसे नर्क में नहीं धकेलना चाहता। मिश्रा जी, सामान वापिस गाड़ी में रखवाइये और मुकदमा दर्ज करवाये इनपर।
अरी माई-बाप, माफ करदो साहब, हम तो इन बच्चों को खाना खिलाने वास्ते ही बुलवाए थे, पता नहीं किसने इन्हे काम पर लगा दिया। उसके बाप पर हमारा बहुत उधार है, वही उधार अगर ये थोड़ा काम करके चुकाना चाहते थे, तो हमने इनको मना नहीं किया। इतने ही बात है साहब।
पंडित जी, तो आप बच्चों से बाल मजदूरी भी करवाते हैं, आपका तो बचा हुआ समय कालकोठरी में ही जाएगा।
समर और समीर दोनों बेतहाशा ये दृश्य निहार रहे थे। दोनों क्या हो रहा था इससे अनजान थे लेकिन इतना अंदाजा था कि बात उनकी ही हो रही थी, इतने में सूरजमल जी ₹100 रुपये, पकड़ते हुए कहते हैं कुछ खाना और कपड़े खरीद लेना और कल से स्कूल पढ़ने आना।
मोटर गाड़ी में सवार सूरजमल वापस जा रहे हैं। समीर और समर एकहट गाड़ी निहार रहे हैं। सहसा गाड़ी उनकी आंखों से ओअल हो गई।

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