गेहूं कटाई ANKIT YADAV द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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गेहूं कटाई

गैहुँ कटाई

सुमित की माँ एक टोकरी मे खाना रखते हुए सुमित से बोली जल्दी चलो सुमित, तुम्हारे पापा खेत मे हमारी राह देख रहे होगे। सुमित आज कुछ निरस सा प्रतीत जान पड़ रहा था। उसकी रुचि आज खेते मे गेहुँ कटाई में हाथ बटाने की बजाय गांव मे हो रही कबड्डी देखने मे अधिक प्रतीत हो रही थी, इसी का आभास करते हुए माँ बोली : कबड्डी, बैट - गिंडी, खोखो, ये सब भरे-पूरे घरो के बच्चे के चोचले हैं, ये है कोई खेल, अरे खेल तो असली खेत मे है, जब भाई- बहन तक हार दोपहर में पेड़ के नीचे खेलते हैं। सुमित की बहन कीर्ति कुछ आज ज्यादा ही रोमांचित जान पड़ती थी, क्योंकि उसे बुखार था, तो वो आज खेत मे केवल आराम भर करने वाली थी । घर वो रुकी नहीं क्योंकि अकेले घर रुकने से उसे डर लगता था। इसी नोकझोंक के बीच तीनों शाकल बंद कर खेत की तरफ चल दिए। सुमित लगातार खेल मैदान को एकहट निहारते हुए जा रहा था।
सुमित का पिता पवन जोश में गेहुँ काटने में मगन था, पत्नी व बच्चों को देख अतिरिक्त तीव्रता से काम शुरु कर दिया । ओर भाई क्या लाई हो खाने में ' ।. वही रोज का सब्जी, रोटी व दही। अरे तो ये वया कम है।" ' हां कम तो नहीं, भुखे पेट से कुछ ये ही अच्छा।'
'अरे कीर्ति देखो, पानी कैसे तेज बहाव मे नाली से चला आ रहा है। ' हां सुमित, पानी अपने साथ-साथ मिट्टी को भी ला रहा है। लेकिन सुमित एक बात बताओ, जब पानी नाली से खेतो मे जाता है, तो वो सुखता क्यों नही है?
"क्योकि मिट्टी पानी पी पीकर छक जाती है और फिर वो पानी पीना बंद कर देती है, इसलिए पानी नाली मे नही सकता । 'माँ, ये देखो, सुमित गेहूँ काटने की बजाय उन्हे उपर से तोड़ रहा है। " सुमित, तुम पागल हो, पता भी है 6 महीने की मेहनत से एक फसल उपज होती है, ऐसे तोड़ोगे तो फिर खाओगे क्या?
खैर 12 बज रहे थे, ऐसे में दिन का पहले आराम का वक्त हो चला था, तो पवन अपनी पगडी बिछा वही घास में सफेदे के नीचे लेट रहा था, सुमित की मां खाने के बर्तन धो धोकर सुखा रही थी । वही कीर्ति बेचारी थक गई थी तो पेड़ के उपर चढ़ पहले ही सो गई थी । सुमित को अब फिर खेल की याद सताने लगी, ले मौका मिलते ही भागा गाँव की तरफ मौसम 50 डिग्री आग बरसा रहा था। सुमित रास्ते मे ही जुलस गया व उरुकी आँखो मे अन्धेरी छा गयी। खबर मिली तो पवन दौड़ा - 2 जा पहुँचा पहुंचकर देखा तो सुमित गंभीर लग रहा था। मां ने पानी के छीटे मारे, तो सुमित को सॉंस मे सॉंस आया। कीर्ति निसहाय रोए जा रही थी। मां ने सुमित को गले से लगा लिया व खुब डॉटा। चारो उस दिन घर दोपहर को ही चल दिए। गेहुं का अभी एक फेर ही कटा था। घर जाकर कीर्ति ने Telivision चालु किया। light आ रखी थी व 4 बजे तक रहने वाली थी।
कीर्ति ने अपने - नियमानुसार sony pal पर cid show लगा दिया। दोनों इसे खाने का लुप्त उठाते हुए देख रहे थे। युँ तो खाने मे प्याज, रोटी के सिवाय कुछ न था। लेकिन मेहनत करने के बाद प्याज, रोटी वाला स्वाद पनीर मे कहा मिलता है। सुबह 10 बजे उठकर ॥ बजे Noodle खाने वाले कभी भी प्याज, रोटी का सुख नही प्राप्त कर सकते। मेहनत मे एक दिव्यता होती है, जिसके बाद की भुख प्याज, रोटी सबसे ज्यादा अच्छे तरिके से शांत करती है।
मौसम गहराया जा रहा था, घने काले बादल आसमान को घेरे थे | जैसे कि सामान्यत गाँव मे होता है, बदल आते ही light चली गई थी | पवन को खेतो की चिंता सताने लगी की कही कटा पड़ा गहुँ बर्बाद न हो जाए | सुमित , पवन व सुमित की माँ तीनो खेतो की तरफ दौड़े | कीर्ति ने घर पर ही पशुओ का सानी- पानी का इंतजाम किया | कीर्ति गोवर उठाए उसे फेकने निकली ही थी की धड़ाधड़ा ओले गिरने लगे |
सुमित के सिर पर टम से मोटा ओला गिरा, वो वही गिर गया। पवन अपनी मंडासी के सहारे अभी तक ओलो मे डंटा हुआ था, मंडासी से भी ज्यादा उसके उपर जिम्मेदारियों का कवच था जिसे ओले तोडने मे समर्थ न थे।
पक्न लगातार कटी हुए फसल को आड़े मे लाता था, व सुमित क़ी मां नित उसे समेट रही थी, सुमित सिर पकड़े एक कोने मे खुली आँखो से अपने भविष्य के सपने देख रहा था। बैठे - 2 घर जिनमे पूरे दिन बिजली रहती होगी, खुब खाने को होगी, बड़े - 2 TV . जिनमे पूरे दिन CID आएगी। बच्चों के सपने ऐसे ही होते हैं। उनका मन टीवी वाली जिंदगी चाहता है। सपनों का मायाजाल लगातार बनता बिगड़ता रहता है। एक उम्र में बच्चे सीआईडी का सपना देखते हैं तो एक निश्चित उम्र के बाद एक खास उम्र में उनके सपने रंगीन होने लगते हैं। Pornography से लेकर असल व्यक्तियों की pornographic imagination तक, उनके सपनों का हिस्सा बनते हैं। कुछ इसे गलत मानते हैं तो कुछ अंधाधुन समर्थन करते हैं। दरअसल इसमें ठीक या गलत का फैसला व्यस्क खुद को करना है। Imagination के सहारे हाथ से काम चलाना है या कुछ करके एक संपूर्ण जीवन जीना है। खैर सुमित का सपन जल्द टूटता है। पवन,सुमित पानी की नाली को साफ करने लगते है, सुमित की मां कीर्ति की फिक्र करते हुए घर को निकलती है। गांव में ऐसे सपने रोज बनते हैं व रोज टूटते हैं। इसी में जिंदगी का मजा है। अपूर्णता में ही पूर्ण आनंद है। सुमित-कीर्ति पहले खाना खाने के लिए झगड़ रहे थे तो मां ने आज एक साथ खाने को कहा है। पवन अभी गांव में चौराहे पर बैठकों में है। कीर्ति अनायास अपने नियम अनुसार sony pal चालू करती है व दोनों Cid के case सुलझाने में लग जाते हैं दरअसल जो case केवल Cid सुलझा सकती है।