स्क्रीन टाइम कितना अच्छा कितना बुरा
दिन भर में काफी समय हम अपने डिवाइस के स्क्रीन पर बिताते हैं , यह डिवाइस चाहे टी वी हो या स्मार्ट फोन या टैबलेट या कंप्यूटर आदि कुछ भी . इनके अतिरिक्त आजकल फ्रिज , डोर बेल आदि गैजेट भी इंटरएक्टिव स्क्रीन के साथ मिलने लगे हैं . कभी मनोरंजन के लिए तो कभी न्यूज़ , स्पोर्ट्स आदि के लिए हम अपने डिवाइस के स्क्रीन पर नजरें टिकाएं रहते हैं , यहाँ तक की सोने के समय तक भी . एक तरफ जहाँ हम सोचते हैं कि स्क्रीन टाइम हमें रिलैक्स करता है वहीँ दूसरी तरफ कुछ न्यूरोलॉजिस्ट का कहना है कि यह हमें उत्तेजित करता है .
यदि आप सोने के पहले तक अपनी डिवाइस के स्क्रीन पर देख रहें हैं तो क्या आपने खुद से ये सवाल किए हैं -
1 . क्या स्क्रीन टाइम सही मायने में आपको सुकून देता है ! हो सकता है आप यह महसूस नहीं कर रहे हों कि आपका डिवाइस आपको मानसिक और भावनात्मक रूप से स्टिमुलेट ( उत्तेजित ) कर रहा है पर यही हक़ीक़त है . फेसबुक या ट्विटर आदि पर स्क्रॉल करने और किसी पुस्तक के पन्ने पढ़ने में बहुत अंतर् है . बेड टाइम का समय हमें अपनी गतिविधियों पर फुल स्टॉप लगाने का समय है . हमारे डिवाइस के स्क्रीन के कुछ कंटेंट हमारी दिलचस्पियों और दिमाग को स्टिमुलेट करते हैं न कि रिलैक्स .
2 . स्क्रीन हमारे मूड पर क्या असर कर रहा है ! कभी सोशल मिडिया पर कुछ पोस्ट या विडिओ देख कर या किसी निकट के संबंधी के फोटो में खुद को न देख कर या दफ्तर से आये किसी ईमेल या मेसेज को देख कर आप बहुत उत्तेजित हो सकते हैं . यह आपके मूड और निंद्रा को ख़राब कर सकता है . हो सकता है कभी आप इंटरैक्टिव हों , ऐसे में सोते समय विडिओ देखने से आपके चिंतित होने , स्ट्रेस्ड होने या अकेला पन महसूस करने की संभावना ज्यादा होती है .
3 . आपके स्क्रीन का आपकी नींद पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ! उपरोक्त कथन के अनुसार सोते समय चिंतित , अपसेट या स्ट्रेस्ड होने का प्रतिकूल असर हमारे मष्तिष्क पर पड़ता है . यह उत्तेजित और एक्टिव हो उठता है ,नींद नहीं आती है . सोते समय विडिओ देखने से नींद और भी ज्यादा विचलित हो जाती है . कभी हम नींद टूटने पर रात में अपना डिवाइस ऑन कर लेते हैं . रात्रि में नींद टूटना स्वाभाविक है और फिर कुछ समय के बाद स्वतः निद्रा आ जाती है पर यदि इसी बीच में स्क्रीन देखने लगते हैं तो निंद्रा आने में और ज्यादा देर हो सकती है . हमारे डिवाइस से निकलने वाली नीली प्रकाश की किरणें नींद और ब्रेन के लिए अच्छी नहीं हैं . रात में ठीक से नहीं सोने से दूसरे दिन थकावट लगती है और हम अपने काम पर ठीक से केंद्रित नहीं हो पाते हैं .
4 . क्या हमारे पास डिवाइस ऑफ करने की इच्छा शक्ति है ! सही मायने में डिवाइस कोई इशू नहीं , है पर क्या हमारे पास स्क्रीन पर रहने का कोई ठोस कारण है , यह मायने रखता है . अक्सर ज्यादातर लोग इस पहलू को नजरअंदाज करते हैं . हमारा डिवाइस एक तरह से हमें क्या करना है इसकी सूची देता है और इसमें बहुत विषय अनचाहे या बेकार हो सकते हैं . अगर हम डिवाइस ऑफ नहीं करते हैं तब यह समस्या का समाधान न कर इसे बनाये रखता है .
सोने के पहले स्क्रीन टाइम कम करने के टिप्स -
सर्वप्रथम सोने का यथासंभव एक नियमित रूटीन हो .
सोने के आधा से एक घंटे के पहले किसी डिवाइस पर नहीं जाएँ .
यथासंभव सोने के पहले स्नान ( गुनगुने गर्म पानी से ) करें .
बेडरूम में लाइट और साउंड आपकी पसंद के अनुसार सूदिंग और रिलैक्सिंग होनी चाहिए .
मेडिटेशन , प्रार्थना या अपनी रूचि की पुस्तक पढ़ें .
यथासंभव सोने के पहले इंटरनेट और अपने डिवाइस को ऑफ रखें और फोन को बेड से दूर रखें . आप सोच सकते हैं कि साइलेंट मोड में रखने से काम हो जायेगा पर वास्तव में रियल साइलेंट मोड है कि बैडरूम में इसे न ही रखें .
समाप्त