माँ सब जानती है S Sinha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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माँ सब जानती है


कहानी - माँ सब जानती है 

 

महेश बाबू कुछ माह पहले रिटायर हुए थे  .  अभी तक वे पटना में खुद के बनाये घर में रह रहे थे  .  उनका इकलौता बेटा सोनू इंजीनियर था  .सोनू मुंबई में किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था  . महेश बाबू  बेटे की पसंद की लड़की से उसकी शादी करा कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए थे , कम से कम वे तो ऐसा ही सोचते थे  .  उनकी पत्नी सीता देवी उनसे कहती “ अभी आप जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हुए हैं  . आप मेरे लिए भी  जिम्मेदार हैं , यह बात आप कैसे भूल जाते हैं ? “ 


“ शादी के बाद से मैं तुम्हारी सभी जरूरतें पूरी करते आया हूँ या नहीं ? बोलो “   महेश बाबू ने कहा 


“ सिर्फ भौतिक जरूरतें पूरी करना ही आपकी जिम्मेदारी है  ?  मुझे ब्याह कर अपने घर ले आये हैं और मुझे दुनिया से रुखसत करने के बाद ही आप मुक्त हो सकते हैं  .”  सीता देवी ने कहा 


महेश बाबू ने हँसते हुए कहा “ पगली हो क्या ? मैं तुम्हारे मरने की सोच भी नहीं सकता हूँ  . तुम्हारी उम्र मुझ से भी ज्यादा हो  . “ 


“ छिः , शुभ शुभ बोलिये  . “ 


“ अच्छा , फ़िलहाल ये बातें छोड़ो  . एक जरूरी बात करनी है तुमसे  . मैं सोच रहा था कि अब क्यों न हम गाँव में चल कर अपने पुश्तैनी घर में रहें  . अभी तो हमारे हिस्से की खेत भी सुरेश देखता है  . उसका परिवार भी अब बड़ा हो रहा है  . अभी तक वह  मुझे मेरा हिस्सा देता आया है  . अब मैं अपनी जिम्मेदारी से लगभग मुक्त हो गया हूँ  . हालांकि हमारे पास ज्यादा पैसा तो नहीं है ना ही मुझे कोई पेंशन मिलती है फिर भी पीएफ , ग्रेच्युटी आदि से दो जनों का खर्चा चल जायेगा  . जल्द ही अपनी जमीन भी उसी के नाम कर दूंगा  . तुम्हारा क्या विचार है ?”


“ आपने ठीक ही सोचा है  . देवरजी ने आजतक कभी हमसे कोई बेईमानी नहीं की है  . आजकल उनकी हालत कुछ तंग है  . “ 


महेश बाबू और सीता देवी दोनों गाँव में रहने लगे   . उनका गाँव उत्तर बिहार में नेपाल की  सीमा के निकट था  . अक्सर वहां बाढ़ का खतरा रहता ख़ास कर जब नेपाल की तरफ से ज्यादा पानी छोड़ दिया जाता था  . महेश बाबू ने अपने हिस्से का खेत छोटे भाई के नाम कर दिया  . उनकी मांग बस इतनी थी कि उनकी और उनकी पत्नी दोनों के खाने पीने की जिम्मेदारी सुरेश की होगी  . सुरेश को यह भी सहर्ष स्वीकार था  . दो  साल के बाद महेश बाबू का देहांत हो गया  . इस बीच उनकी बीमारी में कुछ जमा पैसे खर्च हो गए थे फिर भी महेश बाबू जो रूपये छोड़ गए थे वे उनकी  पत्नी के गुजारे के लिए पर्याप्त थे  . 


 महेश बाबू के देहांत के बाद बेटे ने माँ को मुंबई में बुलाया  . सीता देवी वहां गयीं भी पर उनका मन वहां नहीं लग रहा था  . दो कमरे के अपार्टमेंट में न कहीं धूप न आसमान देखने को मिलता  . एक बार  उनका  देवर सुरेश उनसे मिलने मुंबई गया  . गाँव में बाढ़  के कारण  नुकसान हुआ था , उसे कुछ नगद की जरूरत थी  . सीता देवी ने उसे कुछ रूपये अपनी तरफ से दिया और कुछ बेटे की तरफ से दिलाया  . पर उन्होंने बहू को बेटे से कहते सुना “ एक बार दे दिया सो  ठीक है  मुझे डर है कहीं इन लोगों की आदत न बन जाए  . ये गाँव वाले शहर में रहने वालों की मजबूरी नहीं समझते  . हमारे घर का EMI , फिर मुन्ने  की पढ़ाई लिखाई आदि पर कितना खर्च आता है यह इनके दिमाग में नहीं आता है  . हमारा हाथ कितना तंग रहता है हमें ही पता है  . माँ जी  को भी अपने देवर को समझाना चाहिए कि अपनी चादर  देख कर पैर फैलाया करें   . “


सीता देवी सुन कर चुप रहीं और वे  भी सुरेश के साथ वापस गाँव आ गयीं  . कुछ महीने गाँव में रहने के बाद सीता देवी फिर मुंबई आयीं  . उनके पोते का जन्मदिन था  . वे पोते के लिए कपड़े , खिलौने और चॉकलेट ले कर आयीं थीं   . मुन्ने का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया    . इस के कुछ ही दिनों के बाद सुरेश अपने बेटे की इलाज के लिए मुंबई आया   . हालांकि उसने सीधे तौर पर किसी से कुछ नगद नहीं मांगी थी फिर भी सीता देवी ने अपनी तरफ से उसकी भरपूर मदद की   . पर इस दौरान सुरेश को एक महीने से ज्यादा दिन मुंबई रहना पड़ा था   . उसके रहने खानेपीने , कभी दवा के लिए पैसों और अस्पताल आने जाने का इंतजाम सोनू और उसकी पत्नी को करना पड़ता था   . सोनू ने अपने मुंह से कभी कुछ नहीं कहा था पर उसकी बीबी  की आवाज़ अक्सर सीता देवी  के कानों में पड़ती “ अरे मुंबई में दो जनों के खानेपीने , आने जाने दवा दारू के  खर्च के पैसे क्या आसमान से टपकते हैं   . नाक सीधे पकड़ो या घुमा कर बात तो एक ही है   .  “ 


खैर , सुरेश का बच्चा कुछ दिनों में ठीक हो गया और वह वापस गाँव चला गया   . पर उसके जाने के  बाद भी सीता देवी ने बहू को बेटे से कहते सुना “ सुनो जी , ऐसे ही चुपचाप बैठे रहने से काम नहीं चलेगा   . या तुम बोलो या मुझे इन लोगों को  बोलने दो - ऐसा हमेशा नहीं चलेगा , हमारा घर है कोई धर्मशाला नहीं है   . दो साल के अंदर ही मुन्ने को बोर्डिंग में भेजना है , अगर अभी से पैसे  नहीं बचाये  तो हम कहाँ और किस से मांगने जायेंगे   . दो तीन महीने में जिस कार की बुकिंग की थी उसकी डिलीवरी भी है   . उसका EMI भी देना होगा , अगर दूसरों पर यूँ ही लुटाते रहे तो कहाँ से लाओगे इतने पैसे तुम  ?”


सीता देवी का मन मुंबई में नहीं लगता था  . वे दो तीन महीने बाद अपने गाँव वापस चली जातीं  . बीच बीच में सोनू फोन कर उनसे बात करता और मुंबई आने की बात कहता  . करीब दो साल हो गए पर इस दौरान सीता देवी  बेटे के बुलाने पर  भी मुंबई नहीं गयीं थीं  . इन दो सालों में सीता देवी ने सुरेश के लिए एक ट्रेक्टर और टिलर मशीन खरीदवा दिए  . आधी रकम तो उन्होंने अपनी तरफ से कैश पेमेंट किया और बाकी रकम सुरेश को किस्तों में चुकानी थी  . ऊपर वाले की दया से अब सुरेश के खेतों की  पैदावार काफी बढ़ गयी थी  . इसके अतिरिक्त ट्रेक्टर और टिलर को दूसरे किसानों को भाड़े  पर देने से भी आमदनी हो रही थी  . भाग्यवश पिछले दो सालों  में कोई बाढ़ की समस्या भी नहीं आयी और फसल अच्छी हुई  . 


 कुछ दिनों बाद सोनू का फोन आया , उसने कहा “ माँ , बहुत दिन हुए मुंबई आओ न  . हमने नयी गाड़ी ली है  . गाड़ी से हमलोग घूमने चलेंगे तुम्हारी पसंद की जगहें - द्वारका , सोमनाथ आदि  . “ 


“ बेटे मैं जरूर आऊँगी पर अभी हाथ जरा तंग है  . जैसे ही कुछ पैसे आएंगे मैं जरूर आऊँगी  . “ 


“ कहो तो कुछ पैसे भेज दूँ या टिकट भेज दूँ  . कुछ महीनों में मुन्ना भी बोर्डिंग में चला जायेगा तो फिर उस से छुट्टी के दिनों में ही भेंट होगी  .  “  सोनू ने कहा 


“ हाँ , हाँ  . जरूर भेज दो  . हवाई जहाज का टिकट भेज दो जैसे कि लॉट्री  लगी है न  . अभी मुन्ने के बोर्डिंग  में दाखिले के समय डेढ़ लाख रूपये चाहिए  “  पीछे से बहू के धीरे से बोलने की आवाज सीता देवी के कानों में पड़ी  पर उसकी आवाज इतनी धीमी भी नहीं थी कि वे सुन नहीं सकतीं थीं   . खैर वे सब सुन कर चुप रहीं और ” मुन्ना के जाने के पहले जरूर आऊंगी “ कह कर  फोन काट दिया  . 


करीब तीन महीने बाद सीता देवी अचानक बिना बताये बेटे के घर मुंबई  गयीं  . उन्हें देख कर सोनू बहुत खुश हुआ और बोला “ बहुत अच्छा हुआ माँ जो तुम आ गयी  . मुन्ना अगले महीने बोर्डिंग में चला जायेगा  . “ 


“ इसीलिए तो आ गयी पोते से मिलने  . मुन्ना तो सिर्फ छुट्टियों  में आया करेगा पर पता नहीं दुनिया से कब मेरी छुट्टी हो जाये  . “  बोल कर उन्होंने मुन्ने को गले से लगाया और उसे जी भर के प्यार किया और उसे कुछ उपहार दिए  . 


रात्रि में डिनर के बाद सीता देवी ने सोनू के हाथ में एक लाख रुपयों का गिफ्ट चेक दिया और कहा “ मेरी तरफ से यह सोनू की पढ़ाई के लिए है  . मुझे पता है तुम्हें रुपयों की जरूरत है  . “ 


“ तुम्हें कैसे पता है ? “ 


“ मैं माँ हूँ न बेटे  . माँ सब जानती है ख़ास  कर अपनी  संतान के दिल की बातें  . “  


दो दिनों के बाद सीता देवी वापस अपने गाँव आ गयीं  . कुछ ही दिनों के बाद उनका देहांत हो गया  . 

 

समाप्त