-बेटा- Asha Saraswat द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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-बेटा-

बेटा
बहू अगर तुम्हारी इजाजत हो तो क्या मैं अपने बेटे को घर ले जा सकता हूं?

घर में बहुत शांति पसरी हुई थी। अगर पत्ते भी हिलते तो उनकी आहट तक सुनाई दे रही थी। उससे ज्यादा मौन और खामोशी तो वैदेही जी के मन में थी। घर में दो शख्स मौजूद थे पर उसके बावजूद दोनों अलग-अलग कमरों में थे। अचानक गिलास गिरने की आवाज आई तब वैदेही जी की तंद्रा टूटी। उठकर रसोई में गई तो देखा पति सोमेश जी जमीन पर गिरे पानी को साफ कर रहे थे।

आप रहने दीजिए। मैं साफ कर देती हूं।

पानी पीने आया था। पता नहीं अचानक हाथ से गिलास कैसे गिर।

अरे रे कोई बात नहीं। हो जाता है कभी-कभी कभी कहती कहती वैदेही जी सोमेश जी के हाथ से पोछा लेकर फर्श साफ करने लगी।

सोमेश जी को उनकी यह चुप्पी बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए वो बोले।चलो, पड़ोस के मंदिर में संध्या आरती करके आते हैं।

मेरा मन नहीं है जी। आपको जाना है तो आप जाइए
आखिर कब तक बेटे का इंतजार करती रहोगी। चार पांच दिन बाद आ जाएगा ना।

हां, पता है कैसे आएगा... वैदेही जी ने तंज कसते हुए कहा।

अब छोड़ो भी। क्यों उम्मीद करके बैठी हो। बेवजह जितना ज्यादा उम्मीद करोगी उतना ही तुम परेशान होगी..
"मैं भी तो माँ हूँ "कहते-कहते वैदेही जी फूट-फूट कर रोने लगीं। लेकिन इस बार सोमेश जी ने उन्हें चुप नहीं कराया बल्कि उनका हाथ अपने हाथ में लेकर चुपचाप उन्हें रोने दिया। जब से वंश की शादी हुई है तब से ये हर बार का सिलसिला हो चुका है।

वंश सोमेश जी और वैदेही जी का इकलौता बेटा था। शादी के पूरे बाद सात साल बाद उसका जन्म हुआ था, इसलिए लाड़ला भी था। उसकी शिक्षा-दीक्षा पर माता-पिता ने बहुत अच्छे से ध्यान दिया था। पढ़ा लिखा कर उसे इंजीनियर बनाया। आज एक मल्टीनेशनल कंपनी में बड़े ओहदे पर कार्यरत है।

वंश अच्छी तरह से सेटल हो चुका था इसलिए दो साल पहले काफी सोच समझकर उसकी शादी रोमा से करा दी गई। काफी अरमान थे कि बहू घर आएगी तो थोड़े दिन ही सही घर में रौनक तो होगी। उसके बाद तो वैसे भी उसे वंश के साथ उसके जॉब प्लेस बेंगलुरु ही जाना था।

पर अरमान सब धराशायी हो गए। शादी के बाद कुछ दिन तो घूमने फिरने में ही निकल गए और हनीमून से आने के बाद वो अपने मायके जाकर बैठ गई यह कह कर कि मुझे मेरी मम्मी की याद आ रही है। हाँ, जिस दिन वंश को बेंगलुरु रवाना होना था उससे एक दिन पहले रोमा ससुराल आई थी वो भी अपना सामान पैक करने के लिए। तब भी उसने वैदेही जी से ढंग से बात नहीं की। पर सबको यही लगा कि वो अभी नई नई है।

घर का माहौल भी नया है। इसलिए वो घुल मिल नहीं पा रही। पर यह गलतफहमी भी सोमेश जी और वैदेही की दूर हो गई क्योंकि रोमा जब भी आती सीधे मायके ही आकर रुकती थी। और जिस दिन रवाना होना होता था उसके तीन चार घंटे पहले ससुराल आकर मिल लेती थी। पहले तो फिर भी वंश रोमा को मायके छोड़कर सोमेश जी और वैदेही जी के पास आ जाता था। लेकिन पिछले चार बार से वंश वैदेही के साथ उसके मायके ही रूकता था।

जब सोमेश जी ने वंश से कहा कि बेटा कुछ दिन अपनी मां के पास भी रुक जाया करो तो वंश ने मायूस होकर कहा, रुकना तो चाहता हूं पापा,पर क्या करूं? रोमा को पसंद नहीं है। वो कहती है कि मैं बेटी हूं इसलिए मुझे मायके जाने की इजाजत लेनी पड़ती है। तुम्हारा अच्छा है जब देखो अपनी मम्मी के पास जा कर रुक जाते हो। कभी मेरे माता-पिता के पास भी रुको, तो उनका मन खुश हो जाए। अब बताओ पापा मैं क्या करूं?"

पर बेटा हमने उसे कभी रोका कहाँ है? और वैसे भी वो हमारे पास रुकी कब है?

सही कहा पापा, लेकिन क्या करें ? एक-दो दिन पहले भी आने की कोशिश करता हूं तो मुंह फुला कर बैठ जाती है। कुछ कहो तो वो फिर लड़ने झगड़ने लग जाती है और फिर मैं घर की शांति के लिए चुप रह जाता हूं।और इस बार भी यही हुआ। वंश और रोमा पिछले तीन दिन से इस शहर में आए हुए हैं पर रोमा के मायके में रुके हुए हैं।

हर बार तो वैदेही जी तसल्ली कर लेती थीं पर इस बार उनकी हालत सोमेश जी से देखी नहीं गई। दूसरे दिन सुबह सुबह तैयार होकर सोमेश जी घर से रवाना हुए और सीधे पहुंच गए रोमा के मायके। इतनी सुबह उन्हें घर आया देखकर सब लोग हैरान रह गए। तभी रोमा के पापा ने कहा,अरे समधी जी, आज इतनी सुबह सुबह। आइए बैठिए आज सुबह-सुबह कैसे आना हुआ "समधी जी, बस आपसे इजाजत लेने आया था" सोमेश जी ने भी अपने हाथ जोड़ते हुए कहा।

उनकी बात सुनकर सब हैरान रह गए और एक दूसरे की शक्ल देखने लगे।

हम समझे नहीं समधी जी, आप कहना क्या चाहते हैं" रोमा के पापा अभी भी हैरान परेशान थे।

वो क्या है ना समधी जी, पहले जब बेटियाँ शादी होकर ससुराल जाती थीं तो उसके मायके वाले उसे लिवाने आते थे और यूं ही उसके ससुराल वालों से इजाजत मांगते थे। देखिए समधी जी हमें पता है कि जमाना बदल गया है तो हमें कोई एतराज नहीं। हम भी अपने बेटे को ले जाने के लिए आपसे इजाजत मांगने आए हैं। उसकी मां भी पूरा साल उसका इंतजार करती है। पर क्या करें मेरा बेटा तो कुछ बोल नहीं पाता इसलिए आप और रोमा कहे तो क्या मैं अपने बेटे को घर ले जा सकता हूं?"

अरे समधी जी, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? बेटा बहू तो आपके ही हैं। उन पर आपका पूरा हक है।

क्या सच में? शादी के दो साल में तो कभी लगा नहीं मुझे। उल्टा तो यही लगा कि मेरा बेटा भी मेहमान ही बन गया है। जो यहां से रवाना होने से पहले एक-दो घंटे पहले आता है और मेहमानों की तरह मिल कर चला जाता है"
तब आखिर रोमा के पापा ने अपनी पत्नी और अपनी बेटी रोमा की तरफ देखा। दोनों नजरें झुकाए चुपचाप खड़ी हुई थीं आखिर रोमा के पापा बोले।

माफ करना समधी जी, गलती आपकी नहीं है गलती हमारी है। हमने कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। बेटी की शादी तो कर दी पर कभी यह नहीं देखा कि वह अपने ससुराल में किस तरह का व्यवहार कर रही है"
फिर रोमा से मुखातिब होकर बोले....
रोमा जाओ, अपना सामान पैक करो। तुम आज ही अपने ससुराल जा रही हो। और याद रखना जैसे तुम्हारे मम्मी पापा तुमसे मिलने के लिए इंतजार करते हैं, वैसे ही तुम्हारे पति के मम्मी पापा भी उनसे मिलने के लिए इंतजार करते हैं।

अगर यहाँ मिलने आती हो तो कम से कम दोनों जगह पर बैलेंस बनाकर चलो। और मेहमानों की तरह ही ससुराल जाना है तो माफ करना, आज के बाद मायके में तुम्हारा स्वागत भी मेहमानों की तरह ही होगा। याद रखना कोई शिकायत का मौका ना मिले.....!

अपने पापा के कड़े रुख को देखकर रोमा की ज्यादा कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई। उसने अंदर जाकर अपना और वंश का सामान पैक किया और सोमेश जी के साथ ससुराल रवाना हो गई।

इधर घर की डोर बेल बजी तो वैदेही जी ने जाकर दरवाजा खोला। सामने बेटे बहू को खड़ा देखकर वो खुश हो गई....अरे तुम लोग? आज ही जा रहे हो क्या?"

वैदेही जी का सवाल सुनकर बेटा बहू झेंप गए। पर फिर वंश मां को गले लगाते हुए बोला, नहीं माँ, इस बार हम कुछ दिन आपके पास भी रुक कर जाएँगे। वहाँ आपके बिना मन नहीं लगता था!

" सच में? रुको रुको, मैं अभी आई"
वैदेही जी फटाफट भागती हुई पूजा घर में गई और पूजा की थाली लगा कर ले आई और बेटे बहू की आरती उतारकर उन्हें घर में लिवा लाई। थोड़ी देर बाद सोमेश जी भी घर में आए और वैदेही जी को खुशी को देखकर खुश हो गए।

कहां चले गए थे सुबह-सुबह। देखो बच्चे घर आए हैं और अब ये लोग कुछ दिन यही रुकेंगे
" अच्छा! ये तो बड़ी खुशी की बात है"
कहकर सोमेश जी अपने कमरे में चले गए। पर ना उन्होंने कभी अपनी पत्नी को बताया और ना ही उनके बेटे बहू को बताने दिया कि बेटे बहु अचानक रुकने के लिए घर कैसे आ गए? आखिर वो एक मां के विश्वास को बनाए रखना चाहते थे।