पिता की सीख Asha Saraswat द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पिता की सीख

सचिन के पिताजी बहुत अच्छी मूर्तियाँ बनाते थे।उसको देखकर बहुत अच्छा लगता था। प्रतिदिन वह अपने पिताजी को मूर्तियाँ बनाते देखता तो उसका भी मन करता कि वह भी अच्छी मूर्ति बनाये ।

धीरे-धीरे सचिन भी मूर्तियों को आकार देने लगा। अब सचिन मूर्तियाँ बनाने के लिए बहुत मेहनत करने लगा।


सचिन अपने पिता के साथ मिट्टी लेकर आता फिर उसे कूट-पीस कर महीन करता ,मिट्टी में पानी मिला कर उसे गूँथ कर सुंदर मूर्ति बनाने में अपने पिता का साथ देता।

प्रतिदिन अपने पिता को मेहनत करते देखता तो उसका मन भी सुंदर-सुंदर मूर्ति बनाने को करने लगा ।जब कोई पिता की बनाई हुई मूर्ति की प्रशंसा करता तो उसे अच्छा लगता ।

जैसे-जैसे सचिन बड़ा हुआ वह भी अपने पिता के साथ,पिता को देखकर मूर्तियाँ बनाने लगा ।

लोगों द्वारा उसके पिता को बहुत प्रशंसा मिलती थी,अब सचिन भी प्रशंसा पाने लगा था।

सचिन सुंदर मूर्ति बनाता सभी उसकी प्रशंसा करते।वह जब मूर्ति बना कर पिता के पास ले जाता और दिखाता तो पिता कुछ बोलते नहीं थे।


सचिन का मन करता कि उसकी मूर्ति देखकर पिता जी प्रशंसा करें इसलिए वह बहुत मेहनत करता ।जब दिखाने जाता तो पिता कहते अभी और मेहनत करो।

अगली बार वह उसी जोश के साथ नई मूर्ति बनाता।सुबह उठकर मिट्टी लाता फिर उसे कूट-पीस कर छानता,उसमें पानी मिला कर गूँथता उसके बाद वह मूर्ति बनाता।पूरे मन से मेहनत करके जब वह अपने पिता के पास ले जाता तो फिर पिता जी कहते हॉ और मेहनत करो ।


आज सचिन ने फिर से नई मूर्ति बनाने की तैयारी की ।
पूरे मन से अपनी मूर्ति बनाने में जुट गया ।मूर्ति जब बनकर तैयार हुई तो सचिन ने उसमे रंग भरने शुरू किये रंग भरते हुए सोच रहा था आज तो पिताजी ख़ुश हो जायेंगे मैंने इतनी सुंदर मूर्ति बनाई है।जब मूर्ति बन गई तो उसे निहारकर सोचने लगा आज तो मेरी मूर्ति बहुत अच्छी बनी है ऐसा लग रहा है कि मूर्ति बोल पड़ेगी ।ख़ुश होकर वह सोच रहा था कि आज मेरी मूर्ति,पिताजी द्वारा बनाई गई सभी मूर्तियों से भी अच्छी बनी है।मूर्ति बना कर वह थक गया था।


जब वह पिताजी के पास अपनी मूर्ति लेकर गया तो उसे पूरा भरोसा था कि आज पिताजी बहुत ख़ुश होंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ ,उन्होंने कहा ठीक है और मेहनत करो।पिताजी अपने काम में लग गये सचिन को अच्छा नहीं लगा।


उसने वह मूर्ति उठाई और अपने दोस्तों के पास ले गया ।उसकी मूर्ति की सभी ने बहुत प्रशंसा की उसे बहुत अच्छा लगा,लेकिन पिताजी की बात उसे बिलकुल अच्छी नहीं लगी।उसने अपने दोस्त को बताया कि मेरी मूर्ति की मेरे पिता कभी प्रशंसा नहीं करते मुझे अच्छा नहीं लगता ।


सचिन के दोस्त ने कहा,तुम्हारे पिता अच्छी मूर्ति नहीं बनाते,तुम अच्छी बनाते हो इसलिए उन्हें अच्छा नहीं लगता
वह ख़ुश नहीं है।


अब सचिन ने अपने पिताजी की बनाई हुई मूर्ति पिताजी के सामने ले जाकर दिखाई और अपनी मूर्ति भी दिखाकर बोला—देखिए आपकी मूर्ति से मेरी मूर्ति अधिक अच्छी है ।आप नहीं चाहते कि मेरी प्रशंसा हो।


पिताजी समझ गये कि सचिन कहीं बाहर से शिक्षा लेकर आया है जो उसके हित में नहीं है।उन्होंने समझाया बेटा हमें बेहतर करने के लिए सदा प्रयास करना चाहिए ।थककर नहीं बैठना है।


परिवार में बड़े लोगों की शिक्षा बच्चों के हित में ही होती है।सदैव अच्छा सीखने का प्रयास करना चाहिए ।
आशा सारस्वत