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भ्रम का भूत



भ्रम का भूत

सीमा का घर गली के अंत में था। जब कभी भी बिजली गुल हो जाती तो घर में बहुत गर्मी लगती ।गर्मियों में घर में बैठना मुश्किल हो जाता ।गली में रास्ता बहुत छोटा होने की वजह से बाहर नहीं बैठ सकते थे।

सीमा के यहाँ इन्वर्टर नहीं था,बिजली गुल हो जाने पर हाथ के पंखे से हवा कर लिया करते और घर की छत पर चले ज़ाया करते थे ।

सर्दियों में अधिक परेशानी नहीं होती लेकिन गर्मियों में सभी बड़े और छोटे बच्चों को घर में बहुत गर्मी लगा करती ।

बिजली घर में जाकर सभी मोहल्ले के लोगों ने शिकायत की। बिजली में कोई सुधार नहीं हुआ ।
सबने विचार किया कि लिखित में अधिकारी महोदय को अर्ज़ी दी जाए ।
मोहल्ले के ताऊजी ने बिजली अधिकारी महोदय को एक पत्र लिखा ,उसमें गली में रहने वाले सभी लोगों के हस्ताक्षर कराए ।

पहले बिजली गुल होने का कोई समय नहीं था लेकिन पत्र लिखने के बाद कुछ राहत मिली ।

सुबह पॉंच बजे से सात बचे तक बिजली कटौती होती और शाम को भी पॉंच बजे से सात बजे तक बिजली कटौती कर दी गई ।

अब कुछ राहत थी सुबह सवेरे ठंडक में सब अपने काम करते,कोई परेशानी नहीं हुई ।

घर से पचास मीटर की दूरी पर एक मंदिर था ।मंदिर के आसपास काफ़ी ख़ाली मैदान था ।मैदान में बहुत से पेड़ थे उनमें एक विशाल पीपल का वृक्ष भी था।उसी की दायीं तरफ़ एक रास्ता था ।मंदिर से सौ मीटर की दूरी पर स्थित सीमा का स्कूल था,आगे कुछ घर थे और आगे रास्ता गॉंव की ओर जा रहा था।

शाम के समय पिताजी घर आ जाते तो सीमा और छोटा भाई सुमित नहाकर तैयार हो जाते ।पिता जी अल्पाहार लेने के बाद मॉं,सीमा,सुमित को साथ लेकर मंदिर जाते ।वहॉं खुले स्थान में खेल कर बहुत आनंद आता ।
बहुत से पेड़ होने की वजह से वहाँ ठंडी-ठंडी हवा लगती।दो घंटे कब बीत जाते पता ही नहीं लगता ।बिजली आने के समय अपने घर आ ज़ाया करते थे ।

प्रतिदिन मॉं पिताजी मंदिर में पूजा करके दीपक जलाया करते सीमा,सुमित को देखकर बहुत अच्छा लगता था ।

एक दिन शनिवार को पिताजी विशाल पीपल वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर रख रहे थे ।
सीमा ने पिताजी से पूछा—यह आप क्या कर रहे हैं पिताजी?

पिताजी ने कहा—यह पीपल का वृक्ष है इसके नीचे शनिदेव का दीपक जलाकर रख रहा हूँ ।
पीपल का वृक्ष रात-दिन आक्सीजन देता है ,हम सब यहाँ बैठते हैं चबूतरे पर।कोई गॉंव जाने वाला व्यक्ति भी यदि चलते-चलते थक जाता होगा तो बैठ जाता होगा ।यहाँ दीपक जलाकर रखने से पूरे रास्ते में उजाला रहता है ।आने-जाने वालों को ठोकर नहीं लगेगी ।

प्रतिदिन घूमने की दिनचर्या बन चुकी थी बिजली गुल होने से कोई अधिक परेशानी नहीं हुई ।

एक दिन मॉं को घर में काम करते देर हो गई ।पिताजी ने कहा चलो बच्चों हम चलते हैं ।हम वहाँ खेल रहे थे तभी बहुत तेज़ी से ऑंधी चलने लगी ।ऑंधी की वजह से अंधेरा हो गया ।कुछ देर हम मंदिर में बैठकर ऑंधी रुकने का इंतज़ार करते रहे ।कुछ कम हुई तो सब बाहर निकले और चबूतरे पर बैठ गये।पिताजी पीपल पर दीपक जला रहे थे ।
अंधेरा हो गया था माचिस की तीली को पिताजी जलाते और वह हवा से बुझ जाती,सीमा और सुमित चबूतरे पर बैठकर सब देख रहे थे।सारी तिल्लियाँ जलकर बुझ गई दीपक नहीं जला।

पिताजी ने सफ़ेद कुर्ता पजामा पहन रखे थे ।जब वह दीपक जलाने की कोशिश कर रहे थे ,तभी एक व्यक्ति गॉंव की ओर जा रहा था।

पिताजी ने उसके पास जाकर पूछा—क्या भाईसाहब आपके पास माचिस है,मुझे चाहिए ।....
इतना सुनकर वह व्यक्ति वहाँ से तेज कदमों से चलता हुआ दौड़ने लगा ।
फिर एक व्यक्ति और आया उससे भी पिताजी ने माचिस मॉंगी तो वह भी दौड़ने लगा ।
सीमा,सुमित चबूतरे से उत्तर कर पिताजी से बोले पिताजी घर चलिए अंधेरा है ऑंधी भी अभी पूरी तरह से रुकी नहीं है ।अभी ऑंधी की वजह से बिजली नहीं आई है ,अब घर चलते हैं और घर पर आ गये।

अगले दिन पूरे इलाक़े में शोर था कि पीपल के पेड़ के नीचे भूत रहता है वहॉं किसी को नहीं जाना चाहिए ।भूत माचिस माँगता है....

✍️आशा सारस्वत

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