पहली बार जब छोटे बच्चे स्कूल जाते है,रो-रो कर पूरा घर ही सिर पर उठा लेते है।सुबह उठने से लेकर स्कूल जाने तक की प्रक्रिया में वह घर के सदस्यों को परेशान कर देते हैं।
ऐसी ही एक नन्ही गुड़िया थी उसको घर पर सब लोग गुड़िया कह कर बुलाते थे ,घर में वह पहली संतान थी इसलिए वह सब की लाड़ली थी।जब नर्सरी कक्षा में वह पहली बार स्कूल गई तो वह बहुत रोई।
स्कूल का पहला दिन रोते-रोते ही बीता,वह कभी अकेली कहीं भी नहीं गई थी घर में मॉं,दादी मॉं,बुआजी के साथ रहती ।कभी बाहर जाती तो बाबाजी,पिताजी,चाचा जी,मॉं,दादीमाँ कोई भी परिवार के सदस्य के साथ ही जाती थी ।
जब विद्यालय जाना हुआ तो पहले दिन पिताजी के साथ गई उसके बाद प्रतिदिन रिक्शाचालक भैया जी के साथ जाना होता।रिक्शे में और भी बच्चे जाते,रोते हुए ही जाते थे।
पिताजी ने विद्यालय में गुड़िया का नाम प्रियांशी लिखवाया।उसे विद्यालय में कक्षा के सभी बच्चे प्रियांशी कहते तो उसे नहीं समझ आता कि यह उसका नाम है ।
कक्षा अध्यापिका से वह शुरू में बात नहीं करती लेकिन धीरे-धीरे उसे अपनी कक्षा अध्यापिका कुछ अच्छी लगतीं।
एक दिन उसकी कक्षा के सहपाठी ने भोजन अवकाश में खेलने के लिए उसे प्रियांशी कह कर बुलाया तो उसे अच्छा नहीं लगा,वह अपना नाम गुड़िया ही जानती थी।
घर जाकर उसने अपनी मॉं से शिकायत की और विद्यालय की बात बताई।मॉं ने समझाया कि घर पर आपका नाम गुड़िया है हम सब गुड़िया कहते हैं अब से हम सब तुम्हें गुड़िया भी कहेंगे और प्रियांशी भी कहेंगे ।अब तुम स्कूल जाती हो वहॉं अच्छे-अच्छे खेल खेलती हो।अच्छी-अच्छी बातें सीखती हो। वहॉं पर तुम्हारी अध्यापिका और सहपाठी तुम्हें गुड़िया नहीं,प्रियांशी बुलाया करेंगे ।
मॉ ने कहा तुम अपने साथियों से दोस्ती करो और अपनी अध्यापिका से बातें करा करो वह तुम्हें बहुत प्यार करती हैं।
तुम रिक्शा चालक से भैया जी कहकर नमस्ते किया करो।
मॉं की बातें समझ कर वह सो गई ।
जब अगले दिन वह विद्यालय गई तो रिक्शा चालक से भैया जी नमस्ते कहा वह बहुत खुश हुए,रास्ते में गुड़िया का पूरा ध्यान रखते।
विद्यालय जाकर अध्यापिका से दीदी नमस्ते बोला-दीदी ने प्रियांशी को अपनी गोद में बिठा लिया तो प्रियांशी को दीदी में अपनी मॉं का रूप दिखाई दिया वह लिपट गई ।अब प्रियांशी स्कूल जाते समय रोती नहीं,सबसे घुलमिल कर रहती ।
अब वह मध्यावकाश में कक्षा के साथियों के साथ खेलती और दीदी से प्यार से अपनी बातें बताती थी ।प्रतिदिन विद्यालय जाना प्रियांशी को बहुत अच्छा लगता ।
सुबह सवेरे उठ जाती दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर विद्यालय जाने के लिए तैयार हो जाती घर में सबको नमस्ते करती,भैया जी के आने पर ख़ुशी से जाती थी ।सुबह सवेरे दीदी की सिखाई हुई पंक्तियों को बोलती——-
नाक में उँगली,कान में उँगली,मत कर-मत कर-मत कर;
दॉंत में मंजन,बाल में कंघी,नित कर -नित कर-नित कर।
प्रतिदिन नई -नई कविता विद्यालय से सीख कर आती और घर पर आकर उन्हें सबको सुनाती।
अपने विद्यालय में प्रियांशी सब की प्रिय हो गई,दीदी को भी प्रियांशी बहुत अच्छी लगने लगी,वह रोती भी नहीं,ख़ुशी से विद्यालय जाकर अपना कक्षा कार्य पूरा करती और घर आकर गृह कार्य पूरा करके ,विद्यालय में सुनाई गई कहानी-कविता घर के सदस्यों को सुनाती ।सब उसके व्यवहार से ख़ुश थे।😍😍
आशा सारस्वत