सबा - 22 Prabodh Kumar Govil द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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सबा - 22

जब घर का ये बावेला थमा तो एक शाम छत पर बैठे- बैठे चमकी ने बिजली को घेर लिया। उसके पास आ बैठी और लगभग पुचकारते हुए ही उससे बोली - अच्छा, जो हुआ सो हुआ। जाने दे। पर अब बता तो सही कि हुआ क्या था? तू नंदिनी के घर से अचानक गायब कैसे हो गई? वो भी मुझे बिना बताए।
बिजली पल भर को चुप रही। लेकिन उसे खामोश देख कर चमकी ने भी तेवर बदले। सचमुच रोने लगी। सुबकते - सुबकते ही बोली - चल साल भर बड़ी बहन कोई इतनी बड़ी नहीं होती कि उससे पूछ कर कोई काम किया जाए। लेकिन तू मुझे बता तो सकती थी कि तू कहीं जा रही है, मैं तेरा इंतज़ार न करूं! तुझे पता है कि मेरा क्या हाल हुआ? एक तो बदहवास होकर अकेली ही यहां- वहां तुझे ढूंढती फिरी कि बेचारी नंदिनी के घर वाले इसे कोई अपशगुन समझ कर परेशान न हों। फिर पुलिस थाने का चक्कर भी ज़रूरी हो गया। रिपोर्ट न करती तो तू खुद ही सोच, यदि कुछ ऐसा वैसा घट जाता तो हम पुलिस की मदद लेने के काबिल भी नहीं रहते। और सबसे बड़ी बात तो यह कि घर आकर अम्मा को संभालना। बापू का सामना करना! कह कर चमकी फ़िर से ज़ोर - ज़ोर से हिचकियों से रोने लगी। अब बिजली बिल्कुल पसीज गई, उसने चमकी को अपने से चिपटा लिया और उसका सिर प्यार से सहलाने लगी।
बिजली को लगा कि वो हमेशा चमकी को फांदेबाज़ कहती रहती है पर फांदेबाज़ तो वो खुद निकली। उसकी आंखों में से भी बूंदें टपकने लगीं।
दोनों एक दूसरी से चिपकी लगभग दो घंटे तक ऐसे ही बैठी रहीं। बिजली ने एक लफ्ज़ भी न छिपाया। उसने राजा से पहली बार मिलने से लेकर अब तक की पूरी रामकहानी उसे सुना डाली।
चमकी ने हैरानी से उसकी ओर देखा कि ये छुटकी अकेली इतनी कश्मकश झेल गई और इसने किसी को कुछ बताया तक नहीं।
लड़कियां शायद जवान होते ही इसी तरह दिमाग़ से अकेली हो जाती हैं कि उन्हें अब आगे न जाने कैसी दुनिया मिले। घरवालों के छिपे इशारे भी उन्हें मिलने लग जाते हैं कि अतिथि तुम कब जाओगे?
चमकी ने बिजली को समझाते हुए कहा कि वो अब राजा को भूल जाए और उसके चक्कर में न पड़े। बल्कि अब तो दोनों बहनों को अपनी सहेली नंदिनी की भी चिंता होने लगी कि न जाने उस बेचारी के भाग्य में क्या बदा है।
वो सलाह करने लगीं कि उन्हें क्या करना चाहिए। क्या नंदिनी के घर वालों को ये सारी बात जाकर बता देना उचित होगा या फिर सारे मामले से दूर रहना ही ठीक रहेगा? बात अधूरी रह गई क्योंकि अम्मा ने रोटी खाने के लिए नीचे आवाज़ दे ली।
बिजली ने मन ही मन तय किया कि वो कल जाकर मैडम को भी सारी बात बता देगी और फ़िर उनसे ही सलाह लेगी कि उसे क्या करना चाहिए। यद्यपि उसे यह भी अंदेशा था कि मैडम उससे गुस्सा ज़रूर होंगी क्योंकि उसने बिना कहे सुने इस तरह छुट्टी कर डाली थी। बेचारी दो- तीन दिन उसका इंतज़ार करती ही रह गई होंगी।
थोड़ी ही देर में बिजली अपने उसी दुनियादार रवैय्ये पर लौट आई, उसने सोचा कि अगर वो बीमार पड़ जाती तब भी तो छुट्टी करती ही। कौन सी आफ़त आ गई जो वो दो - चार दिन काम पर नहीं गई।
धीरे- धीरे अब बिजली का मन स्थिर होने लगा। कभी कभी वो नींद में ज़रूर कांप कर उठ जाती थी और फिर देर तक जग कर सोचने लगती थी कि ये उसने क्या कर डाला। कैसे एक अजनबी परिवार में अकेली जाकर एक रात काट आई। वो तो मां - बहनों का भरा पूरा घर था, बिजली गई और लौट भी आई। खुदा न करे कोई गलत लोगों का गांव - ठांव होता तो नसीब ही फूट जाते।
फिर बिजली देर तक जागती।
उधर कभी- कभी उसे राजा भी याद आता था। वो बेचारा किस गफलत में फंस गया। उसका दिल करता कि ऐसे में राजा को भी अकेला न छोड़े।
पर पहले ये गोरख धंधा समझ में तो आए कि ये सारा चक्कर था क्या? एक से प्रेम, दूसरी से सगाई... और फ़िर भी निर्दोष होने के लिए अपनी मां की ताबड़तोड़ कसमें!!!