सबा - 23 Prabodh Kumar Govil द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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सबा - 23

देर तक तालियां बजती रहीं। पूरा हॉल मानो श्रोताओं के हर्षोल्लास से गूंज उठा।
एक अतिथि तो यहां तक कहते सुने गए कि आजकल के कार्यक्रम होते ही इतने नीरस और उबाऊ हैं कि श्रोताओं का तालियां बजाने का दिल ही नहीं करता। एक- आध ताली बजती भी है तो वो इस खुशी में बजती है कि चलो, बैठे तो सही।
शायद यही कारण है कि कार्यक्रमों के संचालकों का तकिया कलाम ही ऐसा बन जाता है - "एक बार ज़ोर से करतल ध्वनि करके उत्साह वर्धन कीजिए"... वो इतनी बार ऐसा कहते हैं कि श्रोताओं को खीज होने लग जाती है। अरे भैया, जो चीज़ दर्शकों या सुनने वालों को पसंद आएगी उस पर वो अपने आप तालियां बजाएंगे ही। और यही तो पैमाना है कि किसे आपका काम दिलचस्प लग रहा है किसे नहीं। जबरदस्ती सबसे हथेलियां पिटवा लोगे तो पता कैसे चलेगा कि क्या अच्छा लगा और क्या बोर!
उनकी बात पर चारों तरफ से हंसने की आवाज़ ज़रूर आई लेकिन तभी मंच से घोषणा हुई कि मैडम के इतने असरदार संबोधन के बाद यदि कोई उनसे कुछ पूछना चाहे तो वह सवाल कर सकता है। भाषण था ही इतना प्रभावी कि एक के बाद एक हाथ उठने लगे।
एक बुजुर्ग महाशय ने माइक हाथ में लेकर सवाल किया - मैडम, ज़्यादा जनसंख्या होने के फ़ायदे भी तो हैं! कहा जाता है कि दुनिया में जो भी आता है वो खाने के लिए एक पेट ही लेकर नहीं आता बल्कि काम करने के लिए दो हाथ भी लाता है।
मैडम कुछ मुस्कुराईं और फ़िर माइक पर आकर बोलीं - पेट तो दुनिया में आने के दिन से ही खाना मांगता है पर हाथ बीस साल बाद कमाने लायक होते हैं। इन बीस सालों की भूख का हिसाब कौन देगा?
मैडम के इस सटीक उत्तर से सन्नाटा सा छा गया और प्रश्नकर्ता निरुत्तर होकर बैठ गया।
तभी एक लड़के ने पूछा - जब किसी समाज में पुरुष और स्त्रियों की संख्या बिल्कुल बराबर होती है तो क्या उसी समाज को संतुलित समाज कहा जा सकता है?
- बिल्कुल नहीं। मैडम के इस उत्तर से सभी हतप्रभ रह गए। वे बोलीं - स्त्री और पुरुष की शारीरिक संरचना और प्रणालियां बिल्कुल बराबर नहीं होती। वास्तव में पृथ्वी पर जीवन को चलाने के लिए पुरुष और स्त्री को साथ में आना होता है। उन दोनों के साथ रहने के लिए कुछ समायोजन करने पड़ते हैं। जैसे स्त्री को विवाह करने की अनुमति पुरुष से कुछ जल्दी मिल जाती है। क्योंकि वह किसी लड़के के वीर्यवान होने की उम्र से कम उम्र में ही रजस्वला हो जाती है।
फिर स्त्री पुरुष के सह जीवन में पुरुष "डोनर" की भूमिका में है जिसके कुछ अपने असर हैं। जबकि स्त्री रिसीवर है। यहां उसके कुछ प्रिविलेजेज़ हैं।
वार्तालाप चल ही रहा था कि कुछ लोगों ने उठ कर जाना शुरू कर दिया।
आयोजकों ने देखा कि शायद विषय कुछ नीरस हो चला है जिसके चलते महिलाएं और विशेष रूप से बच्चे कार्यक्रम में दिलचस्पी खोते जा रहे हैं। इसे कुछ विराम देकर प्रासंगिक और रोचक बनाने की कोशिशें शुरू हो गईं। तत्काल एक युवक हाथ में गिटार लेकर मंच पर आया और समा बदल गया।
उस दिन मैडम को घर लौटने में काफ़ी देर हुई।
बिजली दो बार आकर वापस लौट गई थी। बिजली के पास साइकिल थी जिसके कारण उसे दो चक्कर लगाना ज़्यादा अखरा तो नहीं, पर अब बिजली ने बंद दरवाज़े के बाहर कुछ देर बैठ कर मैडम का इंतज़ार करना ही मुनासिब समझा। वह आज उनसे मिल कर ही जाना चाहती थी। उसके दिल पर भी कोई अपराध बोध सा था जिसे वह आज मिटा देना चाहती थी। उसकी अनुपस्थिति से मैडम न जाने क्या सोच रही हों। कहीं कोई दूसरी काम वाली न रख छोड़ी हो। उन जैसी व्यस्त और कामकाजी महिला के लिए नई सर्वेंट ढूंढना कोई मुश्किल काम थोड़े ही था।
जैसे - जैसे मैडम को आने में देर होती जाती थी वैसे वैसे ही बिजली का ठहर कर इंतज़ार करने का निश्चय और भी दृढ़ होता जाता था।
सीढ़ियों पर अकेली बैठी बिजली को एक बार तब ज़रूर भय लगा जब मैडम के फ्लैट के ऊपर रहने वाले सज्जन का बेटा एक बड़े से काले लेब्राडोर को ज़ंजीर से थामे हुए बिल्कुल क़रीब से गुज़रा।