सबा - 7 Prabodh Kumar Govil द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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सबा - 7

बिजली चलती- चलती रुक गई। उसने आंखें तरेर कर राजा की ओर देखा और बोली - फिर तूने क्या कहा?
- मैं क्या कहता, मैं तो चुपचाप बैठा रहा। राजा मासूमियत से बोला।
बिजली बिफर पड़ी और लगभग चीख कर बोली - चुपचाप क्यों बैठा रहा? उस हरामखोर का मुंह नौंच लेता। उसकी हिम्मत कैसे हुई ऐसी बात कहने की? और तू... तू भी तो कम नहीं, उसने कहा और तूने सुन लिया। जवाब नहीं दे सकता था तू उसे?
- क्या जवाब देता? राजा बुदबुदाया।
- अच्छा?? अब ये भी मैं ही बताऊं कि क्या जवाब देता तू उसे? तेरे कलेजा नहीं है? ऐसी बात सुन कर तेरे दिल में कुछ- कुछ नहीं हुआ?? कह नहीं सकता था उससे कि क्यों नहीं मिलूं बिजली से? बिजली मेरी जान है... बिजली के बिना मैं एक पल भी नहीं रह सकता। बिजली मेरी ज़िंदगी है... वो मेरी जोरू बनेगी एक दिन!... उसने कहा, बिजली से मत मिला कर, और तू चुपचाप सुन कर चला आया कायर की तरह। बोलती- बोलती बिजली इतनी उत्तेजित हो गई कि उसकी आंखों से पानी आने लगा। वह देखते - देखते ही ज़ोर- ज़ोर से रोने लगी।
राजा घबरा गया। वह डर कर इधर- उधर देखने लगा। रास्ता चलते लोग भी उसे घूरने लगे।
- बाप रे! मैंने गलती की जो तुझे बताया। राजा अचकचा कर बोला।
- ... गलती नहीं की राजा, अच्छा किया जो तूने मुझे बताया, कम से कम मेरी आंख तो खुल गई। मुझे पता तो चल गया कि तेरी- मेरी यारी बस ऐसी ही मिट्टी की लकीर जैसी है, किसी दिन कोई कुछ भी कहेगा और तू मुझे छोड़ कर चल देगा! यही है तेरी दीवानगी? तू भी बस खेल करने ही निकला है मेरे मन से। बिजली अब सिसकने लगी थी।
राजा ने उसके सीने के इर्द- गिर्द हाथ लपेट कर अपनी अंगुलियां उसकी छाती में गढ़ा दीं और बोला - पागल मत बन। उसके कहने से क्या होता है, मैंने छोड़ थोड़े ही दिया तुझे? अगर मेरे दिल में चोर होता तो मैं तुझे ऐसी बात बताता ही क्यों?
बिजली ने सिर उठा कर उसकी ओर गहरी नज़र से देखा। बिजली की आंखों में आंसू अब भी झिलमिला रहे थे। राजा ने दूसरे हाथ से उसकी आंखें पौंछी और चलते- चलते ही सिर झुका कर ज़ोर से उसका गाल चूम लिया।
लेकिन ऐसा करते ही राजा तुरंत झेंप गया क्योंकि उनके बिल्कुल नज़दीक से गुजरते हुए दो लड़के उसे ऐसा करते देख हंसने लगे थे।
लड़कों का इस तरह हंसना बिजली को ज़रा भी अच्छा नहीं लगा। वह जैसे उन्हें चिढ़ाने के लिए ही अपना गाल ज़ोर- ज़ोर से मसलने लगी।
लड़के सिर झुका कर आगे बढ़ गए पर जाते- जाते भी उनमें से एक के बुदबुदाने का मंद स्वर बिजली और राजा को सुनाई दे ही गया। लड़का कह रहा था - ले राजा, फिर तैयार है मैदान!
अब राजा और बिजली दोनों ही एकसाथ चौंके कि इन लड़कों को राजा का नाम कैसे मालूम पड़ा। ये सोच कर बिजली के कान खड़े हो गए कि कहीं ये लड़के राजा के पहचान वाले तो नहीं? लेकिन राजा को ख़ुद अचरज में पड़ा देख कर उसे यकीन हो गया कि इन शोहदों ने वैसे ही फिकरा कसा है।
बिजली मन ही मन हंसी और राजा से बोली - जवानी में जिस लड़के को लड़की मिल जाए उसे सब राजा ही समझते हैं।
अब राजा हंसा और शरारत से बोला - अभी मिली कहां?
बिजली ने अब शरारती गुस्से से राजा की पीठ पर एक धौल मारा और मुस्कराने लगी।
उसका मूड ठीक हो जाने से राजा को राहत मिली।