राजा बार- बार ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खड़ा होता और फ़िर ध्यान से अपनी शक्ल देख कर थोड़ी देर तक घूरता रहता। फिर ऊपर से लेकर नीचे तक ख़ुद अपना मुआयना करता हुआ खुद ही झेंपता हुआ शीशे के सामने से हट जाता था।
एक तरह से उसका कायापलट ही हो गया था। बोलना उसे कहीं कुछ नहीं था। वैसे भी उसे हिंदी के अलावा कोई और भाषा न बोलनी आती थी न समझ में आती थी।
कल रात को फ्लाइट से टकलू के साथ यहां पहुंचने के बाद से अब वह थोड़ी देर के लिए कमरे में अकेला हुआ था क्योंकि अब वो छह फीट का लंबा तगड़ा आदमी किसी काम से बाहर गया हुआ था।
वैसे भी यहां उसे न कहीं किसी से कुछ पूछना था, न कुछ सोचना था। उसे ऐसे ही निर्देश थे कि उसे टकलू के साथ रहना है और बिना किसी विरोध या आनाकानी के जो भी कहा जाए वो करना है। टकलू का नाम उसे बताया ज़रूर गया था लेकिन वो नाम न उससे उच्चारा गया और न ही उसे याद रहा। इसलिए अपनी सुविधा से वह उसे टकलू कह रहा था।
राजा अब अपनी तमाम आर्थिक परेशानियों से कोसों दूर था। उसके सारे कष्ट हर लिए गए थे। अब तो बस उसे अपने मन के क्लेश संभालने थे और मानस में जमा हो गई धूल को साफ़ करना था, जब भी और जैसे भी मौक़ा मिले। उसे खुद नहीं पता था कि वो समय- समय पर उच्चारे गए अपने शब्दों की लाज कैसे रखेगा। कैसे अपने ज़मीर को साधेगा।
फिलहाल तो उसे अपने तन का जौहर दिखाना था।
ये उसके जैसे साधारण लड़के की पहली और अप्रत्याशित विदेश यात्रा थी। एक मामूली घर के साधारण लड़के को ऐसा मौक़ा मिलना शायद किस्मत का ही खेल था।
टकलू उसे दोपहर तक आने के लिए कह गया था। उसे ये भी कहा गया था कि वो खाना अपने कमरे में मंगवा कर ही खा ले। टकलू का इंतज़ार न करे।
ये आसान था। होटल के मेनू कार्ड में व्यंजनों के नाम के साथ- साथ उनके चित्र भी बने हुए थे। उसे ऑर्डर लेने आए व्यक्ति को सिर्फ़ अपनी पसंद की डिश की फोटो पर अंगुली रख कर बता भर देना था, और आया हुआ खाना जैसा भी हो, खा लेना था।
अजीब रिवाज़ है, हम अपनी उलझनों में केवल इसलिए उलझते हैं कि कोई क्या कहेगा, क्या सोचेगा? कहीं हमारी जग हंसाई न हो। कहीं हमारा मज़ाक न उड़े। कहीं हम किसी नियम कायदे के अनजाने ही टूट जाने के अपराधी न सिद्ध हो जाएं। यदि हम अकेले हों तो हम दुनिया की हर रस्म से निपट लें। उलट - पलट कर हर बात को समझ लें।
राजा को तो सुबह सुबह लघुशंका के लिए वाशरूम में जाने में भी परेशानी आई थी। इन आठ - दस शीशियों में से साबुन किस में है? पानी कैसे खुलेगा? बदबू हटाने के लिए क्या करना है? इस तौलिए से पैर पौंछ सकते हैं या नहीं। ढेरों सवाल थे।
वो तो भला हो मोबाइल फ़ोन का कि राजा की तमाम मुश्किलें आसान हो गईं।
हुआ यूं कि टकलू भीतर था और बाहर बिस्तर पर रखा हुआ उसका मोबाइल बज उठा। राजा इस असमंजस में था कि क्या करे? क्या फ़ोन को बंद करे या फिर उठा कर बात करे और कह दे कि अभी साहब व्यस्त हैं बाद में फ़ोन करना, या फिर आवाज़ लगा कर टकलू से ही पूछ ले कि क्या करना है!
ये सारी उलझन तब अपने आप सुलझ गई जब भीतर से चिल्ला कर टकलू ही बोल पड़ा कि हे राज, फ़ोन मुझे पकड़ा दे।
राजा जो कभी अपना राजेश होना भी बिसरा चुका था इस राज नाम के आह्वान का अभ्यस्त हो चुका था। उसने झट फोन उठाया और वाशरूम के दरवाज़े तक आया। दरवाज़ा खुला ही हुआ था ज़रा सा ठेलते ही खुल गया।
टकलू ने हाथ ज़रा आगे बढ़ा कर फ़ोन पकड़ लिया और राजा के लिए भी कई राज खुल गए।