दानी की कहानी - 42 Pranava Bharti द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दानी की कहानी - 42

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दानी इतने सुन्दर तरीके से किसी भी बात को समझाती हैं कि सब बच्चे मज़े से कहानी सुनते हैं और कुछ न कुछ नया सीखने, जानने की कोशिश करते हैं।

एक दिन बच्चों में होड़ लगी थी, एक अपनी डींग हाँक रहा था तो दूसरा अपनी।

"यहाँ आकर बैठो, तुम्हें एक कहानी सुनाती हूँ।" दानी ने अपनी किताब बंद करते हुए बच्चों को बुलाया।

"चलो, कहानी सुनाती हूँ जो अभी कुछ दिन पहले पढ़ी है।"

बच्चे दानी के पास आकर बैठ गए। क्षण भर में उनकी बहस ख़त्म हो गई और वे दानी की ओर उत्सुकता से देखते हुए बैठ गए। दानी ने कहानी सुनानी शुरू की----

एक गांव में एक किसान रहता था। वह रोज सुबह झरनों से साफ पानी लाने के लिए दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वह डंडे में बांधकर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था। उनमें से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एकदम सही था । इस तरह रोज घर पहुंचते-पहुंचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था।

सही घड़े को इस बात का घमंड  था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचाता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पहुंचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार जाती है।

फूटा घड़ा ये सब सोचकर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया। उसने किसान से कहा, "मैं खुद पर शर्मिंदा हूं और आपसे माफी मांगना चाहता हूँ ।"

किसान ने पूछा, "क्यों? तुम किस बात से शर्मिंदा हो?"

फूटा घड़ा बोला, "शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुंचाना चाहिए था, बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ । मेरे अंदर ये बहुत बड़ी कमी है और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है।"

किसान को घड़े की बात सुनकर थोड़ा दुख हुआ और वह बोला," कोई बात नहीं, मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो"घड़े ने वैसा ही किया। वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया।

ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुंचते-पहुंचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था।' वह मायूस  होकर किसान से माफी मांगने लगा।

किसान बोला," शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे। सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अंदर की कमी को जानता था, और मैंने उसका फ़ायदा उठाया। मैंने तुम्हारी तरफ वाले रास्ते पर रंग-बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे।"

तुम रोज थोड़ा-थोड़ा कर उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत  बना दिया। आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान  को अर्पित कर पाता हूँ और अपने घर  को सुन्दर बना पाता हूँ । तुम्हीं सोचो, 'यदि तुम जैसे हो, वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता?

हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी है, पर यही कमियाँ हमें अनोखा बनाती हैं। यानी आप जैसे हैं वैसे ही रहिए। उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वैसा ही स्वीकारना चाहिए जैसा वह है। उसकी अच्छाई पर ध्यान देना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तब फूटा घड़ा भी अच्छे घड़े से कीमती हो जाएगा ll

"समझे बच्चों, इसका मतलब क्या हुआ?"

सुधीर तुरंत बोल उठा,

"जी दानी, कोई भी कम नहीं है, हम सबमें कोई न कोई अच्छाई है। हम सबको अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए, अभिमान नहीं।"

"हूँ, सही सुधीर बेटा - - -" दानी ने उसकी समझ की प्रशंसा की तो प्रवीर ने भी अपने बुद्धिमान होने का प्रमाण दे ही दिया।

" यह भी तो दानी, हमें अपने लक्ष्य को धैर्य से पाना सीखना चाहिए ।"

" बिलकुल सही बेटा, अब हमेशा इन बातों का विशेष ध्यान रखना। "

उन्होंने बच्चों को प्यार से अपने गले लगा लिया।

 

डॉ. प्रणव भारती