प्रार्थना (दानी की कहानी )
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दानी की एक पक्की दोस्त हुआ करती थी चुन्नी ,जो आज भी अमेरिका के ओहायो से उनसे अक्सर बात करती रहती हैं |
उस दिन फ़ोन पर दोनों ठहाके लगाकर हँस रही थीं | अब बच्चों से कुछ छिप जाए ,ये संभव है क्या ?
"ज़रूर दानी की उन्हीं बचपन की दोस्त का फ़ोन है ---"
"हमें भी बताइये न दानी ,क्यों हँस रही थीं?"
दानी ने जो कहानी सुनाई वो यह थी |
उन दिनों हम दोनों सहेलियाँ शायद पाँच/छह साल की रही होंगी | एक दिन शाम को हम दोनों चुन्नी के आँगन में खेल रहे थे |
अचानक एक बड़ा सा कॉक्रोच दिखाई दिया ,हम दोनों चिल्लाने लगे | हमें ,ख़ासकर मुझे कॉक्रोच से बहुत डर लगता था | डर क्या चितली सी चढ़ती |
हम दोनों उसे पैर से इधर से उधर भगाने की कोशिश करने लगे|
पता नहीं कैसे हम दोनों के उसे इधर-उधर भगाने की कोशिश में कॉक्रोच अधमरा सा हो गया |
हम सहमते हुए उसके पास गए देखा,उसके तो प्राण-पखेरू ही उड़ गए थे |
हमारी कुछ समझ में नहीं आया ,मैं तो रोने ही लगी |
"रो क्यों रही है ? चुप हो जा ---" चुन्नी ने गुस्से से कहा |
वो बहुत बहादुर ,पक्की जाटनी !
"ये मर गया न ---? अब --?" मेरे आँसू तो रुक ही नहीं रहे थे |
"चल ,जीजी के पास चलते हैं --" उसने मेरा हाथ पकड़ा और जीजी के कमरे की तरफ़ चली |
वह अपनी मम्मी को जीजी कहती थी,उसके मां वहाँ रहतर थे ,उन्हीं की देखादेखी उनके सभी मम्मी को जीजी कहने लगे थे |
मुझे रोते देखकर जीजी भी गुस्सा हुईं ;
"फिर से लड़ी-मरी होंगी दोनों ---" हम दोनों की तो रोज़ ही लड़ाई होती थी ,हम लड़ते तो न्यायाधीश उन्हें बनना पड़ता |
"नहीं लड़े ,जीजी ?" चुन्नी ने उन्हें पूरी कहानी सुनाई |
"अब क्या करोगी ,तू पहले रोना बंद कर ---" जीजी ने मुझे तगड़ी डाँट पिलाई|
"जीजी ,कुछ तो करना पड़ेगा न ?"मेरी सुबकियाँ बंद नहीं हो रही थीं ,चुन्नी भी मुझे देखकर ढीली पड़ गई |
'आपको नहीं लगता ,हमें उसका कुछ तो करना चाहिए --"
"चलो ---" वो हमारे साथ आईं ,देखा बेचारे कॉक्रोच को फिर अंदर चली गईं |
जब बाहर आईं ,उनके हाथ में एक छोटा सा सफ़ेद कपड़ा था |
"लो ,डालो ,इसके ऊपर और ले आओ उठाकर बाहर ,बगीचे की मिट्टी में गाड देंगे --"
मैं तो उसे छू भी नहीं सकती थी ,चुन्नी थी शेरनी |
उसने बड़े आराम से झाड़ू की एक सींक लेकर कॉक्रोच को किसी तरह कपड़े तक पहुँचाया जो मैंने ज़मीन पर बिछा दिया था |
हम सब बाहर क्यारी के पास आए |
चुन्नी ने तो उसे लपेटने का काम कर लिया था अब गड्ढा खोदने की बारी मेरी थी | वैसे ज़मीन पर कपड़ा बिछाने का काम मैं कर चुकी थी |
अगर ना-नुकर करती तो वह मेरे ऊपर उस कॉक्रोच को फेंक ज़रूर देती |
मैंने चुपचाप किचन से एक चाकू लाकर क्यारी के पास एक छोटा गड्ढा खोदा | उसमें कॉक्रोच महाराज को लिटाया गया ,फिर हम दोनों ने उसे मिट्टी से ढका |
जीजी बड़े आराम से मुस्कुराते हुए सब देखती रहीं |
जब हम उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे थे ,जीजी भी हम दोनों के साथ हाथ जोड़कर खड़ी थीं |
हम दोनों ही अपराध -बोध से घिरे हुए थे | हमने प्रार्थना की ;
भगवान ! इसकी आत्मा को शांति देना ,हमें माफ़ कर देना |
जीजी का स्वर भी हमारे स्वर में मिल रहा था |
ॐ शांति ,शांति ,शांति ॐ
डॉ. प्रणव भारती