मीठी सुपारी
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दानी अक्सर अपनी तीसरी पीढ़ी के बच्चों को अपने ज़माने की कहानियाँ सुनाती हैं | बच्चों को भी बड़ा मज़ा आता है क्योंकि उनके लिए आज का माहौल ही सब कुछ है | वो कहाँ जानते हैं दानी के ज़माने में क्या होता रहा है ?
नहीं जी ,ये दानी नाम नहीं है ,यह तो जबसे वे दादी-नानी बनी हैं बच्चों ने उनका नाम दानी रख लिया है --यानि दादी और नानी ,दोनों को यदि शॉर्ट में कहें तो दानी !
यह बड़ी मज़ेदार बात है ,जब गर्मी की छुट्टियों में उनके नाती-पोते उनके पास रहने आते तब बच्चों को बड़ी दिक्क्त होती --
"अरे ! मेरी दादी ने कहा है कि आज बच्चे ऊपर वाली छत पर पानी डालने जाएंगे |"
"तो तुम्हारी दादी ने कहा न ,तुम जाओ ---"
"तुम्हारी नानी ने भी तो कहा ---- "इसी बात पर झड़प शुरु !
नानी का कहना होता था कि सब बच्चे मिलकर ऊपर छत पर पानी डालकर आएँ जिससे रात को छत ठंडी हो जाए और वे दानी से कोई मज़ेदार कहानी सुनें |
खूब चकर चकर होती इसलिए एक दिन चारों बच्चों ने मिलकर डिसाइड किया कि यह झगड़ा ही खत्म हो अगर उन्हें 'दानी' कहकर बुलाया जाए | इस तरह उनका नाम 'दानी' पड़ गया और अब जो भी काम करने के लिए कहा जाता वो दानी कहतीं ,जिसका अर्थ था कि सारे बच्चे मिलकर कोई काम करें |
आज दानी अपने बचपन की एक मज़ेदार कहानी सुनाने वाली थीं सो सारे बच्चे भाग-भागकर छत पर पानी डालने में व्यस्त हो गए थे |रात को जल्दी ही सारे बच्चों ने चारपाइयों पर बिस्तर लगा दिए |वो सब रात में उधम करते हुए काफ़ीदेर में सोते थे जबकि दानी थोड़ी देर बच्चों के साथ समय बिताकर अपने कमरे में चली जाती थीं |
"आज कौनसी कहानी सुनाएंगी दानी ?" दानी के ऊपर आने पर बच्चों ने पूछा |
दानी कहानी सुनाती हुई जैसे अपने बालपन में खो जाती थीं |
"मालूम है ,अपने बचपन में तुम्हारी दानी ने एक चवन्नी चोरी की थी ?" दानी ने सुनाते हुए जैसे सरग़ोशी सी की |
"हो --आपने चोरी कि और हमें सिखाते हैं ,चोरी करना गंदी बात है --"?
"मैंने यह तो नहीं कहा कि मैंने अच्छी बात की ,लेकिन अब की तो स्वीकार तो करना अच्छी बात है न ?"
"हाँ ,वो तो है ---तुम चुप रहो--" दूसरेबच्चे ने उस बच्चे से कहा जो बीच में टपक पड़ा था |
"आगे बताइए न दानी ---"
"बात तब की है जब मैं मॉन्टेसरी स्कूल में पढ़ रही थी --"
"आपजे ज़माने में -----"
"चुप नहीं रह सकती क्या ---?" सबसे बड़ी बच्ची ने डाँट लगाई |
"तो क्या हुआ दानी ?"
"उन दिनों एक मीठी सुपारी बाज़ार में मिलती थीं ,लाल रंग की मीठी सुपारी --जो खाने में बड़ी मज़ेदार होती थी --"
"वो तो आज भी मिलती है ,आज भी आहा---कितनी टेस्टी होती है --हम जब बाहर रेस्टॉरेंट में खाने जाते हैं ,मैं तो वही सबसे ज़्यादा खाती हूँ | पेपर नैपकिन में अपनी मुट्ठी में भर लेती हूँ --"
"तो ये भी तो चोरी हुई --"कहाँ चुप रहा जाता भला !
"अरे ! अब तुम आपस में लड़ोगे तो मैं नहीं सुनाऊँगी --" दानी ने बनावटी गुस्से से कहा |
"तुम चुप नहीं बैठ सकते ? सुनाइए न दानी ---प्लीज़ "सबसे बड़े वाले को डाँटने का अधिकार स्वत: ही मिल जाता है |
सबसे छोटी गुड़िया ,आफ़त की पुड़िया दानी की गोदी में मचल रही थी ,जबकि पाँच साल से ऊपर की हो चुकी थी |
"आजकल तो बच्चों बहुत तरह की सुपारियाँ और भी न जाने क्या-क्या मिलता है मुखवास के नाम पर लेकिन हमारे ज़माने में तो दो-चार चीज़ें ही मिलती थीं "
"क्या--क्या --दानी --?"
"एक तो होती थी सौंफ़ वाली रंग-बिरंगी छोटी-छोटी गोलियाँ जो तुम लोग आज भी खाते हो और तुम्हें कहा जाता है कि सफ़ेद खाया करो अगर खानी भी हों तो --"
"क्यों ? रंग-बिरंगी क्यों नहीं ?"
"अरे ! तुझे पता नहीं उसमें गंदा रंग मिला होता है ,नुक़सान देती है न ! कितनी बार तो दादी ने बताया है ?" बड़ा अपना बड़प्पन न दिखाए तो कैसे चले भला ?
"दानी वाली कहानी तो फिर बीच में रह गई ---"
"अच्छा --अब चुप रहना ,सुनाती हूँ ---तो --"
"दानी ! बुढ़िया के बाल भी तो मिलते थे ---" फिर से एक बोल उठा |
"हाँ बाबा ---अब बोलो ,आगे सुनाऊँ या नहीं ?"
"सुनाइए न ---ये तो यूँ ही टपर टपर टपकते रहेंगे ----" बड़े ने फिर से बड़प्पन झाड़ा |
"अब फ़ाइनल,अब बीच में कोई नहीं बोलेगा --" दानी ने फिर से अपनी बात शुरू की |
"गॉड प्रॉमिज दानी ----" सब बच्चों की ऊँगलियाँ अपनी गर्दन की नीचे वाली त्वचा पर पहुँच गईं थीं |
"ठीक है ---आगे सुनो --तो एक बार हम किसीके घर गए थे वहाँ हम बच्चों को सुपारी दी गईं थीं ,हमें वो बहुत अच्छी लगी | घर आकर हम सब भाई-बहनों ने पापा से कहा कि हमें वही सुपारी लेकर दें | पापा ने ला तो दीं लेकिन यह भी बताया कि ऎसी चीज़ें ज़्यादा खाने से गले और पेट खराब हो जाते हैं | मैं और मेरी एक बहुत पक्की सहेली थी ---"
"चुन्नी दानी ----" बोले बिना कहानी पूरी सुन ली जाए तो उन्हें बच्चा नहीं कहा जाता |
"हाँ --वही ,तो हमें तो इतनी पसंद आईं वो सुपारी कि फिर से खाने का मन हो गया | अगर हम सुपारी के लिए पैसे माँगते तो हमें मिलने वाले नहीं थे सो एक दिन हमने चोरी कर ली | हमारे यहाँ एक औरत काम करती थी ---"
"गंगादेई -----"
"हाँ ,उसे मम्मी ने किसी चीज़ के लिए एक रुपया दिया था | जिसमें से उसने चार आने खर्च कर दिए थे और तीन चार आने कॉर्निश के कपड़े के नीचे रख दिए थे | तुम्हें बताया था न मैंने उस समय चार चवन्नियों का एक रुपया मिलता था --"
"हूँ -----"इस बार छोटी सी आवाज़ निकली ,बच्चे कहानी में डूबने लगे थे |
"तो--एक रूपये में से एक चवन्नी गंगादेई ने खर्च कर ली ,उसमें से तीन चवन्नियाँ बचीं --| हम दोनों सहेलियों ने कॉर्निश पर से एक चवन्नी चुपके से उठा ली और शाम को जब डाँस-स्कूल गए तब रास्ते में से सुपारी खरीदीं ---पता है इतनी सारी सुपारी मिली थीं कि हम उन्हें एक साथ तो खा नहीं सकते थे | हमें घर पर लाकर छिपाना पड़ा था --"
"चवन्नी हमारे कॉयन-कलेक्शन में है न ,वही न दानी --?"
"हाँ,वही ---शाम को जब गंगादेई ने मम्मी को हिसाब बताया तब उसमें एक चवन्नी काम थी | बेचारी गंगादेई ने सारा उलट -पलटकर लिया पर होती तब न मिलती ---"
"मैंने तो बीबी यहीं रखी थी ---"बेचारी गंगादेई ने रोते हुए कहा |
मैं और मेरी सहेली सब देख तो रहे ही थे | हमारे घर से बिलकुल सटा हुआ उसका घर था और हम कब बंदर की तरह इधर से उधर कूद जाते किसीको पता ही नहीं चलता तय | जब आवाज़ लगती तब फिर बंदरों की तरह फुदककर पहुँच जाते ---"
"फिर गंगादेई को डाँट पड़ी आपकी मम्मी से ---?"
"नहीं ,जब हमने उसे रोते हुए देखा तो हमें बहुत ख़राब लगा,सोच ही रहे थे कि बता दें इतनी देर में मम्मी ने मुझसे पूछ ही तो लिया--" ;
"बेटा ! तुमने तो नहीं ली है चवन्नी --?" कहाँ तो हम बताने जा रहे थे लेकिन मम्मी के पूछते ही घबरा गए --
"नहीं --मम्मी --आपको तो पता है मैं चोरी नहीं करती ---" मेरा चेहरा मेरी चुगली खा रहा था| "
"पर मैंने कब कहा तुमने चोरी की है ---फिर भी अगर तुमने ली हो तो बता दो --कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा --"
"बस ---मैं तो रो पड़ी --खूब ज़ोर से |"
"बताओ ---ली थी न ?" मम्मी ने बड़े प्यार से पूछा |
" ली थी मम्मी ---पर चोरी नहीं की --मैं बताने ही वाली थी आपको ---"
"कोई बात नहीं ,अब बताओ ,क्यों ली तुमने चुपचाप ,गलत बात है न ?"
"क्या किया ? चवन्नी कम नहीं होती ,बताओ क्या किया तुमने उसका ?" मम्मी बहुत प्यार से पूछ रही थीं |
"सच सच बताओगी तो एक चवन्नी और मिलेगी पर ,पहले बताओ क्या किया ?"
"अब तो साहस भी आ गया और दूसरी चवन्नी का लालच भी सो आँसू पोछते हुए सच-सच बता दिया कि मीठी सुपारी लाए थे मैं और चुन्नी --"
"चवन्नी की मीठी सुपारी ---"? मम्मी की आँखें फट गईं जैसे
"कितनी सारी आई होगी ,सारी खा गईं दोनों मिलकर ? उस दिन पापा ने बताया था न इससे बीमार भी पड़ सकते हैं --"इस बार मम्मी की आवाज़ कुछ सख्त थी |
"नहीं मम्मी ,सारी नहीं खाई ,थोड़ी सी ही खाई ही बस ----"मैंने सहमते हुए कहा|
"बाक़ी बची हुई कहाँ है ---?"मम्मी ने पूछा |
"मैंने छिपाकर रखी हुई सुपारी लेकर उन्हें दे दी "
"बेटा ! अब कभी ऐसा मत करना ,तुम्हें किसी चीज़ का मन करे तो हमें बता देना ,हम तुम्हें ला भी देंगे और यह भी बता देंगे कि कोई भी चीज़ कितनी मात्रा में खानी है --"
"मम्मी ने मुझे प्यार किया ,उसके बाद हमें इतनी शर्मिंदगी हुई कि हमने मम्मी से बिना पूछे कभी कोई चीज़ नहीं ली ---"
कहकर दानी हँसने लगीं |
"आप हँस क्यों रही हैं ?"
"इसलिए कि मैंने मम्मी के आगे हाथ फैला दिए ,उन्होंने प्रॉमिज जो किया था दूसरी चवन्नी देने का ---मम्मी ने बिना कुछ कहे मेरे हाथ पर मुस्कुराकर दूसरी चवन्नी रख दी |अब मैंने अपने आपसे पक्का
वायदा कर लिया था कि कभी ऐसा काम नहीं करूंगी |"
"आपकी मम्मी तो बहुत अच्छी थीं दानी ?"
"हाँ,वो तो है ---पर हम भी तो उनका कहना मानते थे --"
रात काफ़ी बीत गई थी,दानी अपने कमरे में चली गईं ,फिर बच्चे दानी बातें करते हुए कब सो गए ,उन्हें पता ही नहीं चला |
डॉ. प्रणव भारती