चंपक की माँ (दानी की कहानी )
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नन्ही कुनमुन खाने की बड़ी चोर थी | उसकी मम्मी उसका खाना दानी के पास रख जातीं |
दानी उसे छोटी-छोटी कहानियाँ सुनाकर खाना खिलातीं |
एक दिन कुनमुन को खाना खिलाते समय बड़ी प्यारी सी कहानी सुनाई दानी ने और कुनमुन रानी ने गपगप करके सारा खाना ख़त्म कर लिया |
वह कहानी कुछ ऎसी थी ---
चंपक चूहा खाना खाने में अपनी मम्मी को बड़ा परेशान करता|
और तो और उसे तो स्कूल में भी टिफ़िन ले जाना पसंद नहीं था |
स्कूल जाते समय हमेशा माँ से झगड़ा करता ;
"मुझे भूख नहीं लगती तो आप मुझे खाना क्यों देती हैं ?"
चंपक की माँ बड़ी परेशान जैसे कुनमुन की मम्मी रहती थीं |
"बेटा! तुम बड़े कैसे होंगे अगर खाना नहीं खाओगे ?" वे पूछतीं जिसका चंपक के पास कोई उत्तर न होता |
खाना बिना लिए वह अपना स्कूल का बैग उठाकर भाग जाता |
चंपक बहुत कमज़ोर होता जा रहा था |
एक दिन गर्मी बहुत थी ,चंपक ने सुबह से कुछ खाया नहीं था ,उसकी बॉटल में पानी भी ख़त्म हो गया था |
उसे बहुत थकान हो रही थी ,पसीने से भीगकर वह लष्ट-पष्ट हो रहा था |
अचानक पवन चलने लगी और हवा के झौंके उसके पसीने वाले शरीर को शीतलता प्रदान करने लगे |
रास्ते में ही पेड़ के नीचे वह लेट गया |
ठंडी पवन में उसकी झपकी लग गई |
अचानक चौंककर उसकी आँखें खुलीं |
उसके सामने बिल्ली मौसी खड़ी थी ---"म्याऊँ म्याऊँ --आज तो तुझे खाऊँगी --"
चंपक बहुत घबरा गया ,अपना स्कूल-बैग और बॉटल छोड़कर वह न जाने कैसे गिरता -पड़ता वहाँ से भागने में सफ़ल हो गया |
उसे भागते हुए आते देखकर उसकी मम्मी परेशान हो गई |
"क्या हुआ बेटा ?"मम्मी ने उसे अपने आँचल में छिपा लिया |
"मम्मी ! मुझे खाना दो ,मैं खाना खाकर खूब पहलवान बन जाऊँगा ---फिर सबको भगा दूंगा ---"
चंपक बड़ा चालाक था ,उसने मम्मी को यह नहीं बताया कि वह अचानक खाना खाने के लिए कैसे तैयार हो गया |
उसकी मम्मी समझदार थी ,समझ गईं पर उनके लिए यह अधिक ज़रूरी था कि चंपक अब खाना खाने लगा था |
" पता है ? कमज़ोर प्राणी पर सब अपना बल आज़माते हैं ---" दानी ने कहा |
उस दिन से कुनमुन चुपचाप खाना खाने लगी थी | अब सब लोग घर में खुश थे |
अब कुनमुन खुद मम्मी से कहकर नए नए व्यंजन बनवाकर खाती|
इतना ही नहीं दाल-चावल भी खाना सीख गई थी | पहले वह दाल खाते हुए बहुत परेशान करती थी |
डॉक्टर साहब कहते थे कि दाल खाना बहुत ज़रूरी है |
एक दिन दानी ने देखा ,वह अपने छोटे भाई को वही कहानी सुना रही थी ,
"तो ,दीदी ! मुझे थोड़े ही म्याऊं बिल्ली खा सकती है ?"
"ओहो ! तुम समझते क्यों नहीं ? बिल्ली मौसी नहीं पर जब तुम स्कूल जाना शुरू करोगे तब तुमसे बड़े बच्चे तो तुम्हे दबा ही सकते हैं न ?"
कुनमुन का छोटा सा भाई चुनमुन जैसे सारी बात समझ गया था |
उसने अपने छोटे से सिर को हिलाया और कुनमुन दीदी को बताया कि वह ताक़तवर बनेगा तो कोई भी उस पर हावी नहीं हो सकेगा |
डॉ.प्रणव भारती