दानी की कहानी - 43 Pranava Bharti द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दानी की कहानी - 43

रमुआ, घर का बहुत पुराना सेवक काफ़ी दिनों से गाँव गया हुआ था | छुट्टी एक महीने की ली थी लेकिन जब तीन महीने बीत गए और उसका कोई आता-पता नहीं चला दानी ने पड़ौस की रमा आँटी से पूछा कि यदि कोई उनकी नज़र में ऐसा जरूरतमन्द हो जिसे काम की ज़रूरत हो तो उसे हमारे घर भेज दें |

"आपके रमुआ को क्या हुआ ?" उन्होंने दानी से पूछा |

"पता नहीं महीने के लिए गाँव गया था, आज तीन महीने हो गए हैं कोई खबर ही नहीं है उसकी | "दानी परेशान तो थीं हीं क्योंकि रमुआ लगभग 10/12 सालों से घर में काम कर रहा था |घर की सारी चीज़ों की खबर जैसी उसे होती, किसी को भी नहीं थी |घर में खाना बनाने वाले महाराज, साफ़-सफ़ाई, बर्तन-कपड़े करने वाली रूनझुन थे लेकिन वे अपना काम कतरके चले जाते थे और फिर अपने समय से आ जाते थे |

रमुआ दौड़-दौड़कर सबके कलाम करता रहता, कुछ लाना हो तो बाज़ार से साइकिल पर भागकर ले आता | उसके रहते कभी पता ही नहीं लगा कि घर में इस चीज़ की ज़रूरत है | दानी एक आवाज़ देतीं और वह ऐसे हाज़िर हो जाता जैसे उनसे एक कान की दूरी पर ही हो |

इतने सालों से साथ रहते-रहते सबको उसकी आदत पड़ गई थी | सब मस्त रहते, कोई चीज़ नहीं है तो महाराज भी कहते ;

"अरे ! माँ जी, गरम मसाला खतम हो गया है, अब आज सब्जी में नहीं डलेगा तो साब को खाने में मज़ा नहीं आएगा |"

"महाराज ! कमाल करते हो, खाना बनाते समय क्या पेड़ पर से तोड़ लोगे ? मीठा नीम है क्या?"दादी झल्लातीं लेकिन उनसे एक कान कि दूरी पर वह जो खुल जा सिमसिम स खड़ा रहता, भागकर आ जाता |

"महाराज ! बनाओ तुम --और हाँ दानी, आप जल्दी से दीजिए पैसे मुझे |मैं ये गया और ये लेकर हाज़िर हुआ |" वह हँसता हुआ कहता |

"रमुआ ! तूने सबको बिगाड़ रखा है | महाराज खाना बनाते हैं, उन्हें पता नहीं होना चाहिए कोई चीज़ खत्म हो गई है ? पता है न सब हो जाता है | रमुआ, तू किसी दिन चल गया न तो सबकी आफ़त आ जाएगी |" दानी महाराज और रमुआ दोनों पर गुस्सा करतीं और फिर पैसे निकालकर रमुआ को दे देतीं |

"महाराज ! तुम और रूनझुन दोनों बिगड़े हुए हो | साब या मैडम जब बाहर से सामान मँगवाने का ऑर्डर करते हैं तो बेचारे हमसे बार-बार पूछते हैं तब हम उन्हें बता नहीं पाते, हमें पता ही नहीं होता | इस रमुआ को ही बता दिया करो, ये तो यहीं रहता है, इसे बताओगे तो यह न सब सामान मँगवाकर रख लेगा | आदतें खराब हो गईं हैं तुम लोगों की |"

महाराज हों या फिर रूनझुन दोनों जानते थे कि रमुआ तो है |पता तो तब चलता जब उन्हें खुद भागकर सामान लाना पड़ता | कपड़े धोने के समय मशीन के पास जाकर खड़ी हो जाएगी, 

"अरे! मैं तो बताना ही भूल गई, आज चादरें धुलनी हैं और मशीन में डालने के लिए लिक्विड डिटर्जेंट ही नहीं है |"कमर पर तो उसके हाथ ऐसे टिके रहते जैसे रमुआ का काम कर रही हो और उस पर रौब डालना सबकी आदत बन गई थी |

"हद हो गई रूनझुन, जो काम तू करती है उसमें क्या लगेगा, ये तो तुझे याद रखना होगा, चल अब हाथ से धो, बट्टी ले ले ---और देखना, साफ़ धुलनी चाहिए --वरना --"

"अरे बाबा रे ! हाथ से ! "और जमीन पर बैठ जाती, जाने कितनी थकी हुई हो |

"लाइए, हम ला देते हैं ----" जब देखो पूरे घर की सेवा के लिए रमुआ तैयार खड़ा रहता और दानी सबके साथ उसकी भी डाँट लगातीं कि तू सबके लिए क्यों खड़ा रहता है?ऐसे तो इन सबको अपनी जिम्मेदारी उठाने की कभी भी आदत ही नहीं पड़ेगी !"दानी गुस्सा तो होतीं पर सामान मँगवा देतीं | बच्चे भी कुछ ऐसे ही करते, कुछ नहीं है तो रमुआ तो है न, सब हो जाएगा |

रमुआ आया तो था एक माली कि तरह लेकिन फिर माली के साथ उसे घर के और कामों के लिए भी रख लिया गया | सोसाइटी के दो /चार घरों के पेड़-पौधों की कटिंग भी कर देता, उसे ऊपर से भी कुछ पैसे मिल जाते | दानी के मुँह से आवाज़ निकली नहीं और ये हाज़िर ! अब उसके न होने से सबको परेशानी हो रही थी | वह दानी के कमरे के बाहर ही अपनी चारपाई बिछाकर सोता, दानी के साथ सब लोग उसे मिस कर रहे थे | जब तीन महीने हो गए और रमुआ का कोई पता-ठिकाना ही नहीं मिल तो किसी की सिफ़ारिश पर दूसरा लड़का आया --शिवू ! दानी ने उसे सब काम बता दिया था कि उसे रमुआ वाले सब काम करने होंगे |

अब कहाँ रमुआ, कहाँ शिवू ! रमुआ गाँव का सीधा -सादा लड़का जिसमें इतने सालों शहर में रहने पर भी पर नहीं लगे थे और शिवू तो पहले से ही पंखों पर बैठकर उड़ता हुआ आया था |

हरेक काम को मस्ती में लेता शिवू और चाहे सबके एक कान की दूरी पर ही क्यों न होता, उसे कुछ सुनाई ही न देता | कानों में हमेशा इयरफ़ोन ठूँसकर रखता और आधी बातें तो सुन ही नहीं पाता | रमुआ दानी के कमरे के बाहर चारपाई डालकर सोता था और ज़रा सी आहत होती तो उठ खड़ा होता कि दानी को कोई परेशानी तो नहीं है ?

महाराज, रूनझुन और घर के सभी लोग, बच्चे तक रमुआ की अनुपस्थिति से परेशान हो गए थे और दूसरी ओर शिवू की हरकतों से परेशान थे | एक बात को बार-बार कहना पड़ता फिर भी वह काम हो पाता या नहीं यह उसके मूड पर ही निर्भर होता था |

दानी सोचतीं कि हम इतने अधिक क्यों किसी पर आधारित होते जा रहे हैं ? मन में कहीं रमुआ को याद तो ज़रूर करतीं | दो महीने में ही शिवू ने सबकी नाक में चने चबवा दिए थे फिर भी उसे इसलिए निकाल नहीं जा रहा था कि कम से कम किसीके घर आने पर पानी, चाय तो लेकर आ ही जाता था |

कई महीनों बाद एक दिन अचानक रमुआ का बुझा हुआ चेहरा सामने था | दानी जैसे चाहक उठीं |

"अरे! कहाँ चल गया था ?"

रमुआ हिचकियाँ लेकर रोने लगा | पूछने पर पता चला कि गाँव में उसके माता-पिता समय पर दवाई न मिलने से कोविड का शिकार हो गए थे |

"लेकिन ---अब कहाँ है कोविड ?" दानी ने पूछा |

"साल भर पहले, मुझे किसी ने खबर ही नहीं करी ---बहन ने भी नहीं ----उसका सुसराल तो पास ही है और यहाँ अब मेरी नौकरी भी नहीं है, मैं कहाँ जाऊँगा ?" वह रोता जा रहा था |

"यहीं रहेगा बेटा, और कहाँ जाएगा ? शिवू को तो बहुत से बड़े घर मिल जाएंगे | वह बताता रहता है | यह तेरा ही घर है |"दानी रुकीं फिर बोलीं ;

"बस एक शर्त है, सबको अपने -अपने काम खुद करने होंगे नहीं तो----"

सब दानी की बात समझ गए थे, दानी चाहती थीं कि कोई भी किसी पर इतना निर्भर न रहे कि कभी ज़रूरत होने पर सब एक-दूसरे का मुँह देखते रहें |

ऐसा ही हुआ रमुआ घर लौट आया और सबकी आदतें बिगाड़ने लगा लेकिन दानी ने अपनी शर्त याद दिलाई ---थोड़ा बदलाव हुआ था पर घर के सभी लोग उसको देखकर खुश थे, सबका काम संभालने वाला जो आ गया था |

काम करने वाले की सब जगह ज़रूरत होती है, बच्चे व बड़े सब समझने लगे थे |

 

डॉ. प्रणव भारती