सबा - 13 Prabodh Kumar Govil द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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सबा - 13

मैडम धाराप्रवाह बोल रही थीं और बिजली उनके सामने चुपचाप बैठी कौतुक से उनकी बात सुन रही थी। कभी- कभी जब बिजली को मैडम की बात बहुत ही अटपटी या अनहोनी सी लगती तो वह असमंजस में अपनी दोनों हथेलियां अपने गालों पर रख लेती और उछल कर उकड़ूं बैठ जाती। उनकी बात सुनने में उसे ये भी ख्याल नहीं रहता कि उसने अपने पैर कुर्सी की गद्दी पर टिका दिए हैं।
मैडम भी उसे ऐसा करते देख कुछ नहीं बोलती थीं। शायद उन्हें लगता होगा कि जाने दो, गंदा करेगी तो क्या, कल खुद ही साफ़ भी करेगी। आखिर थी तो उनकी नौकरानी ही।
बल्कि इसके उलट मैडम तो ये सोच कर खुश होती थीं कि देखो, मेरी बात कितने ध्यान से सुन रही है। कौन कहेगा कि ये ज़्यादा पढ़ी - लिखी नहीं है।
मैडम कह रही थीं कि जैसे बिस्कुट के डिब्बे पर वो तारीख लिखी रहती है कि ये कब ख़राब या बेअसर हो जायेगा, ठीक वैसे ही आदमी के प्रेम की भी एक्सपायरी डेट होती है। उसके बाद वो अपना असर खोने लगता है।
- मैडम जी, क्या प्रेम फ़िर नहीं लौटता? ऐसा भी तो होता है न, कि कभी- कभी कोई मर्द औरत एक दूसरे के दिल से छिटकने के बाद फिर दोबारा पास आ जाते हैं, एक दूसरे को पसंद करने लग जाते हैं। फिर उनकी डेट का क्या होता है। वो ही ... जो अभी आप कह रही थीं।
- एक्सपायरी डेट! मैडम ने मुस्कुरा कर कहा।
फिर बोलीं - खाने की कोई चीज़ अपनी खराब होने की मियाद बीत जाने के बाद भी खा ली जाती है। क्योंकि लोगों का हाजमा भी तो अलग - अलग होता है। वैसे ही प्यार को भी साध लेते हैं लोग!
- कैसे?
- कभी औरत सह जाती है तो कभी मर्द बर्दाश्त कर जाता है।
बिजली को ध्यान आया कि रसोई में ढेर सारे बर्तन धोने के लिए पड़े हैं, वो झटपट उठी और काम में लग गई।
मन ही मन सोचती जाती थी, मैडम का क्या है, ये तो बोलती जायेगी घंटों... काम में देर तो मुझे होगी।
बिजली के उठते ही मैडम ने सामने पड़ा हुआ अख़बार उठा लिया और उसे उलट - पलट कर देखने लगीं।
घर लौटती बिजली को मैडम की बात याद कर के मन ही मन बड़ा मज़ा आ रहा था। कहती थी प्यार की भी एक्सपायरी डेट होती है। जैसे चलते- चलते नल खराब हो जाता है, कभी ढीला होकर टपकने लगता है!
लो, बिजली सोचती थी कि केवल लड़के ही लड़की को नुकसान पहुंचा सकते हैं। खुद लड़कों को भी तो नुकसान हो सकता है। मज़ेदार बात है रे ये तो!!
क्या वो ये बात चमकी को बताए?
देखें तो सही चमकी क्या बोलती है। उसे मालूम तो होगा ही, वो बच्ची थोड़े ही है। बिजली को याद आया कि जब सातवीं कक्षा में एक दिन स्कूल में अचानक उसकी सलवार खराब हो गई थी तब चमकी ने ही तो उसे जल्दी से उठा कर घर भेजा था। पीछे - पीछे दौड़ती हुई खुद भी उसके साथ आई थी। एक लड़के ने तो देख भी लिया था। मुंह फेर कर हंसने लगा था शैतान कहीं का।
पर चमकी से पूछे कैसे? कहीं चमकी को उस पर शक तो नहीं हो जायेगा कि वो ये सब क्यों पूछ रही है? वो मैडम जी के घर काम करने जाती है या वहां और भी कोई है जो बिजली को ये सब पढ़ाता है। जाने दो, वो क्यों मुसीबत मोल ले।
उस दिन राजा के नौटंकी करने के बाद से मुश्किल से जाकर तो उसका मूड ठीक हुआ। वो काम पर फिर से जाने लगी थी। कब तक घर पर पड़ी रहती।
ये ठीक है कि बिजली और चमकी अभी अपने मां- बापू के घर में ही हैं जहां उन्हें रोटी - कपड़े की कोई चिंता नहीं है। लेकिन अकेले बापू सारे घर की चिंता करते रहें ये भी तो ठीक नहीं। बिजली कुछ कमा सकती है तो क्यों न कमाए? आखिर बापू एक दिन उन दोनों बहनों की शादी भी तो करेंगे, तब ढेर सारा खर्चा नहीं होगा? तो बापू को जितना हो सके उतना सहारा तो देना ही चाहिए।
बिजली तो ये सब सोचे। चमकी तो ठहरी फांदेबाज़। कुछ करती - धरती नहीं।