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ज़िद्दी की ख्वाहिश

केसरी लाल की अपने गांव में छोटी सी हलवाई की दुकान थी। शादी के बहुत साल बीतने के बाद भी केसरी लाल और उसकी पत्नी को जब औलाद का सुख नहीं मिलता है, तो वह और उसकी पत्नी कलावती बहुत अधिक पूजा पाठ करते हैं और ईश्वर की कृपा से उनके घर बेटे का जन्म हो जाता है। दोनों अपने बेटे का नाम मिलकर भुवन रखते हैं। मुश्किल से औलाद का सुख मिलने की वजह से वह अपने बेटे भुवन की छोटी से छोटी ख्वाहिश पूरी करते थे। भुवन को हल्का सा खांसी जुकाम भी हो जाता था, तो केसरी लाल और उसकी पत्नी कलावती पूरे गांव में ढिंढोरा पीट देते थे। अपने बेटे भुवन की छोटी से छोटी तकलीफ जब वह गांव वालों को बताते थे, तो गांव वाले उनकी इस हरकत पर खूब हंसते थे। कभी-कभी बिना वजह भुवन रात को इतनी तेज तेज रोता था, कि गांव वाले भी घबरा जाते थे और केसरी लाल के घर आकर पता करते थे, कि सब ठीक-ठाक है या नहीं। लेकिन हमेशा की तरह भुवन के रोने की वजह उसकी नई-नई ख्वाहिश होती थी। गांव वालों को जब भी मौका मिलता था, वह केसरी लाल और कलावती को समझते थे, कि अपने बेटे की सारी ज़िद और फालतू की ख्वाहिश पूरी करने से तुम्हारे बेटे का और तुम्हारा जीवन किसी दिन बर्बाद हो सकता है, लेकिन केसरी लाल और कलावती अपने इकलौते बेटे के प्यार में इतना पागल थे, कि वह किसी की भी समझदारी की बात समझने के लिए तैयार नहीं होते थे और उनके बेटे भुवन की आयु बढ़ाने के साथ-साथ उसकी ख्वाहिशे भी बढ़ने लगती है। एक दिन भुवन अपने माता-पिता से अपनी एक नई ख्वाहिश पूरी करने के लिए कहता है कि "मुझे चांद की सैर करनी है।" अपने बेटे भुवन की यह अनोखी ख्वाहिश सुनकर केसरी लाल और कलावती दोनों सोच में पड़ जाते हैं, कि हम अपने बेटी की यह ख्वाहिश कैसे पूरी करेंगे, इसलिए वह दोनों अपने बेटे भुवन को हाथ जोड़कर कहते हैं कि "बेटा तेरी यह ख्वाहिश पूरी करना नामुमकिन है।" लेकिन भुवन अपनी यह ख्वाहिश पूरी करने के लिए जिद पर अड़ जाता है और उसी समय खाना छोड़कर घर से बाहर भाग जाता है। और भुवन गुस्से में दौड़ लगाकर पूरे गांव का चक्कर काटने लगता है। भुवन गांव में आगे आगे दौड़ता है और पीछे उसके मां-बाप उसे दौड़ने से रोकने के लिए दौड़ते हैं, लेकिन भुवन दौड़ते दौड़ते रुकने का नाम ही नहीं लेता है और भुवन को दौड़ते दौड़ते गांव के चक्कर काटते हुए भूखे प्यासे 24 घंटे हो जाते हैं। पूरा गांव भुवन के माता-पिता भुवन को रोकते-रोकते थक जाता हैं, लेकिन भुवन दौड़ते दौड़ते नहीं रुकता है, तो उस समय केसरी लाल और कलावती को अपनी गलती का एहसास होता है, कि बच्चे की सारी ख्वाहिशें पूरी नहीं करनी चाहिए। भुवन दौड़ते दौड़ते एक ही बात दोहरा रहा था, की मां बाबूजी मुझे चांद की सैर करनी है। लगातार 24 घंटे भूखे प्यासे दौड़ने की वजह से भुवन का हार्ड फेल हो जाता है और वह जमीन पर गिरकर दम तोड़ देता है। केसरी लाल और कलावती को अपने बेटे भुवन की मौत का इतना सदमा लगता है, कि वह भी उसके साथ दम तोड़ देते हैं। केसरी लाल और कलावती भुवन की मौत के बाद पूरा गांव बहुत दुखी होता है और वह आपस में कहते हैं कि "भुवन अपने साथ अपने माता-पिता को भी चंद की सैर करवाने ले गया।"

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