पहचान Rajesh Rajesh द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पहचान

मानव ऐसा युवक था, उसके स्वभाव को समझना सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी के लिए भी समझना असंभव था क्योंकि मानव जिस व्यक्ति के साथ एक सप्ताह से भी कम समय रहता था, तो उस व्यक्ति ही जैसे दिखने की कोशिश करने लगता था इसलिए उस व्यक्ति जैसे ही हरकतें करना शुरू कर देता था जैसे डॉक्टर के साथ रहता था तो डॉक्टर जैसा आचार व्यवहार करने लगता था अगर चोर के साथ रहता था, तो चोरी करना करने लगता था।

कहने का अर्थ यह है कि मानव की अपनी कोई पहचान नहीं थी। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि मानव अनाथ था और वह एक जगह टिक कर कहीं रह नहीं रहता था और जो उसकी मदद करता था वह उसे ही परमात्मा मान लेता था। और रात दिन उसका गुणगान करना शुरू कर देता था।

अपने इस स्वभाव के कारण मानव एक मुसीबत में फंस जाता है, क्योंकि उसकी दोस्ती पुरानी दिल्ली के ठग प्रवीण से हो जाती है।

दिल्ली का ठग प्रवीण लोगों को ठगता था, लेकिन वह गरीब और ईमानदार सच्चे लोगों को नहीं ठगता था और जरूरतमंद लोगों की मदद भी कर देता था।

प्रवीण ठग को मानव का नाम मानव बहुत पसंद था, इसलिए वह एक दिन मानव से पूछता है? तेरा मानव नाम किसने रखा है, जबकि तू तो अनाथ है, तो मानव बताता है कि "कुछ साधु मुझे पकड़ कर चेला बनाने के लिए लेकर जा रहे थे, तो मुझे एक शिक्षक ने उन साधुओं से बचाया था और मेरा नाम वहां जमा हुई भीड़ के सामने मानव रखा था क्योंकि मानव नाम का अर्थ होता है मनुष्य इंसान। मानव नाम रखने के बाद मुझे अपने घर में शरण देने के बाद विद्यालय में मेरा दाखिला करवा दिया था, उन्हीं के घर रहकर मैंने आठवीं तक कि शिक्षा प्राप्त की थी।"

मानव को मानव नाम कैसे मिला यह सारा किस्सा सुनने के बाद प्रवीण कहता है "मुझे सच्चा दोस्त और बड़ा भाई मानता है, तो अपना मानव नाम मुझे दे दे और मेरा प्रवीण नाम तू रख ले।"

मानव कि नजरों में खुद को छोड़कर सब हीरो थे, इसलिए वह तुरंत उस दिन से अपना नाम प्रवीण रख लेता है और उस दिन से प्रवीण को मानव कहने लगता है।

दिल्ली का ठग प्रवीण अपनी हेराफेरी की आदत से मजबूर था, इसलिए इस बार वह एक ऐसे आदमी को ठगता है, जो करोड़ों रुपए खर्च करके अपनी बेटी की शादी करने की तैयारी कर रहा था, उस व्यापारी के बारे में प्रवीण ठग को किसी से पता चला था कि उसने जो धन इकट्ठा किया है वह बेईमानी धोखाधड़ी से इकट्ठा किया था, लेकिन यह जानकारी प्रवीण ठग को गलत मिली थी।

प्रवीण उस व्यापारी को ठगने की योजना बनाता है और नकलची मानव उसकी गलत सही सब काम में उसका पूरा साथ देता था।

और मानव को सिद्ध साधु बताकर उस व्यापारी से कहता है कि "मेरा चेला प्रवीण घोर तपस्या में लीन था, तभी धनकुबेर ने उसे दर्शन देकर उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर इसे पारस पत्थर दिया था और कहा था यह ऐसे व्यक्ति को देना जो ईमानदार हो दुनिया कि भलाई की सोचता हो और जिसकी बेटी की शादी एक महीने के अंदर होने वाली हो। पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है।"

वह व्यापारी ईमानदार था, सब का भला सोचने वाला था, इसलिए वह व्यापारी दो करोड़ रुपए का पारस पत्थर खरीद कर उस पत्थर को मीडिया के द्वारा पूरी दुनिया के सामने दिखा देता है, ताकि पारस पत्थर की वजह से पूरी दुनिया का भला हो जाए।

पूरी दुनिया में खबर फैलने के बाद सरकार पारस पत्थर की जांच पड़ताल करती है और पारस पत्थर नकली निकलता है, तो पुलिस मानव को प्रवीण ठग समझकर गिरफ्तार कर लेती है और आज तक प्रवीण ठग ने जितने जुर्म किए थे, वह सब जुर्म मानव के सर पड़ जाते हैं, उन सब जुर्म के लिए प्रवीण उर्फ मानव को दस वर्ष की सजा हो जाती है।

प्रवीण ठग मानव को धोखा देकर कहीं भाग जाता है, उस दिन मानव को समझ आता है, कि मनुष्य को अपने विवेक से जीना चाहिए और दुनिया में मनुष्य को अपनी पहचान बनानी चाहिए।