ताश का आशियाना - भाग 29 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ताश का आशियाना - भाग 29

इसलिए वो वहा पे आंखे बंद कर बैठा रहा।
खुदका सिर, दीवार को टीका, सिर्फ छत की तरफ एकटक देखने लगा।

पाच साल पहले भी यही हुआ था। बस सिचुएशंस कुछ अलग थी।

सिद्धार्थ ने नया नया काम करना शुरू किया था।
बैंगलोर के शंकर त्रिपाठी के ट्रैवल एजेंसी में टूर गाइड काम करता था।

जब उसके काम से खुश होकर एक फॉरेन यात्री, फ्रेंज मार्विक ने उसे ब्लॉग लिखने का आइडिया सुझाया तो वो उसपर भी काम करने लगा।

जब एक डेढ़ सालो में लोगो को ब्लॉग पसंद आए तो व्यूअर के सुझाव के चलते वीडियो डालना भी शुरू किए, उसी समय तुषार की एंट्री हुई थी।

तुषार की बड़ी मां, यानी ताइजी ने तुषार के आगे की पढ़ाई के लिए खुदके सोने के कंगन गिरवी रखे थे।
जो काम उसके मां–बाप नहीं कर सके वो बड़ी मां और बड़े पापा ने कर दिया।

कभी-कभी उसे ख्याल आता कि अगर बड़े मां–पापा को बच्चे होंते तो क्या होता? यह विचार भले ही बुरा हो लेकिन तुषार को इस बात से खुशी थी।

तुषार एक नया भर्ती व्यक्ति था तब जब वह अपने सपनो साथ शंकर अण्णा की ट्रैवल एजेंसी में शामिल हुआ था, वो सिद्धार्थ के अंदर ही काम करता था।

बाद में उसने बताया कि वह यहां फाईन आर्ट के तहत डिग्री कोर्स कर रहा है लेकिन उस कोर्स के लिए काफी पैसे की जरूरत होने के कारण वह यहां पार्ट टाइम जॉब करने आया है।

उसने यह भी बताया, उसे डिग्री चाहिए थी लेकिन उस डिग्री के लिए और अपने खर्चे आपने बड़े मां–पापा को तकलीफ नहीं देना चाहता था। वैसे भी उसने अपनी पहले वर्ष की फीस उनके बदौलत ही भरी थी।

सिद्धार्थ के साथ रहते हुए तुषार ने कभी ये नहीं सोचा कि वो जूनियर हैं और सिद्धार्थ सीनियर, उन दोनो के बीच आगे निकलने की कोई होड़ नहीं थी।

और यही कारण है कि सिद्धार्थ और तुषार अब तक साथ हैं।

जहां दोस्ती में कहीं भी प्रतिस्पर्धा नहीं होती, वही दोस्ती लंबे समय तक बरकरार रहती है।

पहली बार जब सिद्धार्थ ने व्लॉग शुरू किया तो सिद्धार्थ ने खुदका खुद ही कुछ शूट किया।

लेकिन इस बात से वो लोगों का ध्यान आकर्षित करने में असमर्थ रहा।

लेकिन जब एक दिन, तुषार ने सिद्धार्थ का व्लॉग देखा और सुझाव दिया की वो, कॅमेरे का अँगेल कहा से ले और एडिटिंग कहा से करे तो सिद्धार्थ नथुने फुर्राते हुए बात को टाल दिया, "तू अपने काम पर ध्यान दे मेरे काम में दखल अंदाजी मत कर।"

लेकिन बहुत जल्द सिद्धार्थ पर खुदकी जबान खुद निगलने की बारी आ गई जब डिजिटल मार्केटिग में और भी लोगो ने पदार्पण करना शुरू कर दिया।

क्योंकि लोगो में या व्लॉग जैसे कंटेंट देकर पैसा कमाया जा सकता है इस बात की कानाफूसी इंटरनेट और और एंड्राइड माध्यम से फैल रही थी।

फिर क्या, सिद्धार्थ का बिजनेस मंदी में चलते ही उसे तुषार के आगे घुटने टेकने पड़े।

तुषार की फोटो और एडिटिंग स्किल काम आई।
लोगो को व्लॉग पसंद आने लगे।

शंकर त्रिपाठी को भी इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि सिद्धार्थ उन्हें खूब पैसे कमा देता था।
लेकिन धीरे-धीरे सिद्धार्थ की लोकप्रियता बढ़ने लगी और सिद्धार्थ ने टूर गाइड की नौकरी छोड़ने का फैसला किया।

सिद्धार्थ और तुषार को लगा कि शंकर त्रिपाठी को बुरा लगेगा।

शंकर त्रिपाठी उन्हें जाने नहीं देंगे और हंगामा करेंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
शंकर त्रिपाठी की टाइफिड के कारण मृत्यु हो गई और उनका बिजनेस उनके बेटे ने संभाल लिया।
इसलिए मरने के बाद आए नए व्यक्ति को सिद्धार्थ के जाने का इतना कुछ खासा फरक नही पड़ा।

सिद्धार्थ ने सिर्फ इतना कहा कि वह अपना सपना जीना चाहते हैं। उसे कहीं और नौकरी मिल गई और थोडा बहुत सोच विचार करने के बाद उसे जाने दिया गया।

सिद्धार्थ ने रेजिग्नेशन लेटर दिया उसके पीछे–पीछे तुषार ने भी रेजिग्नेशन लेटर दिया।

सिद्धार्थ को ये पसंद नहीं आया सिद्धार्थ ने कठोर होकर तुषार से कहा कि, "अपनी डिग्री पूरी करो मेरे पीछे मत आओ। यहाँ मेरा कोई सारथी नहीं है, मैं अपने आप में ठीक हू।"

लेकिन तुषार सिद्धार्थ की बात को अनसुना कर दिया।बस इतना कहा कि, "मैं कॉलेज से अपना नाम वापस ले रहा हूं, बताओ कब जाना है।"

तभी तुषार का सेकेंड ईयर चल रहा था और छह महीने में परीक्षा खत्म होने वाली थी।

सिद्धार्थ को गुस्सा आता है, "तुम मेरे भरोसे यहां नही आए।
मैं तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं ले सकता और ना ही लूंगा।
तुम यहां अपनी डिग्री पूरी करने आए हो, फोटोग्राफी, विडियोग्राफी करने आए हो, वही करो बस!"

"लेकिन यहां में आपकी वजह से ही खड़ा हु और यहां तक पहुंच पाया हु। आपने ही मुझे सब सिखाया, वक्त आने पर शंकर अण्णा से भी बचाया, इससे ज्यादा मुझे और क्या चाहिए।
आपकी बदौलत ही मेरा एजुकेशन चालू है और वैसे भी मैं आपका कैमरामैन हूं मेरे अलावा आप कहां जा सकते हैं।"

"मैं वह सब देख लूंगा, बस मैं तुम्हें अपने साथ लेकर नही जा सकता।"

"मैं बोल ही नहीं रहा कि आप मुझे कहीं लेकर जाओ मैं खुद आपके पीछे-पीछे आ जाऊंगा।" तुषार उत्साहित होकर बोल उठा।

सिद्धार्थ आखिरकार बहस में हार गया उसने अपना रास्ता पकड़ा, अपनी बैग लेकर वहां से चल दिया।
सिद्धार्थ जब हैदराबाद स्टेशन पर उतरा उसे लगा की वो अब सब पीछे छोड़ आया है।
उसने एक खुली सास ली। अपनी आंखे इधर–उधर घुमाई वैसे ही उसे एक कंपार्टमेंट से तुषार आते हुए दिखाई दिया।
"इसे तो बंगलौर छोड़ आया था मैं।" ऐसा ही पहला विचार उसके मन में आया।
वही दूसरी तरफ तुषार सिद्धार्थ को देखकर मुसुकराते हुए हाथ लहराने लगा।

सिद्धार्थ ने जो जो किया वही तुषार ने भी किया सिद्धार्थ जिस होटल में ठहरा था उसी की बाजू वाले रूम तुषार ने भी बुक कर ली थी।

तुषार ने बिना बुलाए मेहमान की तरह अपनी जगह बना ली और वही दूसरी तरफ सिद्धार्थ अपनी फूटी किस्मत को कोसने लगा।
सिद्धार्थ तुषार के आगे–पीछे करने से इरिटेड हो चुका था।

लेकिन वही एक दिन जब सिद्धार्थ हैदराबाद पर व्लॉग बना रहा था तब तुषार भी उसके पीछे पीछे आ गया और इंस्ट्रक्शन देने लगा की एक अच्छा वीडियो कैसे खींचना चाहिए, सिद्धार्थ ने आखिरकार हार मान ली, "तू ही कर यह सब।" हाथ में कैमरा थंबाते हुए बोला।

"मैने तो कहा था आपसे की, मैं शूटिंग करता हु।
आप ही कह रहे थे, मैं संभाल लूंगा।"
तुषार ने, मैं संभाल लूंगा वाक्य से ही सिद्धार्थ की बेइज्जती कर दी।
सिद्धार्थ बिना कुछ बोले, अपनी व्लॉग वाली डेस्टीनेशन के और जाने लगा।

तुषार सिर्फ सिद्धार्थ की पेस पकड़ते हुए अपने कैमरामैन की जिमेदारी की और कुच करने निकल पड़ा।
पहला डेस्टिनेशन, चांदमीनार ही था।

उस दिन के व्लॉग के बाद सिद्धार्थ ने अपने जिंदगी में आखिरकार तुषार का अस्तित्व स्विकार कर ही लिया।

हैदराबाद का शूटिंग खत्म कर दोनों दिल्ली गए।
और वो शायद उनके जिंदगी के सबसे लंबी ट्रिप में से एक बन गई।

क्योंकि वही सिद्धार्थ को अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा सच पता चला।

तब मामला इतना नही बढ़ा जितना आज बढ़ा क्योंकि सिद्धार्थ की चीख सुनते ही तुषार वहा दौड़ गया, सिद्धार्थ रूम में बेहोश पड़ा था हाथ से खून निकल रहा था।
तुषार के बहुत उठाने पर भी वो नही उठा।

आखिरकार होटल के स्टाफ के मदद से उसे हॉस्पिटल लेकर गए।
दोनो तब अलग–अलग कमरे में ठहरे हुए थे, सिद्धार्थ को अपने प्राइवेसी में कोई खलल नही चाहिए थी। सिद्धार्थ का स्वभाव देखते हुए, तुषार को भी इस चीज से कोई आप्पति नही थी।

लेकिन मैनेजर जब रूम में आया तो रूम में पाव रखने तक की भी जगह नहीं बची थी।

सब सामान बिखरा पड़ा था, फूल वास तोड़ दिया गया था। बेड भी उलट पुलथ हो चुका था, शीशा तक टूट बिखरा हुआ था, हाथ से खून निकल रहा था हाथ में टूटा हुआ शीशा था।

डॉक्टर ने सिद्धार्थ को चेक करने पर कहा, मेंटल स्ट्रेस और डिप्रेशन के चलते यह सब हुआ है।
तो यह सुनकर तुषार के होश ही उड़ गए। सिद्धार्थ की हालत जल्द ही कंट्रोल में आ गई थी।
वहा के सब स्टाफ हेल्पफुल रहे थे तब।

कुछ 12 घंटो बाद जब सिद्धार्थ उठा तो खुदकी ऐसी हालत देखकर हैरान था हाथो में बैंडेज और माथे पर चोट, हाथो में I.V. इन सब बातो से वो असमंजस में था कि उसे क्या हुआ है।

उसने वहा खड़े तुषार से पूछा जो डॉक्टर के हर एक मोमेंट को देख रहा था की वो कैसे सिद्धार्थ को वो चेक कर रहे है।

"मैं यहां कैसे कोन लेकर आया मुझे यहा?"

तो तुषार से उसे सारा हालहवाल पता चला, "मै एडिटिंग कर रहा था की तभी, मुझे आपके चीखने की आवाज आई।
और मैं दौड़ा चला आया तो देखता हु, यह सब हो गया है।

सिद्धार्थ ने अपने हाथो के घाव को देखा।
" मुझे कुछ आवाजे सुनाई दे रही थी, कुछ अजीब सी। बहुत बेसुरी वो कह रही थी की मैं गलत हु और मुझे खुदको मार डालना चहिए। मैंने उनसे बहुत भागने की कोशिश की तो बहुत सारे लोग खड़े थे। सारे लोग मुझे मारने के फिराक में थे। ऐसी बड़ी बड़ी आंखे थी उनकी।
किसीने पापा का फेस लगाया था, किसीने मां का, किसीने चित्रा का लेकिन मैं पहचान गया, वो कैसे आ सकते है ना!
वो तो मैं उन्हे छोड़ कर आया हु।
"मैने प्रकाश को भी कहा लेकिन वो भी खामोश था डरा हुआ था।"

"लेकिन मैं जब आया तो वहा कोई नही था, और प्रकाश कोन?" तुषार ने डरते–डराते पूछा।

"प्रकाश, प्रकाश मेरा दोस्त है वो वही था वहा,वो भोजपुरी हिंदी बाते करता है।"
"मैने किसी को नही देखा भाई।" तुषार ने सिद्धार्थ को हालत देख घबराते हुए अपनी बात रखी।

सिद्धार्थ रोने लगा। उसे पता था उसके शरीर के साथ कुछ गलत हो रहा है, पर क्या इससे वो अनजान था।
तुमने नही देखा, उसकी पीड़ा असहनीय थी।
तुषार सिद्धार्थ की हालत देखकर घबरा गया,उसे चिंता होने लगी सिद्धार्थ की,

"भाई, भाई! शांत रिलेक्स वो सब चले गए है, में जैसे ही अंदर आया वो सब मुझे धक्का देकर भाग गए।"

सिद्धार्थ को पता था, यह सब झूठ है। वो वेहम की जिंदगी जी रहा है उसे किसी भूत ने कब्जे में कर लिया है या भैरवजी ( महादेव का एक स्वरूप) उससे नाराज है इसलिए उसे इतना सब कुछ सहन करना पड़ रहा है।

सिद्धार्थ की हालत देख मानो तुषार को क्या करे समझ नही आ रहा था।

"भाई फिलहाल आप सो जाइए।"
"हम बाद में बात करते है।"
सिद्धार्थ सिर्फ रोता रहा, फिर अपने आप गोलियों के असर के कारण सो गया।

तुषार ने बाद में जो भी सामान टूटा था उसके होटल में पैसे भर दिए थे।




तीन दिन बाद सिद्धार्थ पूरी तरह ठीक हो गया।
और अपने भयानक विचारो से दूर रहने के लिए उसने फिर से एक बार ब्लॉगिंग और व्लॉगिंग चालू कर दी।

पहले तो तुषार थोड़ा घबराया हुआ था, उसने सिद्धार्थ को रेस्ट लेने तक की बात बोली थी लेकिन जब सिद्धार्थ अपनी बात पर अड़ा रहा तो वह उसे अकेला कैसे छोड़ सकता था इसलिए तुषार भी उसके पीछे-पीछे चल दिया।

तुषार किसी बीमार व्यक्ति की तरह उसकी देखभाल कर रहा था यह बात सिद्धार्थ को चिड़चिड़ा कर रही थी लेकिन जैसे–तैसे दिल्ली की शूटिंग कंप्लीट हुई।

तुषार ने अपनी पूरी रात देकर एडिटिंग भी कंप्लीट कर ली।

अगले दिन दिल्ली का वीडियो अपलोड होने वाला था उसी के दिल्ली में उनका आखरी दिन था वो कल श्याम की ट्रेन से शिमला जाने वाले थे।

सिद्धार्थ ने तुषार से कहा, "चलो चल कर खाना खाते हैं।"

"नहीं भाई मैं बहुत थक चुका हूं आप खाओ।"

सिद्धार्थ नीचे उतरा होटल का ही खुद का रेस्टोरेंट था। वह जैसे ही खाना खाने टेबल पर बैठा और ऑर्डर आने की राह देख रहा था वैसे ही उसे कुछ कानाफूसी सुनाई दी।

"अरे यह वही कस्टमर है ना, हां हां जिस में तोड़फोड़ करके रखी थी।" एक वेटर दूसरे से बोला।

"हां इसका दोस्त इसे हॉस्पिटल लेकर गया था अपने मैनेजर साहब भी गए थे।" दूसरा पहले से।

सिद्धार्थ यह बात सुनकर थोड़ा शौक था।
"आप लोग किसके बारे में बात कर रहे हैं?" दोनों वेटर घबरा गए।
"कुछ नही सर।"
"नही नही आप, मेरे बारे में ही बात कर रहे है।
प्लीज, मेरे साथ क्या हुआ था उस दिन।"

वेटर ने सिद्धार्थ को उसकी हालत में होने से लेकर डॉक्टर के पास ले जाने तक सब बातें बताई यह भी बताया कि तुषार ने कैसे जो भी सामान टूटे हैं उसके चार्जेस भर दिए।

यह बाते किसी एटॉम बॉम्ब की तरह सिद्धार्थ के मस्तिष्क पर गिरी।

यह पहली बार नही हुआ था उसके साथ बहुत बार ऐसी हालातो का उसे सामना करना पड़ा था।

और बहुत सी बार प्रकाश ने बचाया था लेकिन आज बात की हद हो गई थी, कोई बहुत सारे लोग उसकी हालत के राजदार बन चुके थे।

उसने हर बार सोचा उसकी समस्या एक ना एक दिन ठीक हो जाएगी।
उसने इस बार भी यही सोचा की स्ट्रेस के कारण ही यह सब हुआ होंगा, और खुदको बुरे–बुरे विचारों से दूर रखने के लिए हर बार की तरह ब्लॉगिंग–व्लॉगिंग के कामों में खुदको को डूबा लिया।


उसे हर बार कुछ ऐसा होता तो उसका दिल कहता उसे साइकैटरिस्ट से मिलने की जरूरत है लेकिन वो पागल थोड़ी है।
बस यह आम बात है, स्ट्रेस और डिप्रेशन।


लेकिन आज जब खुद के जीवन का छुपा हुआ पन्ना किसी के सामने उजागर हो रहा था, तुषार कितने तो भी दिनो से उसे एक बीमार व्यक्ति की तरह ट्रीट कर रहा था तब उसने सोचा उसके साथ गलत हुआ है, जो अब उसे रोकना होगा।

वो अपने इस समस्या का समाधान जरूर निकलेगा।



सिद्धार्थ बिना वक्त गवाए, दिल्ली छोड़ जाने के एक दिन पहले साइकैटरिस्ट से जाकर मिला।

अपनी सारी बात अपनी हिस्ट्री साइकैटरिस्ट के सामने खोल कर रख दी।
डॉक्टर ने कुछ गोलियां लिख कर दी और टेस्ट करवाए।

तुषार ने डॉक्टर के पास से आते ही बहुत सारे सवाल सिद्धार्थ पर थोपे लेकिन उसने कोई जवाब नही दिया सिर्फ कहा, "यहां 7 दिन और रुकना है।"

दिल्ली का टूर लंबे चलने वाले टूर में से बन गया।

7 दिन बाद वो फिर से गया, टेस्ट की रिपोर्ट्स आ गई और तब जाकर उसे अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा झटका लगा।

" Siddharth I know it's critical but you have to beer with it."
"डॉक्टर क्या हुआ है मुझे साफ साफ बताइए।"


"तुम सिज़ोफ्रेनिया नाम की बीमारी से ग्रसित हो।"
"सिज़ोफ्रेनिया? पर डॉक्टर मैं कुछ दिन बाद ठीक हो जाता हु।"

"ऐसा तुम सोचते हो सिद्धार्थ की तुम्हे कोई बीमारी नहीं है।"

"तुमने मुझे जो भी बताया, हमने तुम पर पर जो टेस्ट किए हैं, जिस स्थिति में तुम अपने दोस्त को मिले हो, उससे मैं यह निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि तुम्हे सिज़ोफ्रेनिया है लेकिन चिंता की कोई बात नहीं।"

"डॉक्टर पर वहा कोई ऐसा व्यक्ति था जो मुझ पर भारी था और प्रकाश भी उसे रोक नही पाया, यह सब भूतपिशाच का काम है।"

क्या तुम जानते हो कि जिस प्रकाश के बारे में तुम बात करते रहते हो, जिस दोस्त के बारे में तुम सोचते रहते हो वो सिर्फ एक किरदार है।

वो जीवित नहीं है। उसके साथ किया गयी हर एक बातचीत तूम्हारी सोची हुई बातचीत है।

तुमने तुम्हारी बॉडी के लिए एक कॉपिंग मैटेरियल बनाया है वो है ‘प्रकाश’ जो तुम्हे आने वाले घटनाओं से बचाता है। वो जिंदा नही है।

उस समय सिद्धार्थ को सबसे बड़ा शोक लगा।
उसका दोस्त जिंदा नहीं है बल्कि वो जो भी बाते अपने दोस्त से कहता वो सिर्फ एक बीमारी है।

और रही बात किसी एविल या राक्षसी शक्ती की तो ऐसी कोई शक्ति तुमपर हावी नही, it all just mind game. सिजर्स, हेल्युशिनेशन, लेक ऑफ मूवमेंट
यह सब सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण है।

"लेकिन डोंट वरी, मेडिसीन के चलते सिजोफ्रेनिया कंट्रोल किया जा सकता है।"

"मेडिसीन से मैं पूरा ठीक नहीं हो सकता।"
"सिज़ोफ्रेनिया को कंट्रोल करना संभव है लेकिन पूरी तरह से ठीक नही हो सकता।"

"सिद्धार्थ मुझे तुम्हे कोई झूठी आशा नहीं देनी।
तुम्हे इसी बिमारी के साथ जिंदगी निकालनी होंगी।"


सिद्धार्थ डॉक्टर से पूछा, "मैं इस बीमारी के साथ कितने साल तक जिंदा रह सकता हूं?"

"प्रॉपर मेडिसिन, डायट और स्लीप के चलते तुम अपनी बीमारी के साथ लॉन्ग टाइम जिंदा रह सकते हो।"
साइकैटरिस्ट सिद्धार्थ में जीने की आशा जगाने का फर्ज निभा रहा था।

"क्या मैं इस बीमारी के साथ ही मर जाऊंगा, डॉक्टर?"

सिद्धार्थ, जब तक उपरवला नही बुलाता तब तक किसी का समय नहीं आता।
डरो मत। हर किसी के मरने के अलग-अलग कारण होते हैं। तुम्हारा पहले से तय है बस इसमे डरने की कोई बात नहीं।

जितनी जिंदगी तुम्हारे पास है उतना अच्छे से जीने की कोशिश करो जिंदगी बहुत छोटी है और हमें बहुत सारी चीजें करनी है तुम उन पर ध्यान दो बाकी सब ऊपर वाले पर छोड़ दो। तुम्हारे साथ आज तक जो भी कुछ हुआ जिन लोगो ने भी तुम्हारे साथ बुरा किया अगर उन्हें कोई कोई पछतावा नहीं तो तुम्हें
तो तुम किस बात का दुख लेकर जी रहे हो।

और अगर तुम परेशान भी होते हैं तो यह तुम्हारे शरीर के लिए अच्छा नहीं है।
बाकी हम मेडिसिन चालू रखेगे तुम्हे कुछ नही होंगा।

सिद्धार्थ इस बात बस सोच में पड़ गया, उसकी पूरी जिंदगी एक कल्पना है, एक भ्रम।

एक ताश का आशियाना एक गलती और सब आंखो के सामने बिखरते हुए वह देख रहा हो पर उसकी हिम्मत नहीं है फिर से उसे समेटने की।

"डोंट थिंक मच,सब ठीक होंगा बस ट्रीटमेंट चालू रखो।" साइकेट्रिस्ट ने वही घिसा पिटासा जवाब दिया।

"तुम कहा गए थे, मैं कबसे तुम्हारा फोन लगा रहा हु।
हमे दोपहर में निकलना है।
"
"जवाब क्यों नही दे रहे हो?और यह हाथ में क्या है?"
सिद्धार्थ के हाथ में ट्रीटमेंट की फाइल थी।
तुषार ने हाथो से फाइल लेकर फाइल पर का नाम पढ़ा "डॉ. वेद त्रिपाठी जनरल साइकैटरिस्ट एंड ट्रॉमा स्पेशलिस्ट।"
सिद्धार्थ ने दरवाजा बंद कर दिया।
भाई यह क्या लिखा है," आपको साइकेट्रिस्ट की क्या जरूरत है?" भाई दरवाजा खोलिए तुषार दरवाजे को पीट रहा था।

सिद्धार्थ बस बिस्तर पर अधमरा लेटा हुआ था।
पैर में जूते अभी भी थे सीलिंग की तरफ देख वह अपने जिंदगी को रिवाइंड कर के देख रहा था।

उसकी बिमारी उसे कभी भी ठीक नहीं कर पाएगी, उसे जीवन भर इसी बीमारी के साथ जीना होगा।
खुदको मार डालो और तुम लूजर हो।
यह आवाज़ महज़ एक हेल्युशिनेशन (मतिभ्रम)है।

वह अपने माता-पिता से कभी मिल नहीं पाएगा वह कभी एक अच्छा बेटा नहीं बन पाएगा, कभी शादी नहीं कर पाएगा किसी के साथ जिंदगी नहीं बाट पाएगा।
इन जैसे नेगेटिव विचारों से घिर हो गया था वो।

उसने खुद के लिए बहुत कुछ सोच कर रखा था वह बहुत बड़ा बनना चाहता था, नाम कमाना चाहता था।

जिन लोगों ने भी उसे अब तक तकलीफ दी थी उनको वह दिखा देना चाहता था की वह भी कुछ बड़ा कर सकता है।
लेकिन यह उसने कभी नहीं सोचा था।
तुषार दरवाजे पर आवाज लगा–लगा कर थक गया।

कुछ देर बाद सिद्धार्थ अपने आप दरवाजा खोल
बाहर आया।
तुषार इसी फिराक में था दोपहर के 2:00 बज चुके थे शाम 5:00 बजे की ट्रेन थी उनकी।

सिद्धार्थ ने दरवाजा खोलते तुषार भी अपने कमरे से बाहर आया।
"भाई आप साइकेट्रिस्ट के पास क्यों गए थे? क्या हुआ है आपको?आप बात क्यों नहीं कर रहे हैं? आपको तो पता है ना आज जाना है हमे।"
बहुत सारे सवालों की लड़ियां तुषार ने सिद्धार्थ के सामने खोल कर रख दी थी।

सिद्धार्थ ने बाकी सारे सवालों के जवाब ना देते हुए बस इतना कहा मुझे,"सिज़ोफ्रेनिया है।"
"यह क्या है?"

" एक दिमागी बीमारी।"

"मैंने तुम्हें पहले भी कहा था आज भी कह रहा हूं, तुम यहां जिस काम के लिए आए हो वो करो मेरे यहां पीछे आने से तुम्हें कुछ नहीं हासिल होने वाला।
बंगलुरु में वापस जाओ और अपनी डिग्री कंप्लीट करो।" सिद्धार्थ ने साफ–साफ बात बोल डाली।

इतना कहकर को कमरे में चला गया और कमरे में जाकर अपना बैग भरने लगा।

जो हाल कुछ समय पहले सिद्धार्थ का हुआ था वही हाल अभी तुषार का था। वह काफी सक्ते में आ गया था‌।
बस अपने बिस्तर पर बैठा हुआ था दिमाग में सिद्धार्थ ने कही गई बातों की टेप बार-बार चल रही थी।

5:00 बजने में अभी भी 2 घंटे बाकी थे तुषार कुछ भी सोचने समझने में असमर्थ था।

उसने लैपटॉप निकाला और पहली बार सिज़ोफ्रेनिया के बारे में सर्च किया।
जानकारी जानकर बहुत ज्यादा शौक में था वो।

सिद्धार्थ और तुषार अपनी-अपनी आत्मग्लानि(remorse) में जी रहे थे।

तुषार के दिमाग ने पहले ही कह दिया,
चले जाओ तुम बेंगलुरु वापस। अपने डिग्री कंप्लीट करो, वह भी वही यही चाहता है।
वह ज्यादा दिन का मेहमान थोड़ी है, तुम उसके साथ रहकर कुछ नहीं कर पाओगे।
वो एक दिमागी मरीज है वह तुम्हें भी पागल कर देगा।
वह बस अपनी सोच में डूबा रहा।

आखिरकार 4:15 हो गए।
सिद्धार्थ ने होटल में निकलने से पहले, तुषार की कमरे की तरफ देखा दरवाजा बंद था। वह समझ गया है यह उन दोनों की आखरी मुलाकात है।
उसे दरवाजा खटखटाकर बुलाने की भी हिम्मत नहीं हुई उसकी।
वो वहां से चला गया।

ऐसा होता की कुछ कहानियां तभी खत्म हो जाती जब हम चाहते लेकिन हमारा चाहा कहां भगवान को कहा मंजूर है।
शरीर सिर्फ दिमाग के ऊपर थोड़ी ना निर्भर है।

अगर ऐसा होता तो ठीक 5:00 बजने के 10 मिनट पहले सिद्धार्थ को तुषार एंट्री गेट से आते हुए नहीं दिखता।

सिद्धार्थ तुषार को आते हुए देख रहा था उसे बार-बार लग रहा था कि तुषार उसके पास हो लेकिन जो वह सच में आते हुए दिखाई दिया तो उसे डर लगा की यह भी तो उसका हेल्युशिनेशन तो नहीं।

लेकिन जब हांफता हुआ तुषार उसके पास आकर बैठा तो यह हकीकत जानकर उसके मन को तसल्ली हुई।
तुषार सिद्धार्थ से बोला, "क्या भाई एक बार तो बोल दिया होता कि जा रहे हो, आवाज़ तो लगा दी होती।"
होटल के स्टाफ से पता चला कि आपने चेक–आउट कर लिया है, हम तो दोनों एक साथ निकलने वाले थे ना।

तुषार उसके पास है और उससे बातें कर रहा है, यह बात सिद्धार्थ को यकीन ही नहीं हो रही थी।

"मुझे पता है आपको सिज़ोफ्रेनिया की बीमारी है, लेकिन उससे मुझे क्या? जब तक जिंदा है तब तक एक साथ रहेंगे वैसे भी फ्यूचर किसने देखा है। "

सिद्धार्थ ने तुषार को पहली बार गले से लगा लिया।
बाकी आने–जाने वाले लोग उन पर ही ध्यान दे रहे थे।
तुषार पीठ पर हाथ से लाते हुए, "कितना डरते हो भाई आप ,मैं हूं ना।"
दोनों आखिरकार शिमला की ट्रेन में बैठ गए।

और वहीं दूसरी तरफ तुषार अपनी यादों की ट्रेन से नीचे उतर गया जब नर्स वहा सिद्धार्थ की I.V. बदलने आयीं।
आंखें मसल कर पूरी तरह उठ गया तो उसने देखा, सिद्धार्थ अभी भी बेहोश ही है।