शायरी - 13 pradeep Kumar Tripathi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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शायरी - 13

ककौन ढूंढे गा हमे इस भीड़ भाड़ भरे वीराने में,
ऐ मौत बस तू मेरा साथ मत छोड़ना।।

महगे के चक्कर में सस्ता ले लिया
मौत अच्छी थी ये क्या हमने जिंदगी का रास्ता ले लिया


आप तो हर दम मुस्कुराते हैं, क्या कहें
जो हजार गम है उसे छुपाते हैं, क्या कहें
दिल की कुछ बात नहीं कह सकते हैं, क्या कहें
लोग उड़ाने लगतें हैं मजाक, क्या कहें

हम आपके शहर में आए हैं,
आप अपना समझो या बेगाना।
कभी आप आइए हमारे शहर में,
वहां आपको सभी अपने मिलेंगे।।


आइना हो या आंखें धुंधला, रोने या धोने से हीं दिखता है।।

कोई मोहब्बत कोई नशा कोई खुमार न आए,
खुदा करे किसी को किसी पे प्यार न आए।
हर जख्म हर नशा हर नसीहत चली जाए,
अगर प्यार हो जाए तो फिर इस जहां में कहा जाए।।


कुछ दिन रहना है दुनिया में,
तो कुछ इच्छाओं को शेष रखो।
वरना जिसका सब हो जाता है,
वह फिर शव हो जाता है।।

।। बेबसी के नगमे।।

हम अपनी बेबसी का, एक नगमा लिख रहे हैं।
हम आप की हंसी का, एक नगमा लिख रहे हैं।।
हम मौत के करीब है और क्या क्या लिख रहे हैं।
जिसने ज़हर दिया है हम उसे खत लिख रहे हैं।।1।।

हम तुम मिले थे जिस दिन कमल खिल रहे थे।
हम तुम अब बिछड़ रहे हैं तो खत लिख रहे हैं ।।
हम तुम मिले थे जिस दिन चांदनी बिखर गई थी।
जाते जाते आप को हम खत बेखबर लिख रहे हैं।।2।।

हम तुम मिले थे जिस दिन वो कौन सी घड़ी थी।
दिल भी रहा न मेरा तुम भी रहे नहीं हो।।
हम तुम थे उस डगर पर जो आपस में न मिल रहे हैं।
शायद इसी लिए अब हम तुम बिछड़ रहे हैं।।3।।

हम तुम मिले तो वादे किए थे बहुत कुछ।
अब एक वादे पे हम तो चल रहे हैं।।
आप अपने वादे पे कब के चले गए हैं।
हम तो बस आखिरी आखिरी निभा रहे हैं।।4।।

हम तुम मिले तो खुशियां आई हजार बन के।
अब हम बिछड़ रहे हैं तो हजारों जा रही हैं।।
आप तो मसरूफ है अब अपने सजन में।
हम इस कलम से आखरी नमन कर रहे हैं।।5।।

हमारी जो बातें होंगी जो इस शहर में।
हे भगवान तुम्हें बेवफ़ा न कोई कह दें।।
इस लिए ये आखिरी खत इस शहर में।
अखबार में हम इश्तिहार दे रहे हैं।।6।।

बस एक आखरी हम खता कर रहे हैं।
कफन में हम एक नगमा ले जा रहें हैं।।
वो जो तुमने दी थी बड़ी मिन्नतों में।
वो तस्वीर दिल में दबा ले जा रहें हैं।।7।।

हम अपनी बेबसी का एक नगमा लिख रहे हैं।
हम आप की हंसी का एक नगमा लिख रहे हैं।।


हमसे मत पूछो सांप के काटे का इलाज।
हम खुद आस्तीन के काटे हुए से मरे हैं।।

अब तो नही रहा खुद के बाजुओं पर भी यकीन।
लोग यहां एक भाई को दूसरे को सुपारी दे देते हैं।।

आप हमसे पूछते हैं हम क्यों मरना चाहते हैं।
जिंदगी अच्छी चल रही बस सौख पूरे हो गए हैं।।

अच्छा हुआ जो हमें यकीन नहीं है दोस्तों पर।
नही तो आज एक नया दुश्मन तैयार होता।।
हमने रखे थे मरीजे इश्क की दवा छुपा कर।
उसको जो मिल गया होता तो वो अभी फरार होता।।