नेकी कर दरिया में डाल
एक बहुत पुरानी कहावत है - नेकी कर दरिया में डाल . पर कहने सुनने में यह जितना आसान है व्यावहारिक जीवन में इंसान के लिए यह उतना ही कठिन है . इसके लिए इंसान का दिल बहुत बड़ा होना चाहिए यानि दरियादिल होना चाहिए . इस संदर्भ में इस लेख में कुछ ऐसे लोगों के बारे में लिखा गया है जिन्होंने कुछ महत्वपूर्ण आविष्कार तो किया है पर अपने निजी लाभ के लिए जानबूझ कर इसका पेटेंट नहीं कराया . उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि दुनिया के हर कोने में बसे लोग अपने जीवन में इसका लाभ उठा सकें अन्यथा इसका पेटेंट कर आसानी से वे अरबों रूपये कमा कर धनी बन सकते थे . ऐसे लोगों का मानना था कि निजी प्रॉफिट से ज्यादा जरूरी है कि मानवता को सुख और लाभ पहुंचे .
ऐसे ही कुछ लोग हैं -
पेनिसिलिन
1 फ्लेमिंग - पेनिसिलिन को दुनिया का सर्वप्रथम एंटीबायोटिक कहा जाता है . वैसे तो इस ब्रिटिश वैज्ञानिक ने पहली बार 1928 में इसका आविष्कार किया . इसमें कुछ और शोध करने के बाद पहली बार 1941 में रोगी पर इसका उपयोग हुआ . पेनिसिलिन के लिए फ्लेमिंग के साथ फ्लोरे और चेन को मेडिसिन और फिजियोलॉजी का नोबेल पुरस्कार 1945 में दिया गया . लगभग 75 वर्षों तक इसका पेटेंट नहीं किया गया था और आज भी पेटेंट नहीं है पर इसके मास प्रोडक्शन की विधि को आगे चल कर मोयर ने पेटेंट किया . इस लाइफ सेविंग दवा के पेटेंट के विषय में फ्लोरे और चेन ने कहा था कि ऐसा करना अनैतिक होगा .
पोलियो टीका
2 . जोन्स साल्क - 19 वीं सदी के अंत और 20 वीं सदी के मध्य तक दुनिया में पोलियो रोग के चलते लाखों बच्चे अपंग हो रहे थे . तब तक इसकी कोई दवा या टीका उपलब्ध नहीं था . 1950 के आरम्भ में अमेरिकी वैज्ञानिक जोन्स साल्क ने दुनिया के प्रथम पोलियो टीका का आविष्कार किया . पर इसे आम जनता के बीच लाने के पहले 1953 में उन्होंने स्वयं पर और अपने परिवार के अन्य सदस्यों पर इस टीके का परीक्षण किया . परिणाम सफल होने पर 1955 में इसके प्रोडक्शन का लाइसेंस दिया गया . उन दिनों अकेले अमेरिका में करीब 60000 पोलियो के केस प्रति वर्ष होते थे जो 1961 तक मात्र 160 रह गए और जल्द ही यह शून्य हो गया .
जोन्स सल्क इसके लिए स्वयं सुर्ख़ियों में नहीं आना चाहते थे . उन्हें इस टीका को अपने नाम पेटेंट कराने की सलाह दी गयी जिस से उन्हें करीब 700 करोड़ डॉलर का लाभ होता . पर जन कल्याण के हित में उन्होंने इसे पेटेंट नहीं कराया और कहा था - “ there is no patent . Could you patent the sun ? “
ORS
3 . दिलीप महानालबिस - 1964 में अमेरिकी कप्तान फिलिप ने फिलीपींस में ग्लूकोज़ सेलाइन का कॉलरा के दो रोगियों पर इस्तेमाल किया था और इस से उन्हें लाभ मिला . इस पर ढाका और कलकत्ता ( अब कोलकाता ) के वैज्ञानिकों ने आगे अनुसंधान किया और आज का ORS ( ओरल रिहाइड्रेशन साल्ट ) पाउडर बनाया . दरअसल 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय लगभग एक करोड़ शरणार्थी भारत के कैम्पों में थे और बरसात के दिनों में उन के बीच कॉलरा का भीषण प्रकोप छाया हुआ था . उन्हीं दिनों डॉ दिलीप महानालबिस ने इस ORS को खोज निकाला . इसके उपयोग से तत्काल कैंप के हजारों शरणार्थियों को लाभ मिला और अब तक दुनिया में करीब 6 करोड़ लोग डिहाइड्रेशन से बचे और उन्हें जीवन लाभ हुआ है . डॉ दिलीप ने भी अपने ORS का पेटेंट नहीं करा कर अपनी निःस्वार्थ सेवा भाव का उदाहरण दिया है .
माचिस
4 . जॉन वॉकर - अति साधारण दिखने वाली माचिस की तीली की उपयोगिता आज दुनिया के प्रायः हर घर में है . इसका आविष्कार आज से करीब 200 वर्ष पहले एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जॉन वॉकर ने 1824 में किया था . सल्फर के पेस्ट को जब उन्होंने एक रफ़ सरफेस पर रगड़ा तब चिंगारी निकली और उसके कुछ ही दिनों के बाद वे अपनी माचिस बना कर बेचने लगे थे . पर वॉकर ने कभी भी इसका पेटेंट करा कर लाखों कमाने की बात सोचा भी नहीं .
इंटरनेट
5 . टिम बर्नर्स ली - . आज जिस www का उपयोग हम अपने कंप्यूटर या स्मार्ट फोन आदि पर करते हैं उसके जनक टिम बर्नर्स ली हैं .टिम ली एक ब्रिटिश कंप्यूटर वैज्ञानिक हैं . 1980 में उन्होंने world wide web ( www ) का आविष्कार किया था . वे चाहते तो इसका पेटेंट कर करोड़ों डॉलर के स्वामी हो सकते थे . पर उन्होंने दुनिया को यह फ्री में दिया ताकि लोग एक दूसरे से जुड़ कर अपनी बातें या डाक्यूमेंट्स शेयर कर सकें . उन्होंने मात्र एक HTTP ( हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल ) बनाया और आप जब इंटरनेट का प्रयोग कर किसी वेबसाइट पर जाना चाहते हैं तो https // www लिख कर उस साइट में प्रवेश करते हैं . इसके लिए टिम बर्नर्स ली को 2004 में ब्रिटिश नाइट की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था .
ऑप्टिकल फाइबर
6 . चार्ल्स कुएन काओ - चार्ल्स कुएन काओ चीनी मूल के हांगकांग के नागरिक थे . 1960 में उन्होंने शीशे के ऐसे भौतिक गुणों की खोज की जिसके चलते आगे चल कर ऑप्टिकल फाइबर का निर्माण हुआ . इसके पहले किसी ने कल्पना भी नहीं किया था कि ऑप्टिकल फाइबर सूचना प्रणाली में एक ऐसा बदलाव लाएगा कि महंगे कॉपर वायर की जगह ऑप्टिकल फाइबर हाई स्पीड डेटा कम्युनिकेशन में एक क्रांति ला सकती है . काओ ने अपनी खोज को पेटेंट नहीं किया . कुछ वर्षों के उपरांत इसी सिद्धांत पर ऑप्टिकल फाइबर का निर्माण कर दुनिया हाई स्पीड कम्युनिकेशन सिस्टम का लाभ उठा रही है . 2009 में काओ , अमेरिकी वैज्ञानिक जॉर्ज स्मिथ और कैनेडियन वैज्ञानिक विलिअर्ड बोएल को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया . 2010 में काओ नाइट ( sir ) की उपाधि से भी सम्मानित किया गया .
सॉफ्टवेयर
7 . रिचर्ड स्टॉलमन - रिचर्ड स्टॉलमन एक अमेरिकी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं जिन्होंने फ्री सॉफ्टवेयर फाउंडेशन की स्थापना की है . 1983 में रिचर्ड ने पहला GNU प्रोजेक्ट लांच किया जो UNIX की तरह एक कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम ( OS ) था . इसी के साथ रिचर्ड ने फ्री सॉफ्टवेयर मूवमेंट भी चलाया और सॉफ्टवेयर को पेटेंट नहीं करने पर जोर दिया हालांकि 1985 में उन्होंने कॉपीराइट का आईडिया भी दिया ताकि सॉफ्टवेयर में कोई छेड़छाड़ या बदलाव न कर सके .
कराओके ( Karaoke )
8 . डेसके इनोवे - 1971 में जापानी डेसके इनोवे ने पहले कराओके ( Karaoke ) मशीन का आविष्कार किया था और उसका पेटेंट नहीं कराया . आगे चलकर रोबर्ट डी रोसारिओ एक फिलिपिनो ने कुछ सुधार कर अपने कराओके मशीन का पेटेंट कराया .
स्माइली
9 . हार्वे रॉस बॉल - हार्वे एक अमेरिकी एडवरटाइजिंग कंपनी के मालिक थे जिन्होंने 1963 में स्माइली फेस ( इमोजी आइकन Smiley ) का आविष्कार किया . उन दिनों अमेरिका की एक इंश्योरेंस कंपनी का विलय किसी दूसरे कंपनी में हुआ था जिसके चलते इंश्योरेंस कंपनी के कर्मचारियों का मनोबल बहुत गिर गया था और इसी के लिए कंपनी ने हार्वे से सुझाव मांगी . उन्होंने इसके लिए स्माइली फेस इमोजी बनाया पर इसका कोई पेटेंट , ट्रेडमार्क या कॉपीराइट का कभी प्रयास नहीं किया .
मैग्नेटिक स्ट्रिप
10 . रोन क्लीन -आपने बैंक के ATM कार्ड , क्रेडिट कार्ड , डेबिट कार्ड , ड्राइविंग लाइसेंस , होटल रूम लॉक आदि के पीछे मैग्नेटिक स्ट्रिप देखा होगा . पहली बार इसका आविष्कार 1966 में रोन ने किया था पर उन्होंने इसका पेटेंट नहीं कराया . मैग्नेटिक स्ट्रिप का इस्तेमाल पूरी दुनिया करती है हालांकि अब कार्ड में चिप भी आने लगे हैं .
इनके अतिरिक्त और भी ऐसे उदाहरण हैं .