दानी की कहानी
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जब दानी गुजरात में आईं उन्होंने बहुत सी नई चीज़ें देखीं । महसूस कीं और उन्हें आश्चर्य भी हुआ |
हम कैसे जान सकते थे ,उन्होंने अपने आप ही हमें बताया था इसीलिए पता चला |
हम उनके बारे में बहुत सी बातें जानते थे ,जानते थे कि वे बचपन में बहुत शरारती थीं लेकिन सब उनको बहुत प्यार करते थे क्योंकि वे बहुत सभ्य व सबका कहना मानने वाली थीं |
शरारत पर वे हमें भी कुछ नहीं कहतीं लेकिन उनका कहना था कि शरारत करने के लिए तहज़ीब होनी चाहिए |हमें पता होना चाहिए कि हम किसके साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं ?
अब तो उनकी कई पीढ़ियाँ यहाँ रहती हैं,सब गुजराती बोलते हैं ,वे पुराने समय की बात शेयर करती रहतीं हैं |
बच्चों को वे सब बातें कहानियाँ सी लगतीं और वे उनके माध्यम से बहुत कुछ सीखते भी जाते |
बच्चे अपनी किसी बात के पूरी न होने पर अपनी एक मीटिंग बुला लेते हैं |उनमें घर के बच्चे भी होते हैं और आस-पड़ौस के बच्चे भी |
पिछले दिनों स्कूल में मीनू जी की किसी से लड़ाई हो गई |अब जब घर में लड़ाई की बात बताई जाती है तो सब कहते हैं ;
"ऐसा हो ही नहीं सकता कि तुमने कुछ न किया हो,अकेले एक बंदा लड़ाई कैसे कर सकता है?"घर के बड़े लोग तो यही कहते हैं |
अब बच्चा बेचारा क्या बताए कि उसने कुछ नहीं किया |वैसे ऐसी बात नहीं है ,बच्चा कोई भी क्यों न हो शरारती तो होता ही है |
होना भी चाहिए ,आखिर वह बच्चा है | लेकिन सारी बात दूसरे पक्ष पर डाल देना भी तो अच्छी बात नहीं है न !
सो,मीनू जी ने एक मीटिंग बुलाई ,सब बड़े-छोटे बच्चों की ,परिवार और उन सब बच्चों की जिनके साथ वे सब रोज़ खेलते हैं |
मीटिंग में हुई खुसत्र-फुसर शुरू !
जितनी जिसकी उम्र और अनुभव ,वैसे उसके विचार !
तय हुआ कि बड़े बच्चे जाकर उस बच्चे को स्कूल में पकड़ेंगे और उस बच्चे से पूछेंगे कि आखिर ऐसा करता क्यों है?
दानी की तो जैसे आँख,नाक --जैसे सब सी.आई.डी की सेना हैं |
उनके सामने बात न भी करो तब भी न जाने कैसे उन्हें पता चल ही जाता है कि कुछ तो गड़बड़ है ही |
उन्हें पता चल गया कि इस दिन ,ये बड़े बच्चे मीनू जी का कोई झगड़ा सुलटाने जा रहे हैं |
मज़े की बात यह कि बात क्या थी वह दानी को इस बार पता नहीं चली थी ,बस यह पता चला था कि अगले दिन परेड का रुख मीनू के स्कूल की ओर है |
दानी के साथ सब बच्चों की ही मित्रता थी इसलिए उन्होंने यह कह रखा था कि वे अपने मम्मी-पापा से डरते भी हों तो भी उन्हें बात बता सकते हैं |
हर बार वे बता भी देते थे लेकिन इस बार ऐसी क्या बात हुई कि बच्चों ने उन्हें बताया नहीं और अपने आप स्कूल में जाने की बात तय कर ली |
दानी भी कहाँ कम थीं | समय उन्हें पता चल ही गया था कि किस समय बच्चे मीनू के स्कूल में पहुंचेंगे |
ज़रूर ये बच्चे लड़ाई करके आएंगे ,दानी ने सोचा और उसी समय मीनू के स्कूल जा पहुंचीं जिस समय सब बच्चे पहुँचने वाले थे |
पता तो चले ऐसी क्या बात हो गई कि मीनू इतनी बिफरी हुई है | चौथी कक्षा में पढ़ने वाली मीनू कई दिनों से बड़ी सुस्त सी होकर आती थी स्कूल से |
दानी ने देखा ,सब बच्चे एक दूसरी मीनू के बराबर की छोटी बच्ची को घेरकर खड़े हुए हैं | वह बेचारी रो जा रही थी और मीनू अपने दोस्तों से बता रही थी कि यह लड़की चोर है |
आखिर दानी से रहा नहीं गया ,वे बच्चों के समूह में गईं | उन्होंने रोती हुई बच्ची के पूछा क्या बात है ?
सारे बच्चे दानी को देखकर सहम गए थे |उन्होंने बचपन से सिखाया जो था कि लड़ाई करने से पहले पूछ तो लो किसी ने ऐसा किया क्यों?
"आप क्यों आईं दानी ---?" सुमोद सातवीं में पढ़ते थे और इस वाले ग्रुप के बड़े भैया थे |
"बेटा !तुमने मीनू का कुछ चोरी किया है क्या ?" उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और रोती हुईबच्ची से पूछा |
कमाल हैं दानी भी !उस लड़की से पूछ रही हैं और मीनू से कुछ नहीं जो बेचारी रोज़ उदास होकर आती है |
दानी के कई बार प्यार से पूछने पर उस बच्ची ने बताया कि वह चोरी कर रही थी |
"मैं नहीं कह रही थी ,मैं झूठ तो नहीं बोल रही थीं सुमोद भैया ----"
बच्ची ने जब मान लिया तो मीनू जी और भी उत्साह में आ गईं |दानी ने उसको बोलने से रोका जो बच्चों को अच्छा नहीं लगा |
"क्या चोरी किया ?" दानी ने बच्ची से पूछा |
"अचार ---" उसने रोते हुए बताया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी |
"दानी!वो वाला अचार रोज़ मेरे लंच में से चुरा लेती है जो आपने खास तौर से मेरे लिए डाल कर रखा है | महाराज रोज़ लंच में मेरी सब्ज़ी के साथ वो अचार रखते हैं और यह रोज़ाना चुरा लेती है|" मीनू ने गुस्से से कहा |
दानी को बच्चों की बात पर हँसी भी आई 'खोदा पहाड़ ,निकली चुहिया' लेकिन उन्होंने अपनी हँसी रोककर बच्ची से पूछा ;
"ऐसे चोरी करना तो अच्छी बात नहीं है फिर तुम ऐसा क्यों कर रही हो?"
बच्ची और भी सुबक-सुबककर रोने लगी |पता चला,वह बच्ची और मीनू बहुत अच्छे दोस्त थे और साथ में खान खाते थे |किसी बात पर दोनों बच्चियों की लड़ाई हो गई और मीनू ने उसे अचार देना बंद कर दिया |उसने मीनू के लंच में से चुपके से अचार निकालना शुरू कर दिया |
"बेटा! बात तो चोरी की है न ,चोरी छोटी हो या बड़ी --चोरी तो चोरी है --तुम्हारी मम्मी ने नहीं बताया -" दानी ने बच्ची को प्यार से समझाया |
"मेरी मम्मी नहीं हैं न ---" वह दानी से चिपटकर रोने लगी |
दानी ने उसे बहुत प्यार से अपनी गोदी में बैठाया और बताया कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए ,नहीं तो मम्मी जहाँ भी होंगी उनको दुख होगा न !
दानी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि उस बच्ची को किन शब्दों में समझाएँ ?छोटी सी मातृ विहीन बच्ची कैसी बिलखकर रो रही थी !और ये बच्चे भी आखिर बच्चे ही तो थे ,उन्हें कैसे समझ आता कि दोनों में कैसे सुलह करवाएँ ?
दानी ने मीनू और उसके हाथ पकड़कर दोस्ती करवाई |सब बच्चों को समझाया कि छोटी छोटी बातों पर झगड़ा कर लेना अच्छी बात नहीं है |
उस समय छुट्टी हो चुकी थी और बच्ची का ड्राइवर उसे लेने आ गया था |
दानी ने बच्ची को प्यार किया और समझाया तो वह समझ गई लेकिन उसकी माँ न होने की पीड़ा दानी समझ पा रही थीं |
अगले दिन दानी ने सेवक भैया से अचार की एक बॉटल तैयार करवाई और मीनू को लेकर उसके घर पहुंचीं |
दानी को देखते ही बच्ची आशी खुशी से नाच उठी | दानी ने अचार की बड़ी बॉटल परिवार के महाराज को देकर कहा कि बिना भूले हुए वे आशी के लंच में अचार रखेंगे |
बच्ची आशी के पिता भी वहीं मौजूद थे |उन्होंने दानी का स्वागत किया |दानी आशी के पिता से बात करने लगीं |
उन्होंने देखा कि मीनू और आशी ऐसे खेल रहे थे जैसे कभी झगड़े ही न हों |
दानी ने आशी के पिता से कहा कि वे आशी को उनके घर भी कभी कभी भेजा करें |आशी अकेली पड़ रही थी और कुछ गलत बातें भी सीख सकती थी |
इस प्रकार बच्ची दानी के दूसरे बच्चों में मिल गई | एक दूसरा घर उसे मिल गया और दानी के रूप में एक अच्छी मित्र व गाइड भी |
अब इतने वर्षों बाद भी उन दोनों की दोस्ती बदस्तूर है और दानी आशी के लिए भी अचार बनवाना नहीं भूलतीं |
ऐसी हैं हमारी दानी जो सबको प्यार से अपना बना लेती हैं |
डॉ. प्रणव भारती