दानी की कहानी - 36 Pranava Bharti द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दानी की कहानी - 36

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इस बार बहुत दिन बाद सारे बच्चे इक्कठे हुए थे। जैसे-जैसे बड़े होते जा रहे थे, कोई हॉस्टल में कोई दूसरे शहर में कॉलेज में पढ़ने जाने लगे थे। फिर भी दानी के बिना उनका दिल न लगता।

हाँ,अभी चुनमुन, तनु, चुटकी ---थे तीन / चार परिवार के बच्चे जो चाहते कि दानी उनके पास ही रहें। दानी ने हरिद्वार में अपने लिए एक जगह बना ली थी जहाँ उन्हें कई दोस्त मिल गए थे। वे सब साथ में मिलकर घूमने जाते, और बढ़ती उम्र में भी बहुत मस्ती से रहते।

दानी की एक मित्र बहुत अच्छी संगीतकारा रही थीं तो एक मित्र लेखन से जुड़ी हुई थीं और एक अपनी युवावस्था में नृत्य से जुड़ी रही थीं। जब सब मित्र मिलते, जैसे उनके पुराने दिन लौट आते।

स्वाभाविक होता है कि उम्र बढ़ने के साथ सबमें बदलाव आते हैं और शरीर कुछ कमजोर पड़ने लगता है लेकिन बच्चों को कहाँ ये सब बातें समझ में आती हैं ?

दादी हरिद्वार या और कहीं भी जाने की बात करतीं तो बच्चे शोर मचाने लगते इसलिए दानी को उनके पास ही रुक जाना पड़ता।

"दानी ! आप अपने फ्रेंड्स को यहाँ बुला लिया कीजिए न, आप क्यों हमें छोड़कर जाती हैं ?"बच्चे ठुनकने लगते। इस बार जब छुट्टियों में बड़े बच्चे भी आए और सबने मिलकर दानी को ज़बरदस्ती बुला ही लिया।

"बच्चों ! जैसे आपके दोस्त हैं न, मेरे भी तो दोस्त हैं तो मुझे अपने दोस्तों के पास नहीं रहना चाहिए ?दानी ने बच्चों से पूछा।

"अरे ! तो आप उनको भी लेकर आ जाइए न !" चुटकी ने कहा तो सब हँस पड़े ।

"वैसे हम कोई अपने दोस्तों के पास थोड़े ही रहते हैं !"चुनमुन जी भी बोलीं।

"हाँ,तो ---हम लोग तो एक दिन में शाम को ही मिलते हैं न !हमेशा उनके साथ तो रहते नहीं हैं। "

बच्चे भी न, अनोखे ही होते हैं।

कोई भी बात उनके मन कि न हो ,सारे मिलकर मीटिंग करते हैं, बड़े भाई-बहनों को अपने साथ मिला लेते हैं | फिर देखो, उनके करतब !

"दानी, आप अभी तो कहीं नहीं जा रही हैं न ? "

"नहीं बाबा, अभी कहीं नहीं जा रही हूँ ---क्या हुआ ?"

"हा--हा--हा--हा---" चुनमुन और चुटकी ने ज़ोर ज़ोर से हँसना शुरू कर दिया। उन्होंने तनु को इतना चिढ़ाया कि दानी को भी समझ नहीं आ रहा था कि भई आखिर बात क्या हो गई। वो दोनों तनु को अंगूठा दिखा रही थीं।

तनु खिसिया रही थी, उसकी आँखों में आँसु भर आए।

"बात तो बताओ "दानी ने पूछा।

"इसने शर्त लगाई थी कि दानी जाएंगी, अभी यहाँ नहीं रहेंगी। हमने इसे कहा था कि दानी नहीं जाएंगी लेकिन यह तो अड़ ही गई --अब बोलो --तुमने कहाँ से सुन लिया, ए--ए--"उन्होंने उसे अंगूठा दिखाकर फिर चिढ़ाया।

"ऐसे नहीं चिढ़ाते, छोटी बहन को ----" दानी ने तनु को अपनी गोदी में समेट लिया।

"इसने झूठ नहीं कहा ---" दानी ने बच्चों को समझाया।

"मैं ---वो जो मेरी दोस्त हैं न अल्पना दादी, मैं उनसे बात कर रही थी, इसने सुन लिया होगा। तुम तो जानते ही हो मेरा जाने का प्रोग्राम था ---। "

"आप तो कहती थीं कि अभी यहीं रहेंगी।"

" हाँ, कह रही थी लेकिन - - - - "

" यानि आप अपनी बात से मुकर गईं?

" मुकर गईं---मतलब? दानी, बताइए न" तनु छोटी थी, समझ नहीं पा रही थी।

"इसे ये भी नहीं पता चला - - खी--खी--" उस बेचारी को फिर से चिढ़ाने लगे थे दोनों।

"देखो बिटिया, आज तुमने नया सीखा।" दानी ने समझाया।

तनु ने प्रश्नवाचक दृष्टि से पूछा।

"मुकरना यानि अपनी बात कहने के बाद पलट जाना यानि बात पर कायम न रहना, दूसरे - - अँगूठा दिखाना यानि चिढ़ाना - - - सीखे न दो शब्द?"

तनु तुरंत खुश हो गई। उसने दो नई बातें सीख ली थीं।

" दानी, और - - -  "तनु ने कहा।

"नहीं बेटा, आज के लिए इतना ही। एक साथ सब सीखने की कोशिश सब कुछ भुला देती है।" दादी ने मुस्कुराकर कहा।

दानी बच्चों को बातों-बातों में कितनी नई बातें सिखा देतीं। बच्चे खेलते कूदते ही कितनी नई बातें सीख जाते हैं खुश रहते हैं, वो अलग !

डॉ.प्रणव भारती