भालू नाच Dr. Suryapal Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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भालू नाच

1859 ई० । गर्मियों के दिन सत्तावनी क्रान्ति दबा दी गई। आज कुछ इसकी असफलता पर प्रसन्न हैं कुछ दुखी। सबके अपने तर्क हैं कुछ कुतर्क भी। कुछ इसे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन नहीं मानते, कुछ इसे स्वतंत्रता का आन्दोलन स्वीकार करते हैं। गोनर्द का क्षेत्र सबसे बाद में अंग्रेजों के कब्जे में आ पाया। आन्दोलनकारियों और अंग्रेजों के बीच लमती ( जनपद गोण्डा उ०प्र०) का युद्ध 1858 के अन्तिम समय में लड़ा गया। इसी के बाद राजा देवी बख्श तुलसीपुर की रानी ईश्वरी देवी आदि हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र दांग देवखुर चले गए। बेगम हजरत महल बिरजीस कद्र के साथ इसी दुर्गम क्षेत्र में आ गईं।
लमती की जीत के बाद अंग्रेजों ने बागियों को पकड़कर फांसी पर लटकाया । शरीर को चीर दिया। जगह-जगह पेड़ से लोग लटका दिए गए। छावनी (वर्तमान बस्ती जनपद) में एक पेड़ से डेढ़ सौ लोगों को लटका दिया गया। अनेक नौजवान भागे फिरते । नैराश्य के इस परिवेश में लोक गायक लोगों में उत्साह भरते । सत्तावनी क्रान्ति के लोकनायकों का स्मरण कराते चाहे वे विन्ध्य प्रदेश के हर बोले हों या हमारा कालू । कालू स्वांग के माध्यम से जनता को जगाने का प्रयास करता है। देखो कालू अपने भालू के साथ आ रहा है ।
कालू की पीठ पर झोरी है। कन्धे पर एक अँगोछा लटक रहा है। एक हाथ में छपका तथा पीछे-पीछे आने वाले भालू की डोरी तथा दूसरे में डुगडुगी । गांव में प्रवेश करते ही कालू की डुगडुगी बज जाती है। डुगडुगी की आवाज़ सुनकर छोटे बच्चे और किशोर किशोरियाँ भाग कर आते हैं। गांव के बीच में थोड़ी जगह देखकर कालू रुक जाता है। डुगडुगी को झटक कर बजाता है। बच्चे भागते हुए आते एवं घेर कर खड़े होते हैं । कालू की डुगडुगी और तेज हो जाती है । भालू को देखकर बच्चों के चेहरे खिल उठते हैं। बच्चों के शरीर पर कपड़े कम हैं। कुछ केवल लंगोटी ही पहने हैं।
कालू ने झोरी जमीन पर रख दी। छपके को फटकारते हुए डुगडुगी बजाकर हुंकार भरी तो साथियों, बच्चों, बहनों, भाइयों आप देखें मेरे भालू चन्दू और मेरा स्वांग | मेरा यह चन्दू लखनऊ के नवाब के यहां पला बढ़ा है। जब नवाबी गई तो इसे भी भागना पड़ा। मेरे पल्ले पड़ा और अब इस पापी पेट के लिए गांव गांव नाचता है तो चन्दू तैयार हो जा। बच्चे, बहनें भाई लोग तेरा खेल देखने के लिए तैयार हैं। तो भैया लोग सुनो अयोध्या से बस्ती जाने वाली सड़क पर छावनी में एक पेड़ के नीचे डेढ़ सौ लोगों को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
हाँ डेढ़ सौ लोगों को लटका दिया गया। न कोई नियम, न कानून, न अदालत, न न्याय। उनका जुर्म इतना ही था कि वे अपनी आज़ादी माँग बैठे थे। उसके लिए बन्दूक उठा लिया था।
भाई लोगो माताओं बहनों, उन डेढ़ सौ लोगों में कितनों को यह भी पता नहीं था कि वे क्यों पकड़ लिए गए हैं। सज़ा देने वाले को भी शायद उनके गुनाह का पता न था। पर लटका दिए गए डेढ़ सौ लोग। पशु पक्षी भी फड़फड़ाए पर क्या करते।
मैंने जब चन्दू को बताया। इसने खाना पीना छोड़ दिया। (चन्दू
गमगीन मुद्रा में बैठ जाता है ।)
मैंने बहुत समझाया.........
बहुत समझाया तब जाकर पानी पिया। ( कालू एक कटोरे में पानी रखता है समझाता है धीरे-धीरे चन्दू पानी पीता है। बच्चे तालियां बजाते हैं। कालू छपका फटकारते हुए डुगडुगी बजाता है।) तो भाइयो गांवों में जाओ तो बच्चे, बूढ़े और औरतें ही मिलतीं। नवजवान दिन में सिवानो, जंगलों में शरण लेते। क्या करें? जाने कब पकड़ लिए जाएं और उन्हें विद्रोही बताकर फांसी पर चढ़ा दिया जाए? लाल पगड़ी देखकर डर जाते लोग। भय से कांप उठते । चन्दू बताएगा कैसे लोग कांपते हैं। (चन्दू कांप कर दिखाता है। कालू छपका फटकार कर डुगडुगी बजाता है। बच्चे तालियां बजाते हैं ।)
भाइयो, बहनों ये विद्रोही कौन है ? वही जो अंग्रेजी आका के खिलाफ खड़े हो गए हिन्दू-मुसलमान, सिपाही किसान, मजदूर राजा तालुकदार तुलसीपुर की रानी ईश्वरी देवी, गोंडा के महाराजा देवी बख्श, बूढ़ा पायर के अशरफ बख्श, चर्दा के जगजोत सिंह किस किस का नाम लें। वे सोचते थे अंग्रेजी सेना को भगा देंगे। सत्तावनी क्रान्ति के अन्तिम चरणों में गोनर्द का यह इलाका ही अंग्रेजों को चुनौती दे रहा था। हजारों लोग लमती के मैदान में इकट्टा हो गए राजा का साथ देने के लिए। भयंकर युद्ध हुआ। बहुत भयंकर पर क्या बताऊँ मालिक लोग ? काबुल में गधे भी होते हैं। तो कुछ लोग अंग्रेज सरकार से मिल गए। तो कौन मिल गए भैया लोगो ? यह हमारा चन्दू नाच नाच कर बताएगा। ( चन्दू कालू के संकेत पर दो पैरों पर खड़े होकर नाचता है।) तो भैया सुनो हमारा चन्दू बताता है ।
नक्की मिले मानसिंह मिलिगे मिले सुदर्शन काना ।
पाण्डे कृष्ण चन्द्र जब मिलिगे देशवा भवा बिराना ।।
( कह कर कालू और चन्दू रोते हैं। रोते हुए कालू चन्दू की आंख पोछने लगता है ।) मत रो चन्दू ।
(बच्चों की आंखों में भी आंसू आ जाते हैं। कालू फिर फड़क कर डुगडुगी बजाने लगता है, छपका फटकारता है । चन्दू गमगीन मुद्रा में खड़ा रहता है।) तो नाचो चन्दू, नाचो मालिक लोग उठेंगे। कोई रास्ता ढूंढेंगे। (चन्दू नाचने लगता है। छपका फटकार कर कालू गाने लगता है-
दुर्गतिया आपनि अपने हाथ कटी।
खाईं कठिन है पर ई पाटे पटी ।।
भैया देसवा के नैया खेवा ना।
ई देसवा के नैया खेवा ना।।
मालिक ई देसवा के नैया खेवाना ।
कालू डुगडुगी ठोंक कर बजाता है। छपका फटकारता है। चन्दू का नाचना जारी रहता है।)
थाने द्वारा नियुक्त गांव का चौकीदार आ जाता है। सिर पर लाल पगड़ी है। कालू उसे देखकर अपना छपका फटकार कर कहता है- 'चन्दू भाई, हुजूर को सलाम कर । हुजूर ही हमारे माई बाप हैं।' खुद भी सलाम करता है। चौकीदार का अहं संतुष्ट हो जाता है। कालू पुनः गाने लगता है-
ई बिपतिया काटे से कटी।
मालिक काटे से कटी ।।
चौकीदार भी सिर हिलाकर सहमति व्यक्त करता है। 'नाचो चन्दू नाचो' (चन्दू नाचता है। कालू छपका फटकारते हुए डुगडुगी बजाता रहता है। बच्चे तालियाँ बजाते हैं।)
मालिक लोग, बच्चों, माताओं चन्दू भूखा है। पेट भरने के लिए नाच दिखाता है और यह कालू भी पेट के लिए यह स्वांग करता है। तो माताओं, बहनों और भाइयों एक चुटकी आटा एक रोटी जो भी घर में हो चन्दू और कालू के पेट के लिए ला दें। कालू और चन्दू का स्वांग जो मुफ्त देखता है उसे खुजली हो जाती है। हम चाहते हैं आपको खुजली न हो और चन्दू का पेट भी भरता रहे। तो बच्चों, जल्दी जाओ और चुटकी भर आटा या रोटी जो भी. .. कहते हुए अंगोछा फैला देता है। चंदू बैठ जाता है और कालू डुगडुगी बजाता रहता है। बच्चे भाग कर घरों से आटा या रोटी जो भी मिलता है लाकर अंगोछे पर डालते हैं। कालू डुगडुगी बजाता और गाता रहता है।
देशवा ई माँगे आहुतिया हो राम
बच्चों का आटा लाना जारी रहता है। अन्त में आटा और रोटी बाँध कर डुगडुगी बजाता चल देता है। बीच में गाता रहता है-
देशवा ई माँगे आहुतिया हो राम।
गांव के बाहर तक बच्चे उसका पीछा करते रहे। धीरे धीरे एक एक कर लौट गए।
कालू ने देखा कि खेतों की मेड़ से होते हुए अपने सात-आठ साल के बच्चे के साथ एक मालिकिन आ रही है। वह फटी, गंदी धोती पहने बच्चे को साथ लिए तेज कदमों से आई। कालू के निकट पहुंच कर बोल पड़ी, 'भालू वाले बाबू मेरे बच्चे को क्षमा करो।'
'क्या है माई ?"
'मेरे एक ही बेटा है बाबू। घर में न आटा है न रोटी। अगर इसे खुजली हो गई तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी। इसके पिता को छावनी में एक पेड़ के नीचे लटका दिया गया। भीख मांगती हूं, बाबू मेरे बेटे को क्षमा कर दो। 1 यह तुम्हारा खेल देखकर आया है तभी से अंटका है- आटा या रोटी कुछ लाओ। रूँआसा खड़ा था। इसके बापू थे तो बाज़ार वही करते थे। न रहने से खेत नहीं बो गया। बचा खुचा अन्न चुक गया। इसके बाबू पांच रूपया दे गए थे। उसी में से एक रूपए का अनाज लाऊँगी। घर में ही कूटपीस लूंगी। आटा जब घर में होगा तो तुम्हें कहां पाऊँगी बाबू भैया । इसीलिए कहती हूं मेरे बेटे को क्षमा कर दो।'
'माई गलती मेरी है। मुझे क्षमा करो माई आटा या रोटी न लाने से किसी को खुजली न होगी। यह तो इसलिए कहता हूं जिससे चंदू का पेट भर सकूं। अब मुझे पता चल गया कि मुझे यह सब नहीं कहना चाहिए। अब कभी नहीं कहूंगा माई मेरी गलती के लिए क्षमा करो।'
'नहीं बाबू जब तक आप क्षमा नहीं करेंगे, मैं जाऊँगी नहीं। एक ही बेटा है मेरे ।'
'माई। आपका बेटा मेरा भाई हुआ। मैं भगवान की शपथ लेकर कहता हूँ उसे कुछ न होगा माई।'
'अब तुम्हीं जानो बाबू।'
'सच मानो माई आपने मुझे सही रास्ता दिखाया। भगवान छोटे भइया को सुखी रखे।'
'माँ ने बच्चे से कहा बाबू को प्रणाम करो बेटा'
बेटा कालू के पांव छूने के लिए झुका तो कालू भी माँ के पैरों में झुक गया। चलता हूँ माई, कहकर कालू, चन्दू के साथ चल पड़ा। मां बेटे दोनों उसे जाते देखते रहे।
कालू का मन दुखी हो गया। सिवान में एक तालाब के किनारे रुक कर आटा उसने चंदू को खिलाया। रोटियां कुछ अपने लिए रखकर शेष चंदू को खिला दिया।
'लो खा लो चन्दू | यह आपत्ति काल है। तू स्वांग करता है, नाचता है। ये बूढ़े, बच्चे कुछ न कुछ समझेंगे कालू। यह देश ऐसे ही नहीं रहेगा। तेरा 'भालू नाच’ घर घर में सपना उगाएगा। इसीलिए चन्दू भूखे प्यासे रहकर भी स्वांग करता चल ।
यहाँ तंगी जरूर है पर हृदय धुकधुकाता है। ये फिर उठेंगे चन्दू। हमें तुम्हें जो करना है करते चलें। चलो चलें।' कालू उठा और चन्दू को साथ लेकर दूसरे गांव की ओर बढ़ गया।