टोलेडो विश्वविद्यालय कर परिसर खिला खिला सा। खिलेफूल जैसे आपस में बतियाते हुए। दिन के दस बजे हैं। एक नवजवान ठिठकता सा परिसर में प्रवेश करता है। रंग श्याम है पर कणाश्म (ग्रेनाइट) की तरह दमकता हुआ। गठा शरीर। परिसर में पहली बार आया है सहज, स्वाभाविक संकोच ।
वाचनालय के प्रशासनिक कक्ष में बैठी एक युवती ने युवक को देखा। 'गठीला नवजवान' उसके मुख से निकला। वह उठी। नवजवान के पास पहुँच, ‘हलो-हाय’। ‘मेरी मॉम मुझे मिमी कहती है ।'
'कितना प्यारा सम्बोधन, नवजवान की आवाज़ और मीठी हो गई।
'मेरी माँ मुझे बामा कहकर पुकारती है।'
'क्या तुम छोटे बच्चे हो जो माम के पास रहते हो ।'
'मेरी माँ बहुत प्यार करती है। अभी मैं उसी के पास रहता हूँ । पार्ट टाइम काम भी करता हूँ।'
'तो तुम बच्चे हो....... बिलकुल मासूम ।'
"नहीं, नहीं इतना मासूम भी नहीं ।'
'मैं तो मॉम से अलग रहती हूँ । कम्प्यूटर पर काम करती हूँ और पार्ट टाइम पढ़ाई भी ।
'बहुत अच्छा।'
'चलो काफी पियें।'
'चलो।'
मिमी बामा को कैन्टीन ले गई। आगे आगे मिमी पीछे-पीछे बामा। मिमी ने सिक्के डालकर ठंडी काफी निकाला अपने और बामा के लिए। एक खाली मेज़ पर लगी कुर्सियों पर दोनों बैठ गए। बात करते हुए घूँट घूँट काफी पीते रहे ।
'तुम कौन सी पढ़ाई करना चाहते हो ।'
मिमी ने पूछा।
'इतिहास की'
'तुम इतिहास पढ़ोगे.......मासूम बच्चे.......?’
'अपनी जड़ों से बहुत लगाव है मुझे।'
'फूल और पत्ती में भी रुचि होनी चाहिए।'
'फूल पाने के लिए जड़ में खाद-पानी देनी पड़ती है।'
'ओ....... तो तुम समझदार भी हो।'
'बहुत थोड़ा थोड़ा.... मेरी माँ मुझे.........।’
'क्या कहती है मॉम तुझे.........।'
'छोड़ो.....अब क्या जरूरत है.........यह सब जानने की।' 'नहीं......नहीं बताओ........तुम्हारी मॉम तुझे क्या समझती है ?"
'मेरी मां कहती है कि कोई तुझे ठग लेगा। मैं बराबर उसे समझाता हूँ लेकिन वह मानने के लिए तैयार नहीं होती। उसकी दृष्टि में मैं बहुत होशियार नहीं हूँ।'
'इसीलिए तो मेरा सम्बोधन 'मासूम बच्चे ।'
'आ ही गए हैं तो चलें रजिस्ट्रेशन फार्म ले लें वर्ना कम्प्यूटर से भी निकाला जा सकता है।"
'हाँ चलो ले ही लें।’
मिमी के साथ चलकर रजिस्ट्रेशन फार्म लेता है। मिमी उसे हर प्रक्रिया समझाती है। परामर्शदाता से मिलवाती है। बामा मिमी का साथ पा बहुत खुश। दोनों लान में थोड़ी देर बैठे। एक दूसरे की फोटो अपने मोबाइल में कैद की।
'आपने बहुत मदद की मेरी........।'
'शुक्रिया अदा करने की जरूरत नहीं।.........इसे उधार रखो।'
'रख लेता हूँ। मुझे चलना भी है।'
'मिमी ने बामा की उंगलियों को अपने हाथ में ले लिया। आत्मीयता का एहसास पैदा करते हुए दोनों उठे एक दूसरे की आँखों में झांकते हुए ।
दोनों बस स्टैण्ड तक आए दो मिनट बाद ही बस आई। बस पर चढ़ते हुए बामा ने कहा, 'बाइ'। 'बाइ, घर पहुंच कर फोन करना।' मिमी ने आग्रह किया। बस चल पड़ी। अपनी आदत के विरुद्ध मिमी बस को जाते हुए देखती रही।
बामा जब घर पहुँचा, मां भी आ चुकी थी। चाय पीते हुए मां ने पूछा, 'फार्म ले आए।' 'हाँ’। बामा ने चुस्की ली। चाय खत्म करते ही बाथरूम में घुस गया। फोन खाने की मेज पर ही था। उसकी घंटी बजी। माँ ने उठा लिया ।' 'हलोऽ' माँ के कहते ही उधर से आवाज़ आई ‘मैं छात्र परामर्शदाता बोल रही हूँ। क्या आप बामा की माँ हैं ?
'हाँ’
'आपका बेटा पहले ही दिन लड़कियों पर डोरे डालता रहा। वह पढ़ेगा या लड़कियों के पीछे पीछे भागेगा ?"
'मेरा बेटा.......?' माँ के चेहरे पर लकीरें खिंच गई।
'क्या घर पर भी लड़कियों के पीछे पीछे भागता रहता है?"
'नहीं तो........?" माँ को आश्चर्य हो रहा था।
'अब तक कितनी लड़कियों से मित्रता कर चुका है वह ?"
'किसी से भी नहीं। वह बहुत शर्मीला है।'
"क्या किसी बलात्कार बगैरह में कभी ?"
"यह आप क्या पूछ रही हैं ? मेरा बेटा ऐसा नहीं है।'
'लड़के माँ को बताकर लड़कियों से मित्रता नहीं करते। आप बहुत अनजान हैं ।'
'मेरा बेटा मुझसे कोई बात नहीं छिपाता ।'
"तो क्या आज जो उसने किया उसे बताया।'
'नहीं।' '
तो क्या यह सबूत नहीं कि वह आप से छिपाकर बहुत कुछ करता है। आप बच्चे की निगरानी को सख्त करें।'
इतना कह कर फोन की आवाज़ बन्द हो गई। माँ ने नम्बर को सुरक्षित कर लिया पर चिन्तित सी सोफे पर बैठ गई। दिमाग तरह तरह के विचारों में उलझने लगा ।
बामा बाथरूम में फव्वारा खोलकर उसके नीचे बैठा। बन्द आंखों में मिमी की छवि बसी हुई। पूरे बीस मिनट वह फव्वारे के नीचे बैठा रहा।
बाथरूम से निकलते ही बामा की दृष्टि माँ की जिज्ञासु मुद्रा पर पड़ी।
"माँ आप?"
'हाँ मुझे तुझसे कुछ पूछना है बेटे ।'
'क्या पूछना है?"
'तू पढ़ाई के सिलसिले में गया, वहाँ........
'क्या माँ ?'
'वहाँ लड़कियों के पीछे पीछे भागता रहा।'
'किसने कहा आप से?"
माँ ने फोन नम्बर दिखाया ।
"ओ, यह तो मिमी का नम्बर है।'
"बामा ने मिमी का नम्बर मिला दिया।'
'हलो मिमी, तू ने माँ से क्या कह दिया ?"
“मैंने क्या कोई गलत कहा? लड़कियों के पीछे पीछे तुम्हारी भागने की आदत नहीं है?' कहकर मिमी खिलखिला पड़ी।
'फोन माँ को दे दो, उसने कहा।
'मॉम' मिमी चहक उठी। 'मैंने आपको गलत बताया। मैं ही उसको देखकर मुग्ध हो गई। उसको काफी पिलाई। वह सीधा है। उसने मेरी भावनाओं का मान रखा।'
' कहती थी न, वह बहुत सीधा है।
कोई भी उसे फुसला सकता है। उसको मैं समझाती रहती हूँ ।'
'पर मॉम, तुम्हारे कब्जे में कब तक रहेगा ?
उसे अपनी गृहस्थी बसानी होगी।'
'ओह, मिमी तुम्हारी बात ठीक है। मैं कब तक उसके पीछे लगी रहूँगी ? पर मैं माँ हूँ। माँ का मन कहाँ मानता है ?"
'ओह मॉम, तुम भी कहाँ की बात करती हो। तुम्हारी अपनी जिन्दगी होगी । अपने सपने होंगे।'
‘मेरा सपना केवल बामा है बेटे । मेरे सारे सपने इसी में सिमट गए हैं। बहुत झेला है मैंने।'
'आपकी बातों को मैं समझने का प्रयास कर रही हूँ। पर बेटे की ज़िन्दगी तो आप से भिन्न होगी, मॉम ।'
'ठीक कहती हो तुम। यह मेरा व्यामोह हो सकता है, लैटिनो हूँ न ?”
'मैं स्काटिश हूँ मॉम, मम्मी-पापा दोनो ।'
'सोच लो बेटे एक लैटिनो के साथ।'
‘डेटिंग के लिए माँ से अनुमति कौन लेता है? पर बामा ने जो चित्र आपका खींचा उससे मुझे लगने लगा कि आपसे अनुमति न लेना एक अपराध होगा । एक छौने की तरह आप उसे पाल रही हैं। मेरी मॉम ने बालिग होने पर कभी मेरी परवाह नहीं की। उनके सपने अलग हैं मेरे अलग। पापा और मॉम का फोन कभी आ जाता है। कभी मैं ही फोन मिला लेती हूँ।
'सब की अपनी व्यस्तताएँ होती हैं । मम्मी पापा की भी होंगी।' 'पर बेटे हम लैटिनो हैं अश्वेत हैं ही। क्या यह दीवार नहीं बन जाएगी?"
"इस वैश्वीकृत समाज में कहाँ का प्रश्न उठा रही हैं मॉम ?"
"यह प्रश्न अमेरिका का ही नहीं पूरे श्वेत समाज का सच है बेटी । तुम भी देखती होगी। हमने अनुभव किया है। लैटिनो शब्द में ही जो हिकारत का भाव है............।’
'माॅम, यह बात मान भी लूँ तो मैं लहर के खिलाफ चलना चाहती हूँ ।"
"झंझावातों से पिंड नहीं छूटेगा।'
'उससे लडूंगी मैं। आपका आशीर्वाद चाहिए।'
'मेरा आशीर्वाद तो रहेगा ही। पर..........
"पर वर, कुछ नहीं ।'
"अच्छा ठीक है बामा से बात कर लो।'
मॉम ने बामा को फोन पकड़ा दिया ।
'हलो मिमी'
'हलो, मासूम मॉम से अनुमति मिल गई है। वीकेन्ड ।' कहते हुए मिमी ने फोन काट दिया।