रात के बारह बजे थे। चाँद भले ही ऊबड़-खाबड़, धरातल वाला क्षेत्र हो पर उससे निःसृत चांदनी धरती पर रस बरसा रही थी। सिवान में खड़े पेड़-पौधे, ऊढ़ कभी कभी किसी मिथ्या भ्रम को पैदा कर देते । पुरवा गमकी हुई थी । बैसाख के दिन। गेहूँ दवाई करते ट्रैक्टरों की खरखराहट गतिरोधों के बीच भी एक लय पकड़ती हुई । कोई बोलता तो दूर तक आवाज़ जाती । ऊधौ का गेहूँ घर में आ चुका था । ओसारे में सो रहे बुच्चू को शरीर में दर्द का अनुभव हुआ। वे सोचते रहे ऊधौ को पुकारें या नहीं। जब दर्द बढ़ गया तो उन्होंने पुकरा 'ऊधौ'.......ऊधौ .....।' ऊधौ उठकर बाहर आए। वे बुच्चू के पास जब तक आएँ, बुच्चू का गला घरघराने लगा । वे कुछ बोल न सके। चांदनी अभी भी छिटकी हुई थी। ऊधौ दौड़कर हारे गाढ़े काम आने वाले कक्षा नौ पास एक डाक्टर को जब तक बुलाकर लाएँ बुच्चू बेहोश हो चुके थे। डाक्टर ने बाकायदा आला लगाया, जांच-पड़ताल की। एक सुई लगाई, कहा भगवान की इच्छा के आगे किसी का बस नहीं चलता। अगर उसकी इच्छा होगी तो.........।' 'वह तो है ही, पर डाक्टर भी भगवान होता है। यमराज के दरवाजे से भी आप लोग लौटा लेते हैं।' ऊधौ बोल पड़े। 'ठीक है, दो घंटे बाद मुझे इनका हाल बताना।' ऊधौ घर से पचास रूपये का एक नोट लाए। डाक्टर को दिया।
डाक्टर के जाने के बाद ऊधौ और उनकी पत्नी दोनों बुच्चू के पास बैठ गए। उसके कुर्ते की जेब में एक पुटकी जैसी चीज दिखी। ऊधौ ने पुटकी निकाली। चांदनी के प्रकाश में उसे खोला एक एक रूपये के तिरपन सिक्के, सौ के तीन, पचास के पांच तथा दस के दो नोट तथा सन्दूक की चाभी उसमें मिली। पुटकी को बांधकर पत्नी को दे दिया। वह घर के अन्दर रखने चली गई। अचानक ऊधौ के मन में कौंधा बैंक में जो पैसा जमा है उसका कागज भी होना चाहिए। उन्होंने पत्नी को पुकारा । वह आई तो उससे कहा कि यहीं बैठो और स्वयं बुच्चू की कोठरी में जाकर चाभी से सन्दूक खोल बैंक का कागज खोजने लगे। बुच्चू कम होशियार नहीं था उसके पिता ने चौदह हजार रूपया किसी तरह जोड़कर अपने और बुच्चू के नाम छह साल के लिए जमा किया। बुच्चू ने उसे निकाला नहीं बल्कि उसे चार बार पलटवा चुका है। अब यह राशि लाख से ऊपर हो गई है। बुच्चू स्वयं भी एक-एक रूपया करके जो बचाता उसे छह साल के लिए जमा करता। एक रूपया भी उसने निकाला नहीं। उसके द्वारा जमा की गई धनराशि भी ब्याज सहित लाख की लकीर छू रही थी।
बुच्चू अपने माँ-बाप का अकेला है। पीठ में कूबड़। उसकी शादी नहीं हुई। लड़की वाले सोचते कि वह पत्नी की परवरिश नहीं कर पाएगा। उसके नाम एक बीघा खेत था जिसे ऊधौ ही जोतते हैं। बुच्चू सबेरे उठता शौच आदि के बाद शहर की ओर चल देता। कुबड़ा था ही अपना कुर्ता महीनों साफ नहीं करता। दाढ़ी बढ़ा लेता और दूकान दूकान घूमते हुए रूपये अठन्नी, चवन्नी सिक्के मांगता।
चार पांच बजे तक गांव लौटता। दातून कर स्नान करता। बिना स्नान के भोजन, जलपान कुछ भी न करता। उसकी मां का देहान्त बहुत पहले हो गया था। पिता के पास एक बीघा खेत था एक भैंस पालकर वे दूध बेच लेते थे। जब तक वे थे, थोड़ा बहुत काम बुच्चू भी कर लेता। वे भी एक ही वक्त खाना बनाते। उसी में दोनों काम चलाते।
दूध बेचकर ही एक पक्की ईंट की कोठरी बना लिया था। बुच्चू भी कानी कौड़ी खरचने से परहेज करते। उनके दिवंगत होने पर बच्चू भैंस की सेवा नहीं कर सका। वह जहाँ बैठ जाता चुपचाप घण्टों बैठा रहता। भैंस जब बहुत कमजोर हो गई गांव वालों ने उसे बेचवा दिया। अब बुच्चू बिलकुल निश्चिन्त हो गया। इधर- उधर कहीं भी बैठ जाता तो बैठा रहता। गांव जंवार में कहीं भी शादी-विवाह, भण्डारा होता बुच्चू पहुँचता । भोजन कर लेता तो दो चार दिन के लिए छुट्टी हो जाती। चूल्हा नहीं जलता। गांव जंवार के न्योते से काम चल जाता। जैसे ऊँट कई दिन के लिए पानी पेट में रख लेता है बुच्चू भी एक बार खाकर दो चार दिनों के लिए निश्चिंत हो जाता ।
'बुच्चू भैया दो कौर हमारे ही यहां खा लिया करो।' एक दिन ऊधौ ने कहा ।
"तुम समझोगे कि हम मुफ़्त खिलाते हैं।'
'मुफ़्त क्यों ? आपका एक बीघा खेत जोते हुए हैं ।'
'देखो, ऊधौ तुम्हारे भी कोई बच्चा नहीं है। खेत की लालच में न रहो।'
'इसमें लालच की क्या बात है बच्चू भैया? आप का खेत जोतते हैं तो कुछ न कुछ हमें देना ही है। आप भोजन नहीं बनाते तो हमारे ही यहाँ मुँह जुठार लेने में कोई हर्ज तो नहीं है।'
'ठीक है पर ज्यादा लालच न करना ।'
बच्चू ऊधौ के यहाँ भोजन कर लेता। भोजन वही शाम को । बुच्चू का रूपया बैंक में जमा है यह बात ऊधौ ही नहीं और लोग भी जानते हैं। ऊधौ चचेरे भाई हैं। कभी कभी बुच्चू को समझाते कि तुम अकेले हो कोई विपत्ति पड़ जाय, बीमार पड़ जाओ तो रूपया बैंक से निकलने में दिक्कत होगी । इसलिए मेरा भी नाम खाते में जुड़वा दो। बुच्चू सुन लेता, कभी कभी हां, हूं भी करता । ऊधौ बैंक भी जाते पर ऐन मौके पर वह चुप्पी साध लेता । ऊधौ कई बार यह प्रयास कर चुके हैं पर हर बार निराशा ही हाथ लगी। बच्चू ज़रूरत पर दूसरों से कर्ज ले लेता, ब्याज भी भरता पर बैंक से रूपया निकालने का नाम न लेता ।
आज बुच्चू के बेहोश हो जाने पर ऊधौ ने सोचा कि जमा रसीदें तो हाथ में कर लिया जाए। उसने बुच्चू की सन्दूक खोली तो उसमें बोरे, फटी धोती, कुर्ते आदि के टुकड़े भरे थे। ऊधौ ने एक एक टुकड़ा निकाल कर टार्च की रोशनी में देखा पर बैंक की जमा रसीदों का कहीं पता न चला। ऊधौ के माथे पर पसीना चुहचुहा आया। वे दीवाल की दराज़ों में झांकते रहे पर रसीद न मिली।
ऊधौ की पत्नी को थोड़ी देर बाद झपकी लग गई। जब नींद खुली तो बुच्चू को उसी हालत में पड़े देखा। ऊधौ पसीना पोछते बाहर निकले। रसीदें न मिलने से निराश, दुखी। दॅंवाई करने वाले ट्रैक्टर धीरे-धीरे बन्द हो रहे थे क्योंकि गेहूँ का डांठ बहुत मुलायम हो जाने से कट नहीं रहा था। इसी बीच तीन किलोमीटर दूर कचहरी में तीन बार घण्टा बजा। ऊधौ बुच्चू के पास बैठ गए। पत्नी से कहा, 'जाकर थोड़ी देर आराम कर लो।'
'डाक्टर ने कहा था हमें बताना।' पत्नी ने याद दिलाया।
'तीन बज गया। भोर हो रही है अब थोड़ी देर बाद ही जाऊँगा। तू जा थोड़ी देर आराम कर ले।'
पत्नी उठी, अन्दर जा कर चारपाई पर पड़ रही । ऊधौ सोचने लगे आखिर रसीदों को कहाँ रख दिया है बुच्चू ने । वे एक बार पुनः टार्च लेकर रसीदें खोजने के लिए कोठरी में घुस गए।
'यदि बुच्चू भगवान को प्यारे हो गए तो रसीद न मिल पाएगी। फिर बैंक में जमा रूपया........।' बुदबुदाते हुए ऊधौ रसीद खोजते सन्दूक में भरे हर टुकड़े को फिर से जाँचने लगे। ले देकर एक ही सन्दूक थी बुच्चू के पास । फर्श की कोठरी कच्ची थी। उन्होंने कच्ची फर्श को भी बहुत बारीकी से जांचा, परखा पर कहीं रसीद का सुराग न लगा। वे हताश पुनः बाहर निकले। उजाला होने लगा था। बुच्चू के पास जाकर बैठे। बुच्चू के शरीर में थोड़ा कम्पन हुआ । ऊधौ ने पुकारा, 'भैया, भैया' बुच्चू ने आँख खोल दी। 'बहुत अच्छी नींद आई' बुच्चू ने धीरे से कहा। वे अपनी जेब टटोलने लगे। ऊधौ से कहा, 'मेरी जेब में पुटकी थी उसमें पैसे थे। किसने निकाल लिए ?"
'भैया, आप बीमार हो गए थे। डाक्टर को बुलाना पड़ा। उनको पैसा देने के लिए पुटकी निकाली थी। पचास रूपये उनको दिया। पुटकी रखी है, लाता हूँ।’ कहकर ऊधौ अन्दर गए ।
पुटकी से पचास रूपया निकाला। चाभी को भी उसमें रखा और लाकर बुच्चू को दिया। बुच्चू ने पुटकी खोली, एक नजर रूपयों और चाभी पर डाली। ऊधौ से कहा, 'हजार पूरा हो जाए तो इसे भी बैंक में जमा कर देना है।' जब भी बैंक में जमा करना होता एक बेहद सत्यनिष्ठ व्यक्ति को पकड़ता, उन्हीं के सामने रूपया जमा कराता। पर जमा रसीदें कहां रखता है यह वे भी नहीं जानते थे।
ऊधौ चाहकर भी पूछ नहीं पाए कि बैंक की जमा रसीदें कहाँ रखी हैं ।