हवेली - 22 - अंतिम भाग Lata Tejeswar renuka द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हवेली - 22 - अंतिम भाग

## 22 ##

सुबह सात बजे हवेली से बस निकली। बस में सारे छात्र-छात्राएँ अपनी सीट पर बैठे हुए हैं। अन्वेशा, स्वागता एक सीट पर और मेंहदी एक खिड़की के पास बाहर देखते हुए चुपचाप बैठी हुई है। स्वागता, अन्वेशा के साथ होकर भी उसकी नजर मेंहदी पर थी। वह अपनी बहन को अच्छी तरह समझती है। जब वह मुंबई वापस लौटने के लिए बस में बैठ रहे थे तब स्वागता मेंहदी के पास बैठने के लिए जिद कर रही थी, लेकिन मेंहदी ने उसे अन्वेशा के साथ रहने को कहा। वह भी खुद कुछ समय अकेले रहना चाहती थी। अजनीश मेंहदी के बिल्कुल पीछे वाली सीट पर बैठा था।

वह भी कुछ कश्मकश में दिख रहा था। मेंहदी से कुछ पूछना चाहता था, लेकिन उसे वह मौका ही नहीं मिल रहा था। मुंबई पहुँचने से पहले उसे मेंहदी से बात करनी ही पड़ेगी। मन ही मन निश्चय किया।

हवा के साथ-साथ हवेली को बहुत पीछे छोड़ दिया था। अब धीरे-धीरे माहौल साधारण होने लगा। जुई की जिद से अंताक्षरी भी शुरू हो गई। मेंहदी भी कुछ सामान्य नजर आने लगी। मेंहदी को देखकर अजनीश और स्वागता भी सामान्य महसूस करने लगे। बस कुछ दूर बाद एक चाय स्टॉल के पास पहुँची। बस को रोककर मेंहदी, अजनीश, स्वागता के अलावा बाकी सब चाय पीने नीचे उतर गए। अन्वेशा जाना नहीं चाहती थी, लेकिन स्वागता ने उसे जुई के साथ चाय पीने को भेज दिया और वह खुद मेंहदी के पास आकर बैठ गई। एक असहज नज़र से पूछा, "दीदी वो सब क्या हो गया ? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया।" मेंहदी चुप रही, कुछ नहीं कहा।

"दीदी कहिए न, आप उस वक्त वहाँ क्या कर रहे थे? और अन्वेशा क्यों अजीब तरीके से खुदकुशी करने का प्रयास कर रही थी ?"

"ये सब बहुत बड़ी कहानी है मैं फिर कभी सुनाऊँगी।"

"लेकिन वह सब क्या हो रहा था, आप क्या पहले से जानती थी कि क्या होने वाला है ?"

मेंहदी बहुत देर चुप रही, फिर कहा, “जानती तो नहीं थी लेकिन मुझे एहसास हो गया था कि कुछ होने वाला है। मगर ये नहीं जानती थी कि क्या होने वाला है।'

"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगा कि...?” अजनीश कहते-कहते जुई को देखकर चुप हो गया। जुई बस के अंदर आई अन्वेशा की शॉल लेकर चली गई।

"बताती हूँ, उस दिन जब बारिश की वजह से सब कमरे में खेलने में व्यस्त थे तब मेंहदी बाल्कनी में खड़ी थी। रघु काका कुछ काम से एक कमरे की चाबी खोलकर अंदर आये और तुरंत ही बाहर निकल आये। शायद कुछ लेने, वह जल्दी-जल्दी में कमरे की चाबी बंद करना भूल गए। उनकी हड़बड़ाहट देखकर मुझे कुछ शक हुआ। इससे पहले भी वह उस कमरे को देखने की ज़िद की थी लेकिन रघु काका ने टाल दिया।

"मेहमान को उस कमरे के अंदर जाना मना है बीबी जी, कहकर कमरे को दिखाने में एतराज जताया था। जब उसने देखा कि रघु काका कमरे को खुला छोड़कर चले गये तब मेंहदी चुपके से अंदर प्रवेश कर गई और उसी समय मेंहदी ने देखा कि उस कमरे में अन्वेशा और स्वागता प्रवेश कर रहे हैं। फिर कुछ देर बाद वे भी बाहर निकल गये। मगर वह इस बात से अनजान थे कि वहाँ कोई और भी है जो उन्हें देख रहा है।

जब हवेली के नौकर रिजवी को वहाँ देखा उसके मन में कुछ संदेह हुआ। उसी संदेह को दूर करने मेंहदी वहाँ पहुँच गई। जब अंदर प्रवेश किया तो वहाँ धूल मिट्टी भरा कमरा देखने को मिला। मगर जैसे ही वह अंदर गई उसे अंदर का एक कमरा खुला हुआ दिखाई दिया।

उस कमरे में एक टेबल पर एक गिलास में दूध जैसा तरल पदार्थ रखा हुआ था। तब बाहर से कुछ आवाज होने से एक कोने में छिप गई मेंहदी , लेकिन वह स्वागता और अन्वेशा हैं जानकर बाहर आ गई। तब तक वे वहाँ से चले गए और रिजवी पूर्णिमा को साथ लेकर वहाँ पहुँच गया। मेंहदी वहाँ से बाहर निकल ही रही थी, इन्हें देखकर फिर से छिप गई। रिजवी, पूर्णिमा को उस दूध में चूर्ण डालकर उसे अन्वेशा को पिलाने को निर्देश दिया। ये बात सुनकर मेंहदी हैरान रह गई। एक पल के लिए उसे लगा कहीं हवेली में जो कुछ हो रहा है सब ये दोनों की मिली भगत तो नहीं।

मेंहदी वह सब देखकर चुप नहीं रह पाई। वह बाहर आ गई। उसे देखकर दोनों दंग रह गए। वे कुछ कहते उससे पहले मेंहदी की तीक्ष्ण दृष्टि से वे घबरा गए।

"क्या मैं जान सकती हूँ ये सब क्या हो रहा है ?"

“जी मैडम, कुछ नहीं ये दूध........”

“हाँ, मैं भी ये जानना चाहती हूँ कि इस दूध में क्या मिलाया गया है ? आप लोग ये सब क्यों कर रहे हैं ?"

"सब कुछ मेंहदी को पता चल जाने से वे सिर झुकाकर खड़े हो गये। मेंहदी , ने जब पुलिस में ख़बर करने की धमकी दी तब उन्हें बोलना ही पड़ा।"

"ये चूर्ण केवल अन्वेशा को सुलाने के लिए ही था। कारण, वे चाहते थे अन्वेशा सारी रात चैन की नींद सो सके।” रिजवी ने सिर झुकाकर कहा।

"हमारा विश्वास कीजिए मैडम अन्वेशा या आपमें से किसी को कोई भी नुकसान पहुँचाना हमारा उद्देश्य नहीं था। अन्वेशा की भलाई के लिए ही हमने ये कदम उठाया था।” रिजवी ने कहा ।

"अन्वेशा की भलाई के लिए? ये कैसी भलाई है जो उसे नींद की दवाई देकर सुलाना पड़ रहा है।" मेंहदी ने कहा।

उसके लिए इस हवेली, हवेली के लोगों के बारे में पूरी कहानी जाननी होगी, जो कि आपको पहले से बहुत कुछ सुन चुके हैं। अब कुछ दिखाना चाहता हूँ। उस तस्वीरों में से एक तस्वीर को मेंहदी के सामने ले आया। उस तस्वीर को देखते ही मेंहदी के होश उड़ गए।

"क्या था उस तस्वीर में जिसने आपको इतना परेशान कर दिया।" स्वागता ने पूछा।

मेंहदी ने कुछ जवाब नहीं दिया। उसकी चुप्पी को देखकर अजनीश ने भी जोर देकर पूछा, “किसकी तस्वीर थी वह।"

“वह तस्वीर सुलेमा की थी। "

“तो...?"

मेंहदी ने कुछ नहीं कहा। सामने पड़े बैग से एक पैकेट निकालकर उसमें से एक तस्वीर को बाहर निकाला। जैसे ही उसे खोला उस तस्वीर को देख दोनों आश्चर्यचकित रह गये। वह तस्वीर किसी और की नहीं थी, मुस्लिम लिबास पहने हुए एक लड़की की थी। जिसका चेहरा हूबहू अन्वेशा से मिलता-जुलता था।

*****

पुणे से कुछ दूरी पर बस रुक गई। रास्ता पहाड़ से होकर गुज़रता है। दो पहाड़ियों के बीच गुज़रता हुआ बस मेघमाला से बात करते हुए चलने लगा था। दूर पहाड़ों की चोटी से गिरता हुआ जल प्रवाह की सुंदरता को देखकर कोई भला कैसे नजरअंदाज कर सकता है। इसलिए कुछ देर बस रास्ते के एक किनारे रुकी। अन्वेशा, स्वागता और उनके साथी बस से उतरकर प्रकृति के सौंदर्य का आस्वादन करने पहुँच गए। मेंहदी भी उतरकर रास्ते के एक तरफ खड़े होकर प्रकृति की सुंदरता को ताकने लगी। अजनीश भी ऐसे ही किसी खास वक्त का इंतज़ार कर रहा था। अपने आपको धैर्य देते हुए कहा, “बेटा, वक्त भी सही है और मौसम भी। अगर अभी नहीं तो कभी नहीं इसलिए जो कहना है अभी कह दे।”

“मौका देखकर सीधा जाकर अजनीश पहुँच गया मेंहदी के पास।"

"इतनी सुंदर प्रकृति देखकर आपका मन क्या कह रहा है ?"

मेंहदी को चुप देखकर अजनीश ने फिर प्रश्न किया "क्या आप भी वही सोच रही हैं जो मैं सोच रहा हूँ ?"

"क्या ?"

"यही कि ऐसी खूबसूरत जगह और मौसम के साथ-साथ अगर जीवन संगिनी भी साथ हो तो......” वाक्य पूरा करने के लिए शब्द नहीं मिल रहा था।

"तो..... तो..., सोने पे सुहागा।" चुटकी बजाते पे हुए वाक्य को पूरा किया।

मेंहदी मुस्कराकर चुप हो गई। "इसका मतलब आप भी यही मानती हैं। "

"क्या ?”

"मैं कुछ कहना चाहता हूँ आपसे ।”

"हाँ कहिए।"

अजनीश ने इधर-उधर देखा। रास्ते के उस पार कुछ कँटीले वृक्ष देखने को मिले। अजनीश दौड़कर उन वृक्ष में से एक फूल तोड़कर ले आया। मेंहदी आश्चर्य होकर अजनीश की इस हरकत को देख रही थी। फूल को लेकर मेंहदी की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "क्या आप मुझसे शादी करना पंसद करोगे।”

"क्या ?”

"क्या आप मुझसे शादी करोगी ?”

अचानक अजनीश प्रस्ताव को इस तरह उसके सामने रखेगा इस बात का तनिक भी अंदाजा नहीं था मेंहदी को। वह हैरान रह गई। मेंहदी को चुप देखकर अजनीश कुछ कहता उससे पहले ही मेंहदी ने हाथ बढ़ाकर फूल कुबूल किया।

“येस, येस कहते हुए हूर्रर्र.....रे" कहकर ज़ोर से चिल्लाया अन्वेशा, स्वागता और उनके साथी चौंक गये। कुछ ही क्षण में बस वहाँ से निकली शहर की तरफ। अजनीश और मेंहदी ने एक नए सपने और एक संयोग की तरफ एक कदम आगे बढ़ाए।

 

©लता तेजेश्वर 'रेणुका'