Haweli - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

हवेली - 3

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सुबह जब अन्वेशा की आँख खुली,घड़ी में आठ बज चुके थे। उसने अपने कमरे से निकलकर बाहर आई। घर में ऊपर का कमरा अन्वेशा ने अपने लिए चुना था। सीढ़ी के बाएँ तरफ राहुल का कमरा और फिर मास्टर बेडरूम है। हॉल के दूसरी ओर गेस्ट हाउस है। हॉल के बीचोंबीच ऊपर जाने के लिए सीढ़ी घर की दोनों तरफ फैली हुई थी। सीढ़ियों के ठीक सामने मुख्य दरवाजा और मध्य भाग में सोफा रखा हुआ है। घर के हर छोटे-मोटे काम के लिए हर वक्त नौकर हाजिर रहते हैं। बँगले के एक कोने में नौकरों के रहने के लिए क्वार्टर की सुविधा है।

अन्वेशा ने जब नीचे उतरकर देखा घर के सारे सदस्य जाग चुके थे। पिकनिक जाने के लिए सारी तैयारी हो चुकी थी। टेबल पर कुछ फल, कैरियर, बैग और कुछ सामान बिखरा पड़ा था। राहुल, "दीदी ! आप अभी तक तैयार नहीं हुई, आप हमारे साथ वॉटर किंगडम नहीं आ रही हो?"

पीछे से चंद्रशेखर, "अरे बेटा ! अभी तक तैयार नहीं हुई, जाओ जल्दी से तैयार हो जाओ, नाश्ता करके तुरंत ही निकलना है। राहुल को तुम्हें जगाने के लिए कहा था, जगाया नहीं? ठीक है, जाओ जल्दी से तैयार हो जाओ। वरना देर हो जाएगी।"

अन्वेशा ने गुस्से से राहुल की ओर देखा, "राहुल, तूने जगाया क्यों नहीं?" राहुल जीभ दिखाकर "ये... ये...ये..." कहकर गायब हो गया। अन्वेशा को खूब गुस्सा आ गया, “रुक तुझे तो..... ." चेहरा लाल और दाँत पीस रही थी। मारने के लिए दौड़ ही रही थी, पीछे से अवनि की आवाज़ सुनाई दी, “अन्वेशा, उठ गई बेटा, जाओ जल्दी जाकर फ्रेश होकर नीचे आ जाना, नाश्ता तैयार है। और राहुल किधर है?"

अनजान बनने का बहाना करते हुए, “पता नहीं माँ, अभी-अभी यहाँ था पता नहीं कहाँ चला गया। वैसे एक जगह पर कहाँ रहता है। बॉल की तरह सारा दिन दौड़ता भागता रहता है। "

"अभी तो बहुत छोटा है न बेटा। जा छत पर जाकर देख वहीं होगा।"

"माँ मुझे भी तो तैयार होना है ना "

"ठीक है तू जा तैयार हो जा, मैं रामू को भेज देती हूँ। "

“रहने दो, मैं जाकर देखती हूँ।" अन्वेशा चली गई ।

अन्वेशा ने छत पर जाकर देखा, राहुल अपने पुराने खिलौने सब इधर-उधर कर रहा था। सारा कमरा पुराने खिलौनों से अस्त-व्यस्त पड़ा था।

"राहुल यहाँ तू क्या कर रहा है और ये क्या किया है इस कमरे को?" बिना कुछ जवाब दिए राहुल अपने खिलौने को एक-एक कर बाहर निकालता रहा और फिर अंदर डालता रहा।

"राहुल.... मैं कुछ पूछ रही हूँ न ?”

“क्या है, मैं कुछ काम कर रहा हूँ, करने दो न।”

"काम कर रहा है या कचरा फैला रहा है ?"

“दीदी, आप भी ना मैं कुछ ढूँढ रहा हूँ। मेरे क्रिकेट का बैट-बॉल नहीं मिल रहा है।"

"क्रिकेट ! अब क्रिकेट बैट, बॉल का क्या करने वाला है ?"

‘‘ओह......! दीदी, आप भी न बहुत सवाल करती हो। मैं क्रिकेट खेलूँगा।"

"क्रिकेट भी ठीक से नहीं बोल पा रहा है और खेलेगा भी ।" अन्वेशा ने चिढ़ते हुए कहा।

“ठीक है बाद में ढूँढ लेना, माँ बुला रही है जल्दी नीचे आ जा।” कहते हुए अन्वेशा नीचे चली गई। अन्वेशा, अवनि को आवाज देकर कहा, "माँ, राहुल छत पर है। सारे कमरे को बिखेर रखा है। "

"ठीक है मैं देखती हूँ, तू जा तैयार हो जा।”

सुबह 8 बजे सब तैयार होकर नीचे आ गए। राहुल भी अपना बैट और बॉल लेकर क्रिकेटर की तरह सजकर जब गाड़ी में बैठा, "अरे बुद्धू! कोई स्विमिंग करने जाता है तो बैट और बॉल लेकर जाता है क्या? अच्छा तो इसलिए सब सामान बिखेर के रखा था।” अन्वेशा ने चिढ़ते हुए कहा।

“हाँ, क्यों नहीं मैं स्विमिंग भी करूँगा और क्रिकेट भी खेलूँगा है ना पापा, हम खेलेंगे ना।” चंद्रशेखर मुस्कराते हुए सिर हिलाया।

"रामू यह सब सामान गाड़ी के अंदर रख देना। हाँ, फर्स्ट एड बॉक्स रखना मत भूलना।" अवनि ने नौकर रामू को आदेश दिया।

“जी मालकिन, सारे सामान अंदर रखवा दिए हैं। अगर और कुछ रखना है तो कहें।"

अवनि एक बार सब चेक करने के बाद “सब ठीक है, बस घर का ख्याल रखना और गाड़ी का दरवाजा ठीक से बंद करना।" कहते हुए घर की चाबी रामू के हाथ में सौंप दी। कुछ ही देर में सारे सदस्य गाड़ी में बैठ गए और ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट किया। मुंबई के हाइवे में बिना ट्रैफिक-जाम के सफर हो ही नहीं सकता। शहर की भीड़भाड़ और ट्रैफिक सिग्नल्स को पार करते हुए गाड़ी आगे चल पड़ी। राहुल बहुत ज्यादा खुश था। उसे यह देरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। पापा का हाथ अपने हाथ में जकड़कर इधर-उधर के सवाल करता रहा। अन्वेशा ने रास्ते में एक-दो बातों से ज्यादा कुछ नहीं कहा।

वॉटर किंगडम पहुँचते-पहुँचते दस बज गए। वहाँ पहुँचते ही राहुल खुशी से चिल्लाने लगा। “याहू....याहू" कहते हुए नाचने लगा।

“पहले अंदर तो चल बाद में नाचते रहना।” अन्वेशा ने चिढ़ाते हुए कहा। चंद्रशेखर के पहुँचते ही वहाँ के मैनेजर ने खुद आगे आकर स्वागत किया। अंदर ले जाकर यथासंभव मान-सम्मान किया। कुछ देर बाद मैनेजर से छुट्टी लेकर स्विमिंग कस्टयूम पहनकर पानी में उतर गए और स्विमिंग का मजा लेने लगे, पानी में भीगना अन्वेशा को बहुत पसंद है। राहुल कुछ देर पानी में जाने को घबराया मगर जैसे पानी में उतरने लगा वह भी खूब मस्ती में डूब गया।

“पापा मुझे भी तैरना सीखना है।"

“ठीक है चलो मैं तुम्हें सिखाता हूँ।” शेखर भी बच्चों की तरह पानी में उतरकर खेलने लगे, राहुल को तैरना सिखाया। अवनि कुछ ही दूर पर बैठकर बच्चों की शरारत का मजा ले रही थी। उन्हें पानी में भीगना पसंद नहीं था।

राहुल खेलते-खेलते थककर पानी से बाहर आ गया। राहुल अवनि की गोद में सिर रखकर लेट गया और खाने की जिद करने लगा।

"दीदी और पापा को भी आने दो, फिर सब मिलकर खाना खाएँगे, फिर क्रिकेट भी खेलेंगे। तब तक थोड़ा-सा आराम कर लो, बहुत थक गया है न मेरा बेटा, क्यों ?" अन्वेशा कुछ देर बाद थककर शॉवर लेने चली गई। शेखर भी अपना स्नान खत्म कर लौट आए। सबने चाय-नाश्ता करने के बाद क्रिकेट खेलने की तैयारी करने लगे। अवनि को राहुल ने एम्पाएरिंग करने के लिए राजी कर लिया। अन्वेशा खेलने के लिए उठने लगी और अचानक चक्कर आने से वहीं चेयर पर बैठ गई।

"माँ, मुझे चक्कर आ रहा है।” अवनि घबरा गई। अन्वेशा को गोद में लेकर बोतल में से पानी निकालकर चेहरे पर सींचने लगी। कुछ देर गेस्ट हाउस में विश्राम कर वे सब वापस लौट चले। शेखर ने उन्हें हिम्मत देते हुए कहा, “घबराने की कोई बात नहीं है पानी में बहुत खेलने से अचानक ही ऐसा होता है। फिर भी थोड़ी देर बैठकर घर चलते हैं। घर में कुछ देर आराम कर लेना सब ठीक हो जाएगा।”

क्रिकेट खेलना कैंसल हो जाने से राहुल का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। चंद्रशेखर अन्वेशा का हाथ पकड़कर धीरे-धीरे चलाते हुए गाड़ी की तरफ ले गये। शेखर ने गाड़ी में बैठते ही अपनी मोबाइल से डॉक्टर को कॉन्टैक्ट कर जल्द से जल्द घर पहुँचने का अनुरोध किया। घर पहुँचने से पहले ही फैमिली डॉक्टर विनोद शर्मा वहाँ मौजूद थे।

घर पहुँचते ही अवनि को इशारा किया। अवनि अन्वेशा को अंदर कमरे में ले गई। डॉक्टर ने अन्वेशा को जाँच कर कहा, "डरने की बात नहीं ज्यादा समय पानी में रहने से और थकान की वजह से चक्कर आना स्वाभाविक है। दवाइयाँ लिख दी है कोई चिंता की बात नहीं।" कहकर डॉक्टर चले गए। विनोद शर्मा मेयर के फैमिली डॉक्टर हैं। वह इससे पहले भी अन्वेशा की इस तरह की शिकायत सुनकर सारे मेडिकल चेकअप कर चुके हैं। जाँच के सारे रिपोर्ट नॉर्मल होने के बावजूद इस तरह की शिकायत बार-बार होते हुए सुनकर हैरान थे। शायद किसी मनोचिकित्सक से बात करनी होगी सोचते हुए वह बाहर निकल गए।

दो दिन बाद कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए कॉलेज कैंप का इंतजाम किया था। अन्वेशा के कॉलेज में पहला साल होने के कारण बहुत खुश थी। विद्यार्थियों को आयुर्वेद चिकित्सा संबंधित कई जानकारियों और उनकी पहचान करना आदि इस कैंप का मुख्य उद्देश्य था। इस कारण पुणे से दो सौ किलोमीटर दूर यह जगह एक जंगल में बोटानिकल जड़ीबूटियों की खोज के लिए चुनी गयी थी।

अन्वेशा भी कैंप में जाने की तैयारी कर रही थी। अन्वेशा को डर था कि तबियत की वजह से उसे यह कैंप जाने से रुकना न पड़े। अवनि, अन्वेशा की तबियत की वजह से परेशान थी लेकिन शेखर ने हिम्मत देकर कहा, "मेरी बेटी इतनी कमजोर नहीं है कि छोटी-छोटी बातों से घबरा जाए। जाओ बेटी, मगर अपना ख्याल रखना और वक्त पर खाने के साथ-साथ दवाई लेना मत भूलना।" अन्वेशा खुश हो गई, “ठीक है पापा”। लेकिन उसे पल्टु को साथ ले जाने की इजाजत न मिलने पर दुखी हो गई।

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मेंहदी, दादर के भीड़भाड़ इलाके में दो बेडरूम वाले फ़्लैट में अपनी माँ और छोटी बहन स्वागता के साथ रहती है। तीन सालों से वह घर की हर छोटी-बड़ी ज़रूरतें पूरी करती आयी है। उसी इलाके में हाईस्कूल टीचर की नौकरी करती है मेंहदी । इन तीनों को साथ लेकर यह परिवार आज तक चलता आया है। सुना है, जब स्वागता छह महीने की थी तब उसके पिता घर छोड़कर चले गए। क्यों और कहाँ ये कोई नहीं जानता। मेंहदी और स्वागता तब से आज तक अपने पिता से न कभी मिली हैं, न ही कभी माँ से उनके बारे में जानने की कोशिश की। उनकी नजर में पिता होकर भी न के बराबर है। जब से उन्होंने होश संभाला है तब से लेकर आज तक माँ की गोद ही सब कुछ रही उसके लिए। पिता नाम का शब्द उनकी जिंदगी में कोई महत्व नहीं रखता। अगर वह कहीं है भी तो अपनी जिम्मेदारी से दूर यूँ ही भागे नहीं होते, आज तक यही मानते आए हैं मेंहदी और स्वागता ने। उनकी परवरिश में माँ ने हर दुख,कष्ट को महसूस किया है, इसलिए वह किस्सा छेड़कर माँ को दुख पहुँचाना नहीं चाहतीं। स्वागता की खुशी के लिए मेंहदी कुछ भी करने के लिए तैयार रहती है। इसलिए जब स्वागता ने बताया कि कॉलेज के विद्यार्थी कैंप के लिए कुछ दिन बाहर जाना है, तो माँ गौतमी के मना करने के बावजूद मेंहदी ने स्वागता के जाने का सारा इंतजाम पहले ही कर लिया था।

स्वागता को माँ से कोई भी बात मनानी हो तो वह पहले मेंहदी से कहती थी। मेंहदी के घर पहुँचते ही "दीदी, तुम ही कहो न माँ से कि मुझे भी कॉलेज के कैंप में जाना है, तुम कहोगी तो माँ मना नहीं करेंगी।"

"माँ कहाँ है ?" मेंहदी ने कमरे में जाते हुए पूछा ।

"किचन में।" स्वागता ने उत्तर दिया। मेंहदी ने दबे पाँव से किचन के अंदर झाँककर देखा ।

गौतमी पकौड़े बना रही थी। पीछे से आकर एक पकौड़ा मुँह में डालते हुए कहा, "वॉव! क्या पकौड़े हैं। माँ आपके हाथ के पकौड़े का तो जवाब नहीं।”

"अच्छा पकौड़े तो तुम कभी नहीं खाती, कहती थी तेल बहुत है फिर आज क्या बात है? बहुत तारीफ हो रही है।"

"सच तो कह रही हूँ।"

"ठीक है और बता, क्या बात है, किस बात के लिए मनाने आई है?"

"ऐसी कोई बात नहीं माँ, स्वागता के कॉलेज में स्टडी कैंप है, उसे भी जाने दो न क्लास के सभी जा रहे हैं और घूमने थोड़े ही जा रही, यह भी पढ़ाई का एक अंश है। इससे पाठ समझने में बहुत मदद मिलती है और उसे कह दिया है कि बहुत सँभलकर रहेगी। छोटी बच्ची भी तो नहीं है, अपना ख्याल खूब रख सकती है। फिर तीन-चार दिन की ही तो बात है।'

“मगर....।”

"माँ, अगर-मगर कुछ नहीं, स्वागता जाना चाहती है तो उसे जाने दो न और तो और ये पढ़ाई करने ही तो जा रही है।"

"ठीक है, अगर तुम कहती हो तो जाने दो। लेकिन हाँ, उसे कहना तुम्हारे कारण भेज रही हूँ। अपना ख़्याल रखना और....."

“येस् ।” पीछे रहकर सारी बात सुन रही थी स्वागता, जैसे ही माँ की इजाज़त मिल गई उसने पीछे से आकर गौतमी को लिपटकर चुंबन दी, "मेरी अच्छी माँ, मुझे पता था तुम ना नहीं कहोगी।"

"माँ, तुम फिक्र मत करो मैं बाकी समझा दूँगी। हाँ, स्वागता इधर-उधर अकेले-अकेले मत जाना, सबके साथ ही रहना और अपना ख्याल रखना।" छोटी बच्ची की तरह समझाने लगी।

"ठीक है दीदी।" दूसरे ही दिन स्वागता अपनी क्लास के साथियों के साथ कैंप के लिए निकल गयी। मेंहदी खुद जाकर स्वागता को कॉलेज तक छोड़ आई।

अगले दिन सुबह साढ़े नौ बजे बस ने कॉलेज छोड़ा। विद्यार्थी खुशी में मस्त थे। अपने सहपाठियों के संग आगे का प्लान बनाने लगे। विद्यार्थियों के साथ-साथ प्रोफेसर सुनील और दो महिला प्रोफेसर अमृता और फातिमा भी मौजूद थे। अमृता ३५-३८ साल की होगी। पतली-सी कमर के ऊपर लंबे से नागिन जैसे लहराते हुए बाल में काफी अच्छी लग रही थी। जींस और टी-शर्ट में कॉलेज की लड़कियाँ भी उनसे बड़ी नजर आ रही थी। यह बात प्रोफेसर सुनील को बिल्कुल पसंद नहीं थी। उनके मुताबिक लड़कियाँ साड़ी में ही खूबसूरत दिखती हैं और उन्हें वैसे ही कपड़े पहनने चाहिए। प्रोफेसर सुनील की उम्र पचास साल के आस-पास की है। वह काफी पुराने ख्याल के आदमी हैं। अमृता का मजाक उड़ाने में उन्हें खूब मजा आता है, इसलिए वह अमृता की टाँग खिंचाई करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। फातिमा मैडम उम्र और तजुर्बे से कुछ साल बड़ी हैं। कॉलेज में विद्यार्थियों से लेकर प्रिंसिपल तक उनसे अत्यंत इज्जत से पेश आते हैं।

बस में इनके अलावा कुछ सहायक भी थे जो यात्रा में खाना बनाने के लिए साथ आए थे। खाना बनाने की सामग्री के साथ-साथ फल और सब्जी भी लाए थे। जिससे बीस लोगों के लिए एक हफ्ते तक खाने-पीने का कोई कष्ट न हो। बस शहर छोड़कर हाइवे पर चलने लगी। रास्ते में कुछ दूर जाने के बाद नाश्ते-पानी का बंदोबस्त भी किया गया था। बस एक होटल के सामने रुकी। अन्वेशा बस से उतरने को इनकार करने लगी। मगर स्वागता की जिद की वजह से अन्वेशा को उतरना ही पड़ा। नाश्ता करने के बाद बस वहाँ से निकली। निकिता अंताक्षरी खेलने की जिद करने लगी। मानव, निकिता, जुई, निखिल, स्वागता और अभिषेक अंताक्षरी खेलने को तैयार हुए। बाकी सब मजा ले रहे और बीच-बीच में साथ गाते भी थे। अन्वेशा गुमसुम बैठकर देख रही थी। अन्वेशा की चुप्पी जुई को अच्छी नहीं लग रही थी। क्लास की सबसे अधिक जिद्दी और बातें बनाने वाली लड़की एक अकेली अन्वेशा ही है। इसलिए क्लास में प्रोफेसर भी उसे बहुत पसंद करते थे।

अचानक जुई उठकर खड़ी हो गई “अरे, सब ऐसे गुमसुम बैठे रहे तो कैसे चलेगा? अभी बहुत रास्ता बाकी है, टाइम पास तो करना ही पड़ेगा रोज-रोज ऐसा मौका थोड़े ही मिलता है। "

"अन्वेशा यार तुम्हारा ऐसा चेहरा हमने कभी नहीं देखा, कम ऑन चियर अप बेबी, ठीक है मैं एक मजेदार जोक सुनाती हूँ।" उठकर खड़ी हो गई।

"अरे यार जरा-सा हँसकर मेरी लाज रख लेना प्लीज।" अन्वेशा के कानों में धीरे से बड़बड़ाने लगी। जुई की इस बात पर अन्वेशा अपने होंठों पर खिलती मुस्कराहट को होठों के बीच छिपा लिया।

"दूर से देखा तो अण्डे उबल रहे थे। दूर से देखा तो अण्डे उबल रहे थे... पास आयी तो दो गंजे खुजला रहे थे। तालियाँ ।" जुई जोर-जोर से ताली बजाने लगी, लेकिन बाकी सब उसकी तरफ घूरते देखकर चुप होकर बैठ गयी। उसका चेहरा फीका पड़ गया। तब सभी ने जुई का चेहरा देखकर जोर-जोर से हँसने लगे। अन्वेशा भी हँसने लगी। "चलो ये भी ठीक है, जोक से न सही मुझे देखकर हँस तो दिया है ना"। जुई भी हँसने लगी।

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