Haweli - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

हवेली - 2

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अमावास का गहरा अँधकार चारों तरफ फैला हुआ है। लंबे-लंबे वृक्षों के बीच गहन अँधकार और भी भयानक लग रहा था। उस रात के अंधेरे में उन जंगलों के बीच एक आदमी चुपचाप चलता जा रहा है। चेहरा उसका पसीने से भीगा हुआ से था, काँपते हुए होंठों को दाँत के बीच दबाये हुए अन्यमनस्क चला जा रहा है। भयभीत आँखें, लग रहा था जैसे उस जंगल में कहीं रास्ता भटक गया हो। बार-बार वह भयभीत नेत्र से इधर-उधर देख रहा था। कहीं कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा है। इस बात से अनजान था कि उसका शक सिर्फ शक नहीं है।

दो साये उसके पीछे-पीछे दबे पाँव उसकी तरफ बढ़ रहे थे। आकाश में दूर-दूर तक चाँद की कोई परछाई नजर नहीं आ रही थी। निशाचर की फड़फड़ाहट रात की स्तब्धता को चीरते हुए कानों में गूँज रही थी। भयकंपित वह आदमी उस जंगल से निकलने का निष्फल प्रयत्न कर रहा था। मगर वह नहीं जानता था कि खुद को और भी घने जंगल की तरफ ले जा रहा है। अचानक उसके पैर दौड़ने लगे। जैसे वह पहचान गया था कोई उसका पीछा कर रहा है। वह जान बचाने के लिए जोर-जोर से दौड़ने लगा और चिल्लाकर किसी को मदद के लिए पुकार रहा था लेकिन उसकी आवाज उस जंगल में प्रतिध्वनित होकर वापस उसके कान में गूँजने लगी।

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अचानक ही जंगल की निस्तब्धता को चीरती हुई कुछ पग ध्वनि सूखे पत्ते की सरसराहट के साथ सुनाई देने लगी। अन्वेशा के पैर अपने आप तेज चलने लगे। आगे-आगे वह आदमी और पीछे-पीछे चलने की आहट तेज होने लगी। अन्वेशा पीछे-पीछे दौड़ने की कोशिश करने लगी। मगर पग की आहट कुछ ही क्षण बाद दूर हो गयी। अन्वेशा को समझ में नहीं आया कहाँ गए वे लोग? और वे कौन थे? वे उस आदमी का पीछा क्यों कर रहे थे? अन्वेशा पीछा करते हुए कुछ दूर जाकर छिप गई। चारों तरफ श्मशान जैसा निःशब्द। अचानक अन्वेशा का चेहरा पसीने से भर गया। कुछ देर वह चुपचाप खड़ी रही। जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, वहाँ का दृश्य देखकर जोर से चिल्लाते बेहोश हो गई अन्वेशा। रात करीब डेढ़ बजे, एयर कंडिशनर कमरे के बीचोंबीच एक पलंग। रजाई में सोई हुई एक लड़की बिस्तर पर अशांत सिर हिला रही थी। जैसे कि कोई बुरा सपना उसे तड़पा रहा है।

चेहरे पर परेशानी, पसीने से लथपथ अन्वेशा रजाई को जोर से जकड़कर हाथ-पैर हिला रही थी। लग रहा था किसी चीज से भागने की कोशिश कर रही है। एक अनजाना-सा भय उस लड़की के चेहरे पर साफ-साफ नजर आ रहा था। अचानक ही वह उठकर बैठ गई, गला सूख रहा था। घबराई हुई चारों ओर देखा, आँखें बड़ी-बड़ी और पलकें बेवजह ठपठपा रहे थे। चेहरा पसीने से भीग रहा था। टेबल पर से गिलास भर पानी उठाकर एक घूँट में पी गई। उसके हाथ काँप रहे थे। एयरकंडिशन कमरे में पसीने से लथपथ चेहरा कुछ अजीब-सा लग रहा था। कुछ क्षण बाद, जब वह समझ गई कि उसने जो देखा वह एक सपना था, खुद को संभालकर रजाई में चेहरा छिपा लिया और धीरे से नींद की गोद में चली गई। खिड़की से पूर्णमासी का चाँद अँधेरे आकाश में हँस रहा था।

अवनि की रोज़ सोने से पहले बच्चों के कमरे में झाँककर फिर अपने कमरे में प्रवेश करने की आदत है। रोज की तरह वह राहुल के कमरे में जाकर ब्लांकेट ठीक कर फिर वापस जाते हुए अन्वेशा के पास गई। अन्वेशा के पसीने से भीगे हुए चेहरे और कुछ परेशान सा देखकर उसे जगाया। अन्वेशा नींद में ही 'हूँ हूँ' कहकर करवट ले रही थी। अन्वेशा को नींद से जगाकर उसे पानी पिलाया और पूछा, “अन्वेशा सब ठीक तो है न बेटा? ए.सी. तो चल रहा है ना बेटा फिर इतना पसीना क्यों !"

"नहीं माँ, बस ऐसे ही। कुछ डरावना सपना था इसलिए।"

"कोई और परेशानी की बात तो नहीं?"

"नहीं माँ सब ठीक है।"

"अच्छा फिर सो जाओ। कुछ जरूरत पड़े बुला लेना, ठीक है।"

ठीक है माँ।" अवनि रजाई को अन्वेशा के ऊपर ठीक से ओढ़ कर कमरे की बत्ती बंद कर चली गई।

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मुम्बई शहर की भीड़भाड़ से दूर एक छोटा सा बंगला, उसकी ऊँची-ऊँची दीवारें उस शहर के कोई पुराने सरकारी बँगले की याद दिलाता है। पूर्व की तरफ सामना करता हुआ एक बड़े से लोहे का गेट, जहाँ पहरेदार चौबीस घंटे मौजूद रहता है। अंदर प्रवेश करते हुए गेट के दोनों तरफ लॉन बिछाया गया है और उसके बीचों-बीच एक बड़ा वाटर-फाउंटेन बनाया हुआ है। उसके चारों ओर रंग-बिरंगे फूल के पौधे लगाये हुए हैं। बगीचे की एक तरफ बिछे घास के लॉन पर टी-पाय और कुछ कुर्सियाँ नजर आ रही थी। बँगला, बाहर से जितनी पुरानी और सादगी दिखाई देती है, अन्दर उतना ही आधुनिक तरीके से सजाया गया है। रंगीन दीवारें, आधुनिक उपकरण से सजाया हुआ कमरा किसी बड़े होटल के कमरों की सजावट से कम नहीं था।

चंद्रशेखर जी, शहर के मेयर हैं। ४५ साल की उम्र में जिंदगी के हर पहलू को नज़दीकी से जानना उनकी खासियत है। अपनी छोटी-छोटी मगर तेज आँखों से लोगों को देखकर उनके व्यक्तित्व को एक नजर में ही पहचानने की क्षमता रखते हैं। उनकी जिंदगी में झाँककर देखा जाए तो उनकी सरल जिंदगी के साथ-साथ एक चपलता भी नजर आएगी। जिंदगी को कैसे सहज और सरल बनाया जाए कोई उनसे ही सीखे। उनके नम्र स्वभाव से कोई भी इंसान, कुछ ही पल में उनसे प्रभावित हो जाए, न हो तो क्यों चंद्रशेखर जी हैं ही इस काबिल, कुछ ही पल में गैरों को अपना बना लेना उनकी खासियत है।

चंद्रशेखर की पत्नी अवनि नाम जितना सुन्दर,उतना ही सहनशील। दिखने में भी खूबसूरत और सुशील। अवनि और चंद्रशेखर दोनों कॉलेज के सहपाठी थे। पहली नजर में ही वे दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे। अवनि चंद्रशेखर को शेखर कहकर बुलाया करती थी। उसकी पुकार में आत्मीयता का भाव ने शेखर के दिल को बाँध लिया था। कॉलेज खत्म होने के बाद घर में सबकी मर्जी के खिलाफ दोनों ने मंदिर में शादी कर ली। शादी के बाद चंद्रशेखर और अवनि एक छोटे से मकान में रहने लगे।

अवनि के सहयोग से चंद्रशेखर बाकी पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी नौकरी में लग गये। आज वह समाज में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। नाम, धन और शोहरत इन सबके होने के बावजूद वह सीधी-सादी जिंदगी जीना पसंद करते हैं। शेखर यह सारा श्रेय अवनि को ही देते हैं। अवनि, उनकी छोटी सी जिंदगी में दीया बनकर रोशनी करने से आज वे इस मुकाम पर है, यह शेखर जी का कहना है। शादी के दस साल बाद अन्वेशा ने उनके जीवन में नन्हें से पैरों से दस्तक दी थी। इस खुशी ने तब तक सन्तान न होने का सारा कष्ट भुला दिया। नन्हीं सी यह परी उनके जीवन में नई आशा, नई किरण ले आयी। फिर पाँच साल बाद राहुल के जन्म ने उनकी जिंदगी में पुत्र की कमी को पूरा कर दिया। यही है शेखर का छोटा-सा हँसता-खेलता परिवार ।

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बाल्कनी में खड़ी १७ साल की एक लड़की, चेहरा गोरा, नीली-नीली आँखें, चेहरे पर अस्त-व्यस्त पड़े बालों को पीछे हटाते हुए बार-बार रास्ते की ओर झाँक रही थी। शायद किसी का इंतजार कर रही थी। गुस्से से लाल चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखों से पानी टपकने को तैयार, हाथ में सफेद रंग का पालतू कुत्ता पल्टु। अन्वेशा ने पल्टु को जिस तरह पकड़े रखा था । उसके हावभाव से लग रहा था कि पलटू सिर्फ पालतू जानवर ही नहीं, अन्वेशा का प्यारा सा दोस्त भी है। अन्वेशा अपनी बहुत सारी बातें पल्टु के साथ शेयर भी करती है। राहुल से झगड़ा हो या पापा से नाराजगी किसी भी हालत में पल्टु को अपने से अलग होने नहीं देती अन्वेशा। उससे एक सदस्य की तरह अपनी और अपनी सहेलियों की सारे बातें बताना अन्वेशा की एक आदत बन चुकी है। सारे दिन की परेशानी और खुशी पल्टु को बताने के बाद ही सोने जाती और पल्टु दोनों कान उठाकर सिर हिलाते हुए जैसे अन्वेशा की सारी बातें सुनता और समझता रहता है। उन दोनों में इस तरह की गहरी दोस्ती को देखते कभी किसी ने पल्टु या अन्वेशा को नहीं रोका। आज भी जब राहुल से नाराज़ अन्वेशा, खिड़की पर बैठे पापा का इंतज़ार कर रही है, तो पल्टु भी खिड़की से झाँककर “कूँ-कूँ” कर एक अनोखे अंदाज से उनके आने की खबर अन्वेशा को दे दिया। पापा के आने से पहले ही राहुल से परेशान अन्वेशा ने पल्टु को गोद में लिए सब कुछ बता दिया था। पल्टु बड़ी-बड़ी आँखों से सिर हिलाते पलक ठपठपाते सुनता रहा, जैसे कि वह अन्वेशा की हर बात को खूब समझता है।

उसी वक्त अंदर से आवाज़ आयी, “अन्वेशा, बेटा नीचे आकर खाना खा लो ।”

“नहीं, मुझे नहीं खाना।” ज़ोर से आवाज दे कर फिर खुद से कहने लगी, “आज पापा को आने दो, राहुल की तो आज खैर नहीं... इतना मारूँगी कि फिर कभी मेरी किताब फाड़ने की कोशिश नहीं करेगा।'

एक लंबी-सी गाड़ी गेट से अंदर आते देखकर अन्वेशा भागती हुई दरवाजे पर पहुँची। गाड़ी से उतरते हुए शेखर को देखकर हाथ जोर से पकड़कर मुँह फुलाकर कहा, "ओह पापा, में कब से आपकी राह देख रही हूँ, इतनी देर क्यों

"हाँ, बेटा रास्ते में कुछ परेशानी आ गई थी, इसलिए देर हो गयी। क्यों क्या बात है ?"

"पापा देखो! राहुल ने मेरी मैथ्स नोटबुक फाड़ दी है। मैं उसे बहुत मारूँगी, वह बहुत शैतानी करने लगा है। बार-बार मुझे परेशान करता है।" शिकायत करने लगी।

चंद्रशेखर ने अन्वेशा को गले लगाकर कहा, “अरे बेटा! जाने दो ना छोटा है, अभी उसे अच्छे-बुरे की समझ ही कहाँ हैं। माफ कर दो उसे, बड़ा हो जाएगा तो खुद-ब-खुद समझ जाएगा।'

“लेकिन मेरे मैथ्स के नोट का क्या ? वह तो खराब हो गया है ना "

"ठीक है मेरे पास ले आओ, मैं ठीक कर देता हूँ और हाँ, देखो बेटा तुम्हारे और राहुल के लिए एक सरप्राईज है। "

“सरप्राईज ? कैसा सरप्राईज पापा ?"

“नहीं अभी नहीं पहले खाना, फिर बताऊँगा कि सरप्राईज क्या है। अच्छा माँ कहाँ है बेटा ?" अंदर आते हुए पूछा ।

"माँ अंदर किचन में है, बुलाऊँ ?"

"नहीं रहने दो, हाँ राहुल को मेरे पास भेज देना।" सीढ़ी चढ़कर ऊपर अपने कमरे में जाते हुए कहा ।

“ठीक है पापा।” जाते हुए फिर रुक गई और धीरे से कहा, "पापा राहुल को थीरे से डाँटना, क्या है कि अभी छोटा है न, बड़ा हो जाएगा तो खुद समझ जाएगा, क्यों पापा?"

“अच्छा बाबा ठीक है। शिकायत भी करती हो और सफाई भी देती हो ये कैसा प्यार है।” मुस्कराते हुए उन्होंने कहा।

खाने के टेबल पर शेखर ने दूसरे दिन वॉटर किंगडम जाने का प्रस्ताव रखा, राहुल और अन्वेशा खुशी से उछल पड़े। जल्दी से खाना ख़त्म कर अपने-अपने कमरे की ओर चल पड़े। साथ-साथ सफेद छोटा-सा पालतू कुत्ता पल्टु भी। पल्टू को हाथ में लिए अन्वेशा उससे बातें करने लगी। “देखा पल्टु, पापा को हमारी वजह से देर गई। उफ् ! सुबह उठकर होमवर्क भी पूरा करना है। पल्टु कल रविवार है, पापा ने वॉटर किंगडम ले जाने का वादा भी किया है। जाओ तुम भी सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है।" पल्टु अंदर चला गया जैसे कि सारी बातें उसे समझ में आ गयी हो।

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