हवेली - 10 Lata Tejeswar renuka द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हवेली - 10

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मेंहदी का शक दूर हो गया। वह भी खुशी-खुशी सबके साथ शामिल होने के लिए राजी हो गई। पूर्णिमा चाय नाश्ते पैक करके वह भी सबके साथ चलने को तैयार हुई।

हवेली के पीछे नदी की तरफ सभी चलने लगे। पत्थरों को काटते हुए नदी सरगम गा रही थी।दूर पहाड़ से नीचे गिरते हुए जलप्रपात,सूर्य की झिलमिलाती हुई रंगीन किरणें उस जलप्रपात में घुलकर और भी शोभायमान दिख रहीं थीं। सूर्यरश्मि जलतरंगों में प्रतिबिंबित होकर दूर हवेली में अपनी सुंदरता निखार रही थी। जंगल के बीचोंबीच नदी का प्रवाह, जंगल के प्रशांत वातावरण को आल्हादकारी बना रहा था। जंगल में अक्सर आते-जाते पथिक इस नदी की धार पर देर तक बैठना नहीं भूलते। नदी के ठंडे जल प्रवाह के साथ-साथ ठंडी हवा और तट पर उगी विभिन्न वनस्पतियाँ शहरों के जंजाल से दूर एक प्रशांत पर्यावरण से मन को आल्हादिल कर देती हैं।

विद्यार्थियों ने नदी पार की और दूसरी तरफ चले गए। मेंहदी एक पत्थर पर बैठ गई। नदी का ठंडा जल पैरों को छूकर गुज़र रहा था। जलपात की हल्की सी बूँदे चेहरे पर गुदगुदा रही थी। अजनीश थोड़े ही दूर पर एक आम के पेड़ के नीचे खड़े होकर मेंहदी को चुपचाप देख रहा था।

मेंहदी के चेहरे पर बेवजह मुस्कान के साथ-साथ उन आँखों में अकेलेपन सा जुड़ा एक जिम्मेदारी का एहसास मेंहदी को सबसे अलग कर रहा था। सबसे पीछे रहकर मेंहदी के हर अंदाज को नजरबद्ध कर रहा था अजनीश। मेंहदी प्रकृति की गोद में खोए-खोए चल रही थी। सहेलियों के संग रहकर भी हमेशा अपने आपमें जीना, चिड़ियों की चहक में भी संगीत की मीठी धुन चुन लेना, नदी के जल में पैर थपथपा कर बचपन की यादें समेट लेना, छोटी-छोटी चीजों में खुशियाँ ढूँढ लेना यह तो सिर्फ मेंहदी के बस में है। अजनीश मेंहदी के बारे में जितना भी जानना चाहता वह उतना ही उसकी ओर खिंचता चला जाता।

साँवला रंग, मछली जैसी चंचल आँखें, खोई-खोई नजरें, लंबे घनेरे बाल जब-जब चेहरे पर लहराते हैं, लगता चाँद बादल में छिपकर लुका-छुपी खेल रहा है। सुनहरे रंग की साड़ी, गले में हल्की-सी एक सोने की चेन, माथे पर चंद्रमा जैसी चमकती एक छोटी-सी बिंदी और लंबे घनेरे बाल यही है मेंहदी का श्रृंगार। बालों को आधे बनाकर बाकी आधे बालों को हवा में लहराता छोड़ दिया था। पैरों में पायल की हल्की आवाज़ से जैसे कोई गीत का धुन बज रहा था। पत्थर के ऊपर बैठकर पानी को हवा में उछालती हुई मेंहदी अजनीश की आवाज से चौंककर स्वप्निल लोक से वर्तमान में आ गई।

“क्या आप आगे नहीं जाना चाहेंगी ?" अजनीश ने पीछे से कहा।

“चलिए सब पहले ही नदी पार कर चुके हैं, हम भी चलते हैं।” दोनों साथ-साथ चलने लगे।

“कितनी शांत और मनमोहक है यह जगह, है न। शहर की चहलपहल से दूर यह सुगंधित हवा, मन को तनावमुक्त कर एक नई जिंदगी का एहसास छेड़ जाती है। अजनीश जी, पता है लोग जाने-अनजाने में जिंदगी की इस दौड़ में भागते-भागते बहुत कुछ खो देते हैं। यह सुंदर प्रकृति और इनमें छिपे हुए हजारों प्राणी, ये वादियाँ, पहाड़ों से लहराते,लचकते,बलखाते नीचे गिरते जलप्रपात, कहीं दूर से अपनी बाँहें फैलाए पत्थर से गुजरती हुई नदी न जाने कितनी जिंदगियों को अपने आँचल में समेटकर रखा है। "

"दिन,महीना,साल शायद कई पीढ़ियों से कहीं दूर, बेख़बर जगह से निकलकर इस धरती को हरियाली की छत्रछाया में बचाकर रखा है। पंछियों की चहचहाहट, इन वृक्षों से टकराकर सरसराती हवा, देखो उस पक्षी के जोड़े को, कितने प्यार से एक-एक तिनका जोड़कर घोसला बना रहे हैं। आने वाली खुशियों को समेटने, धूप-छाँव से अपने बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए इस जगह से बेहतर जगह इन्हें शहर में कहीं मिल सकती है भला? शहर में सुबह उठने से लेकर शाम तक एक क्षण भी सुकून की साँस लेने का वक्त किसके पास है? प्रदूषण भरी हवा, गाड़ियों का शोरशराबा, एक-दूसरे से आगे बढ़ जाने की अधीरता हमें इस सुंदर प्रकृति से दूर ले जाती है। उस जंजाल भरी जिंदगी से दूर, इस प्रकृति के सौंदर्य से भरपूर इस पल को जी भर के आस्वादन करना चाहती हूँ।" मेंहदी भावुकता में बहकर अपने आपमें बोलती रही और अजनीश बिन पलक झपकाए मेंहदी को देखते रह गया। जब यह एहसास हुआ कि अजनीश पलक झपकाना भूलकर उसे देख रहा है तो मेंहदी शरमाकर एकदम चुप हो गई।

“सॉरी” अंगुली से बाल को कान के पीछे हटाते शरमाते हुए कहा।

“नहीं इसमें सॉरी कहने वाली क्या बात है? बल्कि जिंदगी की सच्चाई को इतनी सुंदर और सरल ढंग से समझना और समझाना हर किसी के बस में नहीं होता।” अजनीश भी भावुक हो उठा।

“एक बात पूछूँ?”

“हाँ, कहिए।”

“आप अकेली अपनी बहन की तलाश में इतनी दूर जो आ गईं, आपकी हिम्मत की तो दाद देनी पड़ेगी। क्या आपके परिवार में कोई और....।”

“हाँ, मेरे और स्वागता के अलावा मेरी माँ है। "

“क्या उन्हें पता है कि स्वागता...?”

“नहीं, माँ को इन सब बातों की ख़बर तक नहीं। बस, यहाँ सब ठीक हो जाए, तो मुझे जल्द से जल्द वापस जाना होगा। जाने के बाद सब कुछ बता दूँगी।"

दोनों क्षण भर के लिए मौन हो गए।

और आपने अपने बारे में कुछ बताया नहीं ।”

"आपने पूछा भी तो नहीं, मैं....." अजनीश अपने बारे में बताता रहा और दोनों नदी पारकर पहाड़ के पास पहुँच गये।

“दीदी यहाँ देखो ऊपर, हम यहाँ हैं।" पहाड़ी के शिखर पर खड़ी स्वागता हाथ हिला रही थी। मेंहदी ने भी हाथ हिलाकर इशारा किया। अभिषेक और अन्य विद्यार्थी भी पीछे खड़े बहुत खुश थे। अन्वेशा के बिल्कुल पीछे पहाड़ी से जल नीचे की ओर प्रवाहित हो रहा था। अन्वेशा पीछे खड़ी सबकी तस्वीरें ले रही थी। अभिषेक पानी में रहकर सबके ऊपर पानी उछालने लगा। कुछ पानी जुई के कैमरे पर गिरने से गुस्से में आकर वह अभिषेक को मारने दौड़ी। अभिषेक भी जुई को चिढ़ाते हुए भागने लगा। जुई और भी गुस्सा होकर वहाँ पड़ी एक लकड़ी उठाकर अभिषेक को मारने लगी। वहाँ खड़े सब के सब हँसने लगे। अभिषेक दौड़ते-दौड़ते थककर आखिरकार कान पकड़कर बैठ गया। "मेरी माँ प्लीज माफ कर दो। गलती से तुम्हारे ऊपर पानी गिरा। जानबूझकर नहीं गिराया। "

"अरे प्लीज यार, माफ कर दो।” कान पकड़े अभिषेक को देखकर जुई का गुस्सा शांत हो गया। हाथ की लकड़ी फेंककर वह भी बैठ गई। बाकी सब हँसते-हँसते नहीं थके।

अजनीश ने मेंहदी को देखते हुए कहा,“चलिए हम भी चलते हैं। उनकी खुशी में शामिल होते हैं और तो और जलपात को नजदीक से देखने का मज़ा ही कुछ और है। मेंहदी तुरंत चलने को तैयार हो गई।

आगे-आगे अजनीश और पीछे मेंहदी पहाड़ी के ऊपर चढ़ने लगे। पत्थर और कंकड़ से होकर पहाड़ चढ़ना मुश्किल हो रहा था। मेंहदी को मुश्किल में देखते हुए अजनीश ने अपना हाथ बढ़ाया लेकिन मेंहदी ने “नो थैंक्स” कहकर टाल दिया। अजनीश मुस्कराकर आगे बढ़ गया।

“आउच्......" मेंहदी की दर्द भरी आवाज से अजनीश ने पीछे मुड़कर देखा।

मेंहदी चोट लगे पैर को पकड़कर बैठ गई। पैरों से उसके फिर से खून निकलने लगा। अजनीश ने अपना रुमाल उसकी चोट पर बाँध दिया। इस बार मेंहदी को अजनीश के बढ़ाए हुए हाथ का सहारा लेना ही पड़ा।

अजनीश ने मेंहदी की आँखों में देखा, लेकिन मेंहदी यथासंभव उसकी नज़र से बचने की कोशिश कर रही थी। उसकी नजर से नजर मिलाने में संकोच महसूस कर रही थी। उसने अजनीश की नज़र में खुद के प्रति एक अनजाना-सा अपनापन पहचान लिया था। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसकी जिंदगी में दखलअंदाजी करे। वह अजनीश की नजर के सामने कमजोर न पड़ जाए इसलिए अजनीश से दूरी बनाए रखी।

अजनीश को मेंहदी को देख लगता जैसे उसे अनमोल खज़ाना मिल गया हो। लेकिन मेंहदी की नजर में संकोच देखकर वह कुछ हताश हो जाता। मगर उस भाव को अपने ही अंदर समेट रखा। उसे पूरा भरोसा था अगर वह सच में प्यार करता है तो मेंहदी जरूर खींच आएगी।

मेंहदी को कभी प्यार पर भरोसा नहीं था। भरोसा करती भी कैसे? बचपन से लेकर आज तक मर्दों के नाम पर उसने अपने पिता का विश्वासघात देखा है। जिसके धोखे से माँ की सूनी जिंदगी देखी है। ऐसे हालात में वह किसी पर भरोसा करना भी नहीं चाहती थी। वह अपनी माँ से हुई बेवफाई को नजरअंदाज नहीं कर पा रही थी। बचपन से वह जिस प्यार के लिए तरसते आई है, वह प्यार उसे कभी नसीब नहीं हुआ। इसलिए वह हमेशा मर्दों की दुनिया से अपने आपको अलग रखते आई है। कुछ समय की पहचान को कोई भी नाम देना बेवकूफी समझकर खुद को अजनीश से दूर रखने में ही अपनी भलाई समझती रही।