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हवेली - 5

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अजनीश, बैंक पहुँचा पैसे निकालने थे। माँ की चिट्ठी उसे परेशान कर रही थी। अचानक बाबूजी की तबियत खराब होने से अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। बड़े उम्र की लंबी बीमारी के बाद कुछ ही दिन पहले घर लौटे थे। दवाई के खर्चे के साथ-साथ अस्पताल का खर्चा अजनीश को बहुत भारी पड़ रहा था। कोई हाथ बँटाने वाला नहीं था । छोटा भाई जिसने अभी-अभी कॉलेज में पहला साल पूरा किया है पढ़ाई के साथ-साथ छोटे बच्चों की ट्यूशन लेकर अपना ख़र्चा बहुत मुश्किल से जुटा पाता है। करे भी तो क्या करे, नयी नौकरी होने से लोन मिलना भी मुश्किल था। उसने बचाए हुए पैसे बैंक से निकाल कर घर भेजने थे। वह बेहद परेशान था। जब पैसे निकालकर बैंक से निकला ही था, चंद्रशेखर सामने आकर खड़े हो गए, “अजनीश, अच्छा हुआ तुम मिल गए। चलो तुमसे कुछ काम है। "

"सर, मैं कुछ काम से बाहर जा रहा हूँ। बहुत जरूरी है। "

“ठीक है, मैं इंतज़ार करता हूँ, तुम जल्दी से काम खत्म करके आना।" पाँच मिनट में वहीं पोस्ट ऑफिस में पैसे घर मनीऑर्डर कर वापस लौट आया।

“कहिए सर, कुछ ज़रूरी काम था ?"

यहाँ नहीं, चलो मेरे साथ घर में बैठकर बात करते हैं। कहकर आगे-आगे चलने लगे। उनके चेहरे पर गंभीरता देखकर अजनीश कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। चुपचाप पीछे चलने लगा। शेखर ने गाड़ी का दरवाजा खोलकर गाड़ी में बैठने का संकेत दिया और कहा “आप बैठ जाओ चलते-चलते बात करेंगे।" वे खुद गाड़ी स्टार्ट की। जब कभी पर्सनल काम से बाहर जाना होता है, तब वह खुद गाड़ी चलाना पसंद करते हैं। शेखर गाड़ी चुपचाप चलाने लगे, रास्ते में कोई भी बात नहीं हुई। गंभीर चेहरे पर गहरी सोच देखकर अजनीश कुछ पूछने का साहस नहीं कर पाया। गाड़ी एक लंबी दीवार पारकर उनके बंगले के सामने रुकी। घर के सामने लगी हुई नेम प्लेट देखकर समझ गया कि यह मेयर चंद्रशेखर जी हैं।

गाड़ी से उतरते ही मेयर चंद्रशेखर ने गाड़ी की चाभी चौकीदार के हवाले कर दी। अजनीश को हॉल में बैठने को कहकर खुद अंदर चले गए। उनके चेहरे पर परेशानी साफ-साफ नजर आ रही थी। मेयर चंद्रशेखर जी के बंगले में पैर रखना अजनीश के लिए एक सपना था। मुंबई शहर के मेयर, इतने बड़े आदमी के घर खुद की मौजूदगी अजनीश को सपना-सा लग रहा था। कहाँ एक मामूली-सा असिस्टेंट इंजीनियर, आज एक मेयर के घर पर खड़ा है। एक बार घर को जी भर देखा। बड़ा-सा हॉल, ड्युप्लेक्स होने से हॉल के बीच में ही ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है। घर की सजावट पूरी तरह आधुनिक ढंग से सजाई गई है। हॉल के मध्य भाग में बैठने के लिए महँगा सोफा सजाया हुआ है।

अजनीश सकुचाते हुए जाकर सोफे पर बैठा। अजनीश को समझ में नहीं आ रहा था कि चंद्रशेखर ने इस तरह उसे यहाँ ले आने का कारण क्या था। थोड़ी देर बाद चंद्रशेखर अंदर से आकर सोफे पर बैठ गए। तब पल्टु आकर उनकी गोद में बैठ गया। सफेद बाल उसके लंबे कानों पर पड़े थे। एक अनजान आदमी को घर में देखकर, कान खड़े करके अंदर बाहर होते हुए कूँ-कूँ कर घरवालों को सचेत कर दिया था उसने। जैसे कि यह उसका जिम्मेदारी है। फिर अजनीश को देखकर एक अजीब-सी आवाज में भोंकने लगा, लेकिन जब चंद्रशेखर को अजनीश के पास बैठते हुए देखा तो तुरंत ही वह समझ गया कि कोई मेहमान है। दो बार अजनीश की चारों ओर चक्कर काटकर वह चंद्रशेखर के पास बैठकर उनकी बातें ध्यान से सुनते हुए सिर हिलाने लगा। जैसे कि उसे भी अन्वेशा की बहुत फिक्र है।

"क्या बात है, सर आप कुछ परेशान लग रहे हैं?" अजनीश ने पूछा। शेखर ने एक लंबी साँस लेकर अचानक अजनीश के दोनों हाथ पकड़कर कहा, “अजनीश क्या तुम मेरी एक मदद कर सकते हो ?"

"कहकर तो देखिए सर, अगर मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ तो मुझे खुशी होगी। बेझिझक बताइए।"

“नहीं, ऐसे नहीं मुझे तुम्हारी जरूरत है। आज के दिन मैं किसी पर आँख मूंदकर भरोसा नहीं कर सकता इसलिए मैं तुम्हारी मदद चाहता हूँ।”

"बताइए सर मुझे क्या करना है। मुझसे जो हो सके मैं आपकी मदद करने को तैयार हूँ।" अजनीश ने अपना हाथ पीछे लेते हुए कहा। अवनि चाय, बिस्कुट और कुछ फल लेकर आयी। चंद्रशेखर ने अपनी पत्नी को अजनीश से परिचय कराया। अवनि ने एक कप चाय अजनीश की ओर बढ़ाया और दूसरा चंद्रशेखर जी को दिया। खुद एक कप लेकर शेखर के पास बैठी। तीनों चुपचाप चाय पीने लगे। चुप्पी तोड़ते हुए मेयर चंद्रशेखर ने कैंप में अन्वेशा और उसके साथियों के गायब होने और उनकी सुरक्षा की चिंता जताई और कहने लगे, “आज तुम्हारे अलावा में किसी पर भरोसा नहीं कर सकता, ये बात हम तीनों के अलावा किसी को पता होना ठीक नहीं, मेरे पास बहुत लोग हैं, लेकिन मुझे किसी पर भरोसा नहीं है। अगर ये बात फैल गई तो मेरी बच्ची की जान खतरे में पड़ सकती है। कारण राजनीति, हर ईमानदार आदमी के पीछे हजारों दुश्मन बंदूक तानकर खड़े रहते हैं। मीडिया भी चुप नहीं रहेगी, लोगों में उछालकर चटपटी न्यूज बनाएगी, जो कि मैं बिल्कुल नहीं चाहता। मेरी बच्ची की कोई खबर न पाकर मैं बहुत चिन्तित हूँ।"

"तो मुझे क्या करना होगा सर ?"

“तुम आज, बल्कि अभी वहाँ जाओ और अन्वेशा के बारे में पूरी खबर पता कर मुझे हर पल की खबर देते रहना। मैं प्रोफेसर से बात करके तुम्हारा रहने का इंतजाम करवा दूँगा।'

अजनीश के कुछ कहने से पहले ही चंद्रशेखर ने अजनीश का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, “आज मेरी बच्ची की जिंदगी तुम्हारे हाथ में है, ना मत करना।” अवनि वहीं खड़े होकर सारी बातें सुन रही थी। उसके आँखों में पानी झलक रहा था।

"सर... हो सकता है सब कुछ ठीक हो और हम...।”

“अगर ऐसा हो तो अच्छी बात है, ऐसा वैसा कुछ न हो इसलिए मैं तुम्हारा साथ चाहता हूँ और मेरी बच्ची के वापस आने तक तुम अन्वेशा के साथ रहकर ख्याल रखना।"

अजनीश खुद की सारी परेशानी भूलकर, “लेकिन मेरे पिताजी बीमार हैं। मुझे एक दो दिन में घर जाना होगा।"

"तुम्हारे पिताजी का ख्याल हम रखेंगे। उनकी पूरी जिम्मेदारी मेरी।"

"लेकिन सर..."

"लेकिन वेकिन कुछ नहीं, तुम अभी निकल रहे हो बस।" चंद्रशेखर जी का आदेश एक मजबूर पिता का अपनी बच्ची के लिए था, और वह खुद अपने पिता के बीमारी से त्रस्त था। अगर उसकी वजह से एक बेटी का उद्धार हो सके तो उसे जाना चाहिए। और उसे यकीन था चंद्रशेखर जी उसके पिताजी की ख्याल रखेंगे।

"ठीक है सर, मैं जल्द से जल्द निकलने की तैयारी करूँगा।” चंद्रशेखर ने अन्वेशा की पहचान के लिए एक फोटो, कुछ जरूरी चीजों के साथ-साथ मोबाइल फोन भी अजनीश को देते हुए कहा, "इसमें मेरा नंबर है, हर पल की खबर देते रहना और मेरी गाड़ी तुम्हें बस तक पहुँचा देगी। उसके आगे मेरा तुम्हारे साथ रहना ठीक नहीं होगा। ख्याल रखना कि किसीको पता न हो कि तुम्हें मैंने भेजा है।"

वे कुछ पैसे अजनीश के हाथ थमा दिये, लेकिन अजनीश ने उन्हें पैसे वापस करते हुए कहा, "अच्छी बात है सर... पर पैसों की कोई जरूरत नहीं है। मेरे अनुपस्थिति में आप मेरे पिताजी का ख्याल रख रखेंगे, उससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए।"

अजनीश विदा लेकर चला आया। चंद्रशेखर ने अवनि को दिलासा देते हुए कहा, "चिंता मत करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा।" अवनि के मन को कुछ सांत्वना मिली।

अजनीश अपने कमरे में आकर पलंग पर धड़ाम से गिर गया।

एक तरफ घर की चिंता, दूसरी तरफ शेखर जी के अनुरोध के साथ अवनि जी आँखों में छलछलाते ममता के अश्रु। शहर के एक जिम्मेदार इंसान और मेयर की बेटी होने के नाते भी उसका फर्ज है कि उसकी रक्षा करें। कुछ ही मुलाकात में वे अजनीश को अपने से लगे। अजनीश ने निश्चय किया कि वह उनकी मदद करेगा और इसका वादा भी किया है उसने। कुछ ऑफिस के काम भी पूरे करने थे। पलंग से उठकर जाने तैयारी करने लगा। ऑफिस के कुछ कागजात, जो घर ले आया था, उन्हें ऑफिस पहुँचाना है ताकि उसकी गैर हाज़िरी में ऑफिस के काम रुकें ना। कुछ कपड़े और जरूरी सामान पैक कर सीधा ऑफिस जाने की तैयारी कर रहा था, तब दरवाजे पर दस्तक हुई। पीछे मुड़कर देखा महेश खड़ा है। महेश और अजनीश दो साल से साथ-साथ काम कर रहे हैं। इस दौरान उनकी दोस्ती भी हो गई है। अचानक ही इस तरह बाहर जाने की बात ने महेश को अचंभित कर दिया।

अजु तू कहीं कुछ प्रॉब्लम में तो नहीं है ना? अंकलजी और आँटी सब ठीक हैं?" महेश, अजनीश और उसके परिवार के बारे में सबकुछ जानता है अचानक ही अजु को सूटकेस लेकर निकलते देखकर उसके मन में बुरे ख्याल आने लगे। महेश अजनीश को अजु कहकर बुलाता है। महेश का चेहरा देखकर अजनीश हँस पड़ा, तुरंत ही महेश का शक दूर करते हुए कहा, "अरे कहाँ खो गया? ऐसे क्या देख रहा है ?"

“तू अचानक सूटकेस लेकर कहीं जा रहा है ? सब ठीक तो है ?" महेश ने पूछा।

"ऐसी कोई बात नहीं है, सब ठीक है। तू चिंता मत कर मैं कुछ और ही काम से बाहर जा रहा हूँ और लौटने के बाद सब कुछ बताऊँगा।" कुछ कागजात महेश के हाथ देकर कहा, "हाँ महेश! अच्छा किया तू आ गया। मेरी गैर मौजूदगी में मेरा सारा काम सँभाल लेना। ये कुछ कागजात दफ्तर में पहुँचाना जरूरी है, साथ में यह लीव लेटर भी सर को दे देना और कह देना बहुत जल्द वापस लौटूँगा और जाने से पहले उन्हें न मिल पाने के लिए मेरी तरफ से माफी भी कह देना।" कहते-कहते वह जाकर गाड़ी में बैठ गया।

"अच्छा इतना तो बता कि कब वापस लौट रहा है. कहते-कहते चुप हो गया तब तक अजनीश की गाड़ी स्टार्ट हो चुकी थी। अजनीश गाड़ी की खिड़की से हाथ हिला रहा था ।

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