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राजू किसान

अमन कुमार त्यागी 

 

1
पिता जी! जल्दी उठो, अम्मा की तबियत ख़राब है, बहुत ज़ोर का दर्द उठरिया है।’ बेटे राजू ने झंझोड़कर उठाया तो मान सिंह को मजबूरीवश उठना पड़ा। अंगड़ाई लेते हुए उसने पूछा- ‘क्या बात है?’
-‘पेट में दर्द बतारी है।’
-‘खा लिया होगा कुछ उल्टा-सिदधा।
-‘देखो जल्दी, उठके, यहां पड़े-पड़े कुछ ना होवेगा, टैक्टर निकाल लिया है, डाॅक्टर के पास जाना पड़ेगा।’
-‘चल भई, इब तो उठनाई पड़ेगा।
मान सिंह और उसका बेटा बीमार के साथ शहर में डाॅक्टर के पास पहुंचे, मरीज़ को भर्ती कराना पड़ा। रात्रि स्टाफ ने आनन-फानन में बैड पर लिटाया, दवाई का पर्चा लिखा और कुछ पैसे काउंटर पर जमा कराने की बात कही। सुनकर मान सिंह घबराया। उसके दिमाग़ में था कि दो चार गोली या इंजेक्शन लगकर ठीक हो जाएगी मगर यहां तो उसका एनकांटर ही हो गया था। मरता क्या न करता। दो हज़ार जमा कराए पंद्रह सौ की दवा आई। साढ़े चार हज़ार जेब से ऐसे निकल गए मानो कि आए ही नहीं थे।
दवाई देने के कुछ देर बाद आराम हुआ। तो चैन में चैन पड़ी। एक बैंच पर बाप बेटे दोनों बैठ गए। अस्पताल में नींद आती भी कहां है यहां तो आदमी खाली होती जेब को बचाने के चक्कर में ख़ुद बीमार होता चला जाता है और अस्पताल वाले हैं कि बकरे को जब तक जिव्हा करते हैं जब तक वह टै न बोल जाए।
-‘गेहूँ बेचे के पैसे मिले थे, पंद्रह में से पांच तो गए।’
-‘क्यों परेशान हो रहे हो बापू? पैसे अम्मा से जादे हैं क्या?’
-‘जादे तो ना है, पर सोच रिया था, यो धंधा कितना अच्छा है, खट से निकलवा लिए पाँच हज़ार।’
मान सिंह एक-एक पैसे का हिसाब लगाता रहा, सुबह हुई हेड डाॅक्टर ने देखा, दो-तीन जाँच लिखी। जाँच कराई भी और शाम को डाक्टर ने कुछ दवाइयाँ लिखते हुए कहा- ‘घबराने की बात नहीं है। जाँच में सबकुछ ठीक है, दवाइयाँ दे दी हैं, कोई परेशानी हो तो आ जाना।’
मान सिंह बेहद परेशान था उसकी परेशानी डाॅक्टर नहीं जानता था, उसने तो एक मिनट देखा और हंसते हुए ऐसे बात की मानो कुछ हुआ ही नहीं। इधर सब हिसाब करने के बाद पंद्रह हज़ार में से दस पूरे हो लिए थे बाक़ी पांच काटने को दौड़ रहे थे, मानो कंपटीशन हो, दस हज़ार से पहले निकल जाने के लिए।
ट्रैक्टर के पीछे जुड़ी बुग्गी में गद्दे पर मान सिंह ने पत्नी को लिटाया और ख़ुद उसके पास बैठ गया। बेटे राजू ने ड्राइविंग सीट संभाली।
-‘अजी! पैसे ख़र्च हो गए होंगे?’ पत्नी ने पूछा।
-‘ग़म पैसे ख़र्च होने का नहीं है, ग़म तो ये है कि राजू ने कुछ करके ना दिखाया। जैसे इफ़रात थी, पढ़ लेता तो डाॅक्टर बन जाता। जानती है कितनी कमाई है? मगर नहीं, खेती करेगा और कमाकर डाॅक्टर को देगा।’
मानसिंह की पत्नी मुनिया चुप रही। वह भी जानती थी पैसे जाने का दुःख क्या होता है, जरा से दर्द ने जेब खाली करा दी।
अभी कुछ ही दूर गए होंगे कि झटका लेकर ट्रैक्टर बंद हो गया।
-‘इब क्या हो गया?’
-‘पता नहीं, देखता हूँ।’ राजू ने जवाब दिया
मान सिंह भी उतरकर पहुंच गया।
-‘समने ही मिस्त्री है उसे बुलाकर लाता हूँ।’
मान सिह का कलेजा मुँह को आने को तैयार था, मन ही मन हनुमान चालीसा जपने लगा और जेब पर हाथ रखकर प्रार्थना करने लगा -‘हे हनुमान जी बस कोई बड़ा नुकसान ना हो।’
मिस्त्री आया, चाबी पाने की आवाज़ मानसिंह के दिल पर चोट कर रही थी। कोई बीस मिनट की मशक्कत के बाद उसने ऐलान किया कि क्रेन टूट गई है, इधर मानसिंह को लगा कि उसे किसी ने गोली मार दी है, उसका दम निकला जा रहा है?
ट्रैक्टर को धकियाते हुए मिस्त्री की दुकान पर खड़ा करने के बाद मान सिंह ने गाँव में किसी को फोन करके बुलाया ताकि समय से घर पहुँच सके।
2
अगले दिन जब ट्रैक्टर घर में था तब मानसिंह की जेब पूरी तरह से खाली हो चुकी थी। पंद्रह हज़ार रुपए उसकी पत्नी और ट्रैक्टर की बीमारी ने लील लिए थे। हाथ-मुँह धोने के बाद मूढ़े पर बैठते हुए मानसिंह के मुँह से अनायस ही निकला-‘कोई बला थी टल गई।’
पास ही में उसकी पत्नी पानी लिए खड़ी थी। वह हंसते हुए बोली-‘अगर राजू मिस्त्री होता तो पाँच हज़ार बच सकते थे।’
मानसिंह कुछ नहीं बोला। पानी पिया और बैठक पर आते हुए राजवीर सिंह का स्वागत करने के लिए खड़ा हो गया। -‘आओ राजवीर भाई! कैसे हो? बैठो।’
राजवीर सिंह ने बैठते हुए बोले- ‘अबकी बार तुम्हारी ईख बहुत अच्छी हो रही है।’
-‘अरे! नजर लगानी है क्या?’ मानसिंह ने हंसते हुए कहा।
-‘भाई, शुरू में तो हम तुम्हें मूर्ख समझ रहे थे, मगर अब लग रहा है हमें भी तुम्हारी तरह ट्रैंच विधि अपनानी पड़ेगी।’ राजवीर तारीफ़ करते हुए बोले।
-‘इब थोड़ी सी तो ज़मीन है, अच्छी फसल के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा?’ मानसिंह ने जवाब दिया।
-‘उसमें तो लोबिया भी अच्छा बढ़ रहा है, लगता है गन्ने की बराबर पैसा देकर जाएगा?’
-‘इब देखो बाज़ार में क्या भाव मिलेगा? अच्छा भाव रहा तो ठीक-ठाक पैसा आ जाएगा।’
-‘अरे यार किन बातों में लग गए? मैंने तो पूच्छा नेई कि भाभ्भी जी की तबियत कैसी है?’
-‘इब ठीक है, गेहूँ के पैसे टैक्टर और तुम्हारी भाभ्भी दोनों ने ठिकाने लगवा दिए।’
-‘टैक्टर में के हुआ?’
-‘क्रेन टूट गई थी, बस सर्विस भी करवा दी।’
-‘अच्छा किया, भले आदमी पाँच साल से जोत रहा है ...कभी एक रुपया ना लगाया ...अब समझ ले नया हो गया।’
-‘हाँ ये तो ठीक है।’
-‘अच्छा बता, सोसायटी के कर्ज़े का के करना है?’
-‘करना के? जो भी लेगा देना तो पड़ेगा ही, नई करवानी है, जमा करने के पैसे नहीं हैं।’
-‘क्रेडिट कार्ड भी नया करवाना पड़ा, दस हज़ार रुपए उसमें भी लग गए। चल कोई बात नहीं अबकी बार गन्ना सबकी पूर्ति कर देगा।’ राजवीर सिंह ने हिम्मत बधाई।
-‘बस भैया राम का नाम लो, गेहूं का पैसा तो ऐसे ग़ायब हो गया जैसे गधे के सिर से सींग ग़ायब हो गए हों।’ मान सिंह ने बड़ी ही मायूसी के साथ कहा।
-‘अर भैया, भात भी तो देना है, कब का रहा बियाह?’
-‘जाडों में है, जब तक तो गन्ने का पैैैैसा आ जावेगा? अभी तो पिछले साल का भी नहीं आया।’
-‘एक बात तो बता यार, अगर नई सरकार बनी तो कर्ज़ा माफ़ होगा कि नहीं।’ राजवीर ने पूछा तो मान सिंह का चेहरा तमतमा उठा। वह किसी अर्थशास्त्री की तरह बोला-‘ख़ाक माफ़ करेंगे। पाँच लाख का गन्ना डाला है, एक साथ मिल जावे तो क्रेडिट कार्ड और सोसायटी दोनों न निबट जावे, मगर नहीं ... थोड़ा-थोड़ा मिलेगा ... वो भी दो तीन सालों में, निकल जाएगा बीमारी और खाद पानी में। रह गए फिर भी कर्ज़दार।
-‘पर सरकार माफ़ तो करेगी ही।’ राजवीर ने फिर पूछा।
-‘देखो भया, तुम हो ब्याजी आदमी। तुमने कर्ज़ा लिया और दे दिया लोगों को ब्याज पर। दस हज़ार मुझे भी दिया है, अगर अबकी बार सरकार ने तुम्हारा कर्ज़ा माफ़ करा तो कृसच जानियो हम भी ना देंगे तुम्हें।’ मान सिंह गंभीरता के साथ कहते हुए चुटकी ली।
-‘क्या बात करते हो? भला सरकारी कर्ज़े से मेरे कर्जे का क्या मतलब और मैं तो आया ही मांगने था ...वो तो मैं भाभ्भी की बीमारी की वजह से माँग न सका।’ राजवीर घबराकर बोला।
तभी छोटन बैठक पर चढ़ते हुए बोला-‘ठीक कैरिए हो, मुझ पै भी पांच हज़ार हैं, हम तो भैया दस परसेंट ना देने वाले, जितना ब्याज बैंक का बने है उत्ताई देंगे।’
राजवीर को अपने पैरों से ज़मीन खिसकती सी लगी। उसने संभलते हुए कहा-‘जब फटे है, तब दौड़कर राजवीर भैया के पास आते हुए नहीं लगता कि बैंक कार्रवाई की तरह परेशानी से बच जाते हो, पैसे ऐसे उठा लेते हो जैसे बाप-दादा रखकर भूल गए हों। लेते वकत कितनी मिन्नते करते हो।’
-‘अब तो भैया गन्ने का पैसा आने पर ही मिलेगा। गेहूँ के तो गए।’ मान सिंह ने राजवीर को समझाया।
-‘ठीक है, पर एक आना कम न करूँगा, अब तक जितना ब्याज बना उसे ऐन में जोड़कर ब्याज लगेगा।’ राजवीर ने गणित समझाया।
-‘ऐसा जुलम क्यों करते हो भैया, ब्याज पर ब्याज? ये कौन सी इंसानियत हो गई। दस हज़ार लिए थे, जितना ब्याज होगा उतना दे देंगे, ब्याज पर ब्याज, ये तो सरासर बेमानी होगी।’ मान सिंह ने समझाने का प्रयास किया।
-‘चार महीने के लिए लिए थे, आज छः हो गए हैं। पांच परसेंट के हिसाब से तीन हज़ार बन गए हैं। या तो अब ब्याज दे दो नहीं तो तीन हज़ार जुड़कर कर देता हूँ तेरह हज़ार, अब के बाद तेरह हज़ार पर ब्याज लगेगा।’ कहते हुए राजवीर सिंह वहाँ से जाने लगे तो मान सिंह ने समझाया-‘भैया वो तो हम मज़ाक कर रहे थे, बीमारी में ना लगते तो अभी दे देता, अब तो थोड़ा सा और रुकना पड़ेगा।’
-‘चलो दो महीने और रुका, नहीं मिले तो फिर चैदह हज़ार पे ब्याज लगेगा।’ कहते हुए राजवीर सिंह छोटन को घूरते हुए चले गए।
-‘क्या अजीब आदमी है? बैंक से पैसे लेकर ब्याज पर देता है, अब तक सरकार दो बार इसका कर्ज़ माफ़ कर चुकी है। बैंक से फिर कर्ज़ा ले लिया मगर डिफाल्टर होने के बावजूद बैंक मैनेजर से ख़ूब पटती है, वहीं बैठकर पैसे लेता है और क्रेडिट कार्ड नया करा देता है। मजे ले रहा है दलाली में। यहाँ इससे ज़्यादा खेती है मगर फिर भी हाथ फैलाना पड़ जाता है।’
-‘छोड़ो अब इसकी बात। राजू कहाँ है?’
-‘होगा घेर में, लगा होगा कुछ बोने-बाने में। पढ़ाई तो की नहीं अब टैम तो काटना ही पड़ेगा किसी तरह।’ मान सिंह ने चिढ़कर कहा तो छोटन बिना कोई जवाब दिए घेर की ओर चला गया।
घेर क्या था पूरी दो बीघा ज़मीन थी। पहले तो सब बेतरतीब था मगर राजू ने लग लगाकर तरतीब दे दी थी। बिटोड़ा और बूंगा अब बीचोबीच नहीं बल्कि एक साईड में थे। जब से सबमर्सिबल हुआ है तब से उसने कोई एक बीघा ज़मीन में कूड़ी का खाद मिलाकर ख़ूब जुताई की। मिटटी इतनी बारीक हो गई कि कोई अचानक उसमें पैर रख दे तो उड़कर मुँह तक चली आए। अब बस उसमें एक बार और गोबर का खाद डालकर पानी देना था। अपनी इसी तैयारी में लगा राजू समय ख़राब नहीं करना चाहता था सो उसने लौकी, तौरी, करेला, सेम आदि के जो भी बीज बचे थे रख लिए थे। छोटन भी उसे अपने घर में रखे करेले के बीज देने के लिए आया था। खेत की बारीक मिट्टी देखकर छोटन की तबियत ख़ुश हो गई।
-‘ई मट्टी तो एकदम पोडर हो गई है ...पर इसमें जमेगा क्या?’ छोटन ने मिट्टी हाथ में लेकर पूछा।
-‘अभी खाद मिलाकर पानी देना है, उसके बाद हल्की सी जुताई करके बीज बो दिए जाएंगे चाचा।’ राजू ने बताया।
-‘पर भैया, ऐसा नहीं लगता कि खामखा टैम ख़राब कर रहे हो, पढ़े-लिखे हो कहीं नौकरी कर ली होती तो ...।’
-‘नौकरी तो पेड़ पर लग रही है, जाओ और तोड़ लो, और फिर नौकरी में मेहनत ना करनी पड़े? पटवारी को देख लो कित्ती धूप में भगा फिरे है।’
-‘पर भैया तनखा से जादे तो उप्पर से कमा ले है, ठाठ नहीं देखते उसके। छोटन ने समझाने का प्रयास किया। मगर अब राजू ने चुप रहना ही बेहतर समझा।’
3
घर में ढोलक बज रही थी मगर मान सिंह को ढोलक की हर थाप के साथ अपना दिल बैठता नजर आ रहा था। उसकी बहन भात नोतने आई थी। बस अगले ही महीने भात था।
-‘कितनी मदद करेगा रे भैया?’
-‘अब देखते हैं? गन्ने का पैसा आने दे।’
-‘गन्ने के पैसे का कोई भरोसा है?’
-‘तो तुझे अभी बियाह नहीं रखना चाहिए था।’
-‘लड़का अच्छा मिल गया है, फौज में है, घर आवे है तो यारी दोस्ती की जगह अपने खेतन में ही लगा रहवे है, इब बता कहाँ मिलेगा इतना कमेरा? बहन ने बताया।’
-‘इसे कमेरा कहवैं तो हमारा राजू भी भौत कमेरा है, पढ़ाई छोड़ के दिन रात लगा रहवे हल फावले में, नू तो इसका बियाह भी भली जगह होना चइए पर कोई न पूच्छै बिरादरी वाला ...।’ मान सिंह ने मुँह बनाते हुए कहा।
-‘तू चिंता मत कर बुआ, हमारी अकेली बहन है, भात अच्छा मिलेगा ...जी खोल के ख़र्च करेंगे।’ राजू ने बुआ को सांत्वना देनी चाही तो मान सिंह बिफर उठा - ‘कोई जादूगर का डंडा है क्या, घुमाते ही नोट बरसने लगेंगे?’
राजू ने मुस्कुराते हुए अपनी जेब से एक चैक निकालकर अपने बाप की तरफ़ बढ़ा दिया- ‘एक लाख का है, बीस हज़ार का जब मिलेगा जब आधी सब्ज़ी खेत से निकल जावेगी।’
एक लाख का चैक देखकर मान सिंह हैरान था। उसे एकाएक विश्वास ही नहीं हो रहा था। तभी उसकी बुआ ने आश्चर्यचकित हो पूछा -‘अभी तौ सब्जी आई भी नहीं और पैसे आ गए?’
-‘हाँ, बुआ खड़ी फसल बेच दी है, न काटने का झंझट और न संभालने का, सब जिम्मेदारी उसी की।’
-‘किसने ख़रीदी है?’
-‘मेरा एक मित्र है सुरेश, उसने बड़े स्तर पे काम शुरू किया है, पौली हाउस भी है उसका, उसी ने बीज लाकर दिया था और उसी ने बुवाई का तरीका भी बताया था।’ राजू ने बता दिया।
-‘अरे वाह, कितना अच्छा काम करा है हमारे राजू ने, अरे भैया पढ़े-लिखे बालक अच्छी खेती कर रहे हैं आजकल, हमारा राजू बहुत आगे जाएगा एक दिन।’
तभी राजू की माँ बोली- ‘चिंता मत करो बहन जी, बीस हज़ार रुपए मैं भी दूँगी भात में, घेर में बोई लौकी और करेले के पैसे राजू ने मुझे दे दिए हैं।’
-‘क्या मतलब, घेर की लौकी, तौरी करेले के बीस हज़ार।’ मान सिंह ने चैंकते हुए पूछा।
-‘हाँ, मेरा राजू अगर डाक्टर, इंजीनियर बन जाता तो लौकी, करेला थोड़े ही ना बोता।’ राजू की माँ ने हंसकर जवाब दिया और चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई।

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