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दादा-पोता

अमन कुमार त्यागी 

नेकीराम की जवानी की तरह दिन भी ढल चुका था। ठिठुरती सर्दियों की कृष्णपक्षीय रात सर्र-सर्र चलती हवा की वजह से और भी भयावह हो जाने वाली थी। दिन भर पाला गिरा था। यह तो अच्छा था कि सुबह थोड़ी देर के लिए सूर्यदेव ने दर्शन दिए तो वो शौचादि कार्यों से निवृत्त हो लिए थे। उनकी चारपाई बरांडे में पड़ी थी। जहां हवा का हर झौंका उनके बुढ़ापे को सलाम करके जाता था। बेटा-बहू और उनके बच्चे सभी अंदर कमरे में सोते। दरवाज़े की चिटकनी लगा लेते और खिड़कियों को भी बंद कर लेते।
जब सांझ ने अंधेरे की चादर ओढ़ी तो पांच बजे ही आधी रात लगने लगी थी। नेकीराम दिन भर चारपाई पर लिहाफ में पड़े रहे तो उनकी कमर दर्द करने लगी। वह क्या करें? कोई उपाय उन्हें नहीं सूझ रहा था। सूझता भी कैसे? पूरा जीवन उपाय खोजते-खोजते गुज़र गया, न जाने कितने और कितने लोगों के लिए उपाय खोजे थे। अब कहां तक उपाय खोजेंगे? कहीं तो उपाय का भी अंत होना ही था सो उन्हें अब ऐसा ही लगने लगा था।
‘पप्पू बेटा’!, उन्होंने पुकारा तो बहू ने जवाब दिया, ‘जी पापा’!
‘पप्पू नहीं है क्या’?
‘सो गए हैं, आप कहें तो जगा दूं, सुबह जल्दी ही दफ्तर जाना है, कह रहे थे, आज बहुत अधिक थक गया हूं।’ बहू ने जवाब दिया।
‘ठीक है बेटा। मैं तो बस इतना ही कह रहा था कि यहां मुझे बहुत सर्दी लगती है, रात भर नींद भी नहीं आती।’ नेकीराम ने बुझे मन से बताया।
‘आप अंदर कमरे में सो जाइए, अपने बेटे के पास, मैं बाहर सो जाऊंगी।’ बहू ने कह दिया। नेकीराम उसके कहने का अर्थ अच्छी तरह समझ रहे थे सो उन्होंने कहा, ‘बेटा! मेरा इंतजाम बैठक में ही कर दिया होता।’
‘कर तो देती पापा जी! मगर आप जानते ही हैं कि बैठक आने-जाने वालों के लिए रखी जाती है। मामला घर की इज्जत का है इसलिए वह साफ ही रहे तो अच्छा है।’
‘तो क्या मेरी वजह से बैठक गंदी हो जाती है?’ नेकीराम ने जरा तल्ख़ लहज़े में कहा तो बहू सकपका गई।
‘मेरा मतलब है कि आपको बैठक सजा संवार कर रखने की आदत रही है, हम तो आपकी वही सीख पर काम कर रहे हैं।’
‘मतलब...।’
‘मतलब स्पष्ट है। याद है आपको जब मेरा विवाह हुआ था और मैं गर्मी से बचने के लिए सोफे पर सो गई थी। कितना चिल्लाए थे आप। आपने यह भी नहीं सोचा था कि अभी बहू नई है।
-‘ओह, नेकीराम के मुँह से अनायास ही निकला, इसका मतलब बदला लिया जा रहा है मुझसे।
-‘नहीं पिता जी, यह आप कैसे सोच सकते हैं? मैंने दादी सास को इसी जगह पर सोते हुए देखा है, जहां आज आप सो रहे हैं, हमें तो लगता है कि कल जब हमारा समय आएगा तो हमें भी यहीं पर सोना पड़ेगा।’
-‘लेकिन यहाँ तो बहुत सर्दी लगती है।’
-‘अब सर्दी के मौसम में गर्मी की उम्मीद न करें पिता जी, जिस तरह गर्मी में सर्दी की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। मैं एक कंबल और उढ़ा देती हूं आपको उससे बदन में गर्मी आ जाएगी।’
नेकीराम अवाक थे।
बहू ने कमरे से कंबल लाकर नेकीराम की रजाई के ऊपर डालते हुए कहा, ‘अपनी ही बनाई व्यवस्था को तोड़ नहीं देना चाहिए पिता जी।’
कंबल डालते ही नेकीराम को गर्मी का अहसास हो गया। उन्होंने राहत की सांस ली परंतु बहू द्वारा कहे गए शब्द उनके कानों में किसी तीर की भांति चुभ रहे थे। उन्हें अतीत की वो बातें याद आ रही थीं जिसकी वजह से उन्हें यह दिन देखने को मिल रहे हैं। उन्हें एक एक घटना याद आ रही थी।
‘नेकी ..ओ नेकी!’
‘हां मां! बता क्या बात है?’
‘बहुत सर्दी है बेटा! अब यहां नहीं सोया जाता।’
‘तो कहां सोना चाहिए?’ नेकीराम ने तल्ख़ लहजे में पूछा था।
‘कुछ भी कर बेटा, यहां रात में बहुत सर्दी लगती है और फिर मर भी जाऊं तो तुम लोग दरवाज़ा भी नहीं खोलने वाले।’
‘एक काम कर मां।’
‘क्या?’
‘कुछ दिन छोटे के पास रह ले, सर्दी कट जाएंगी तो आ जाना।’
‘क्यों मजाक कर रहा है?’
‘इसमें मजाक की क्या बात है?’
‘अच्छा, ये मजाक नहीं है। तू जानता है कि उस बेचारे के पास एक ही कमरा है, बरामदा तक नहीं है, किसी तरह गुजारा कर रहा है।’
‘यही तो कह रहा हूं, यहां जगह है तो तुझे अच्छा नहीं लग रहा है।’
‘एक काम कर दे।’
‘क्या?’
‘तू अपनी बैठक में मेरी चारपाई डाल दे।’
‘बैठक सोने के लिए नहीं होती मां, मेहमान आते हैं।’
‘क्यों झूठ बोलता है? कौन मेहमान आता है? मैंने तो किसी को आते जाते नहीं देखा।’
‘देखती नहीं, रोज शाम को कोई न कोई तो आता है।’
‘वो तो सब पीने-पिलाने वाले आते हैं।’
‘तो क्या तेरी चारपाई वहां डालकर अपनी बेइज्जती करा लूं?’
नेकीराम अपने ही ख़यालों में डूबे थे कि तभी उनके लिहाफ पर सरसराहट हुई। न चाहते हुए भी मुँह उघाड़ कर देखा। उनका नन्हा पोता उनके बिस्तर में घुसने का प्रयास कर रहा था। उन्होंने पोते को अपने पास लिटाते हुए कहा- ‘बहुत सर्दी है बेटा!’
‘हां दादा जी!’ पोते ने जवाब दिया।
‘फिर तू क्यों आ गया यहाँ? तेरी मां तुझे मारेगी तो?’
‘कोई बात नहीं दादा जी! मैं अभी से बाहर सोने की आदत डाल लूंगा ताकि बाद में मम्मी-पापा को बाहर ना सोना पड़े।’
नेकीराम ने ठंडी सांस ली और अपने मां-बाबू जी को याद करते हुए उन्हें कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला।

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